यशवंत सिंह
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मनीषा ने जो लिखा, मैं पतित होना चाहती हूं, दरअसल ये एक जोरदार शुरुआत भर है। उन्होंने साहस बंधाया है। खुल जाओ। डरो नहीं। सहमो नहीं। जिन सुखों के साथ जी रही हो और जिनके खोने का ग़म है दरअसल वो कोई सुख नहीं और ये कोई गम नहीं। आप मुश्किलें झेलो पर मस्ती के साथ, मनमर्जी के साथ। इसके बाद वाली पोस्ट में पतनशीलता को एक मूल्य बनाकर और इसे प्रगतिशीलता के साथ जोड़ने की कोशिश की गई है। यह गलत है।
दरअसल, ऐसी ऐतिहासिक गल्तियां करने वाले लोग बाद में हाशिए पर पाए जाते हैं। कैसी प्रगतिशीलता, क्यों प्रगतिशीलता? क्या महिलाओं ने ठेका ले रखा है कि वो एक बड़े मूल्य, उदात्त मूल्य, गंभीर बदलाव को लाने का। इनके लिए पतित होने का क्या मतलब? ये जो शर्तें लगा दी हैं, इससे तो डर जाएगी लड़की। कहा गया है ना...जीना हो गर शर्तों पे तो जीना हमसे ना होगा.....। तो पतित होना दरअसल अपने आप में एक क्रांति है। अपने आप में एक प्रगतिशीलता है। अब प्रगतिशीलता के नाम पर इसमें मूल्य न घुसेड़ो। कि लड़ाई निजी स्पेस की न रह जाए, रिएक्शन भर न रह जाए, चीप किस्म की चीजें हासिल करने तक न रह जाए, रात में घूमने तक न रह जाए, बेडरूम को कंट्रोल करने तक न रह जाए....वगैरह वगैरह....। मेरे खयाल से, जैसा कि मैंने मनीषा के ब्लाग पर लिखे अपने लंबे कमेंट में कहा भी है कि इन स्त्रियों को अभी खुलने दो, इन्हें चीप होने दो, इन्हें रिएक्ट करने दो, इन्हें साहस बटोरने दो.....। अगर अभी से इफ बट किंतु परंतु होने लगा तो गये काम से।
मेरे कुछ सुझाव हैं, जिस पर अगर आप अमल कर सकती हैं तो ये महान काम होगा.......
1- हर महिला ब्लागर अपने पतन का एलान करे और पतन के लक्षणों की शिनाख्त कराए, जैसा मनीषा ने साहस के साथ लिखा। अरे भइया, लड़कियों को क्यों नहीं टांग फैला के बैठना चाहिए। लड़कियों को क्यों नहीं पुरुषों की तरह ब्लंट, लंठ होना चाहिए....। ये जो सो काल्ड साफ्टनेस, कमनीयता, हूर परी वाली कामनाएं हैं ये सब स्त्री को देवी बनाकर रखने के लिए हैं ताकि उसे एक आम मानव माना ही न जाए। तो आम अपने को एक आम सामान्य बनाओ, खुलो, लिखो, जैसा कि हम भड़ासी लिखते कहते करते हैं।
2- सबने अपने जीवन में प्रेम करते हैं, कई बार प्रेम का इजाहर नहीं हो पाता। कई बार इजहार तो हो जाता है पर साथ नहीं जी पाते....ढेरों शेड्स हैं। लेकिन कोई लड़की अपनी प्रेम कहानी बताने से डरती है क्योंकि उसे अपने पति, प्रेमी के नाराज हो जाने का डर रहता है। अमां यार, नाराज होने दो इन्हें.....। ये जायेंगे साले तो कई और आयेंगे। साथ वो रहेगा जो सब जानने के बाद भी सहज रहेगा। तो जीते जी अपनी प्रेमकहानियों को शब्द दो। भले नाम वाम बदल दो।
3- कुछ गंदे कामों, पतित कृत्य का उल्लेख करो। ये क्या हो सकता है, इसे आप देखो।
4- महिलाओं लड़कियों का एक ई मेल डाटाबेस बनाइए और उन्हें रोजाना इस बात के लिए प्रमोट करिए कि वो खुलें। चोखेरबाली पर जो चल रहा है, उसे मेल के रूप में उन्हें भेजा जाए।
5- छात्राओं को विशेष तौर पर इस ब्लाग से जोड़ा जाए क्योंकि नई पीढ़ी हमेशा क्रांतिकारी होती है और उसे अपने अनुरूप ढालने में ज्यादा मुश्किल नहीं होतीं। उन्हें चोखेरबाली में लिखने का पूरा मौका दिया जाए।
6- एक ऐसा ब्लाग बनाएं जो अनाम हों, वहां हर लड़की अनाम हो और जो चाहे वो लिखे, उसे सीधे पोस्ट करने की छूट हो, भड़ास की तरह, ताकि आप लोग गंभीरता व मूल्यों के आवरण में जिन चीजों को कहने में हिचक रही हैं, जिस युद्ध को टाल रही हैं, इस समाज के खिलाफ जिस एक अंतिम धक्के को लगाने से डर रही हैं, वो सब शुरू हो जाए।
जय चोखेरबालियां
यशवंत
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13 comments:
बढ़िया सुझाव हैं । मैं तो आपका सुझाव पढ़ने से पहले ही कंचन सिंह चौहान जी के स्त्री बनाम पुरुष पर अपनी भड़ास टिप्पणी के रूप में लिख आई हूँ ।
घुघूती बासूती
"खुलो, लिखो, जैसा कि हम भड़ासी लिखते कहते करते हैं। "
क्यो हम वैसा लिखे जैसा भड़ासी लिखते ?? कोई खास वजह भी बताये की ऐसा भड़ास पर क्या हुआ हैं जो किसी के लिये भी प्रेरणा का सूत्र हैं ? क्या उपलब्धि हैं भड़ास की , क्या किया हैं भड़ास ने ? एक सामुहिक ब्लॉग हैं भड़ास जहाँ आप जो चाहे लिख सकते हैं , भड़ास के पुनर्जनम से पहले जो पोस्ट आया करती उसमे गाली , नारी शरीर संरचना और बहुत कुछ होता था जिसका कोई महत्व ही नहीं हैं
नहीं मुझे तो नहीं चाहीये ऐसी पतन शीलता ।
" कुछ गंदे कामों, पतित कृत्य का उल्लेख करो। ये क्या हो सकता है, इसे आप देखो। "
क्यो क्या ऐसा करने से कोई क्रांती आ जायेगी ?? क्या इससे समाज मे फैली रुदीवादी परम्पराये खत्म हो जाएगी ?
"एक ऐसा ब्लाग बनाएं जो अनाम हों, वहां हर लड़की अनाम हो और जो चाहे वो लिखे, उसे सीधे पोस्ट करने की छूट हो, भड़ास की तरह "
कब तक स्त्री को ये सुनना है , ऐसा करो इसकी तरह रहो , हमारी तरह बनके देखो !!!! चोखेर बाली का मतलब और मकसद क्या अब हमे किसी और से समझना होगा ?? क्या हम इतने भी परिपक्व नहीं है की सोच सके हमे क्या करना हैं ?? कमाल हैं एक और सीख !!
मेरे पास तो कोई ऐसा वाकया या संस्मरण नहीं हैं जिनका जिक्र कर के मै अपनी पतन शीलता का झंडा फेहरा सकूं पर ऐसे बहुत से संस्मरण हैं जहाँ मैने समाज से हर वह अधिकार लिया जो किसी पुरूष को मिलता , अपने हिसाब से अपनी जिन्दगी जीने का । मुझे अगर शराब और सिगरेट की जरुरत महसूस होगी तो मै इसलिये लूगी की मुझे उसकी जरुरत हैं इसलिये नहीं की यशवंत लेते हैं । मुझे बराबरी पुरूष से नहीं करनी है क्योंकी मै तो जनम से पुरूष के बराबर ही हूँ । और मुझे ये सिद्ध भी नहीं करना है , मुझे केवल उज्र हैं की समाज स्थापित उस रुढ़ीवादी सोच से जहाँ स्त्री को उसकी शरीर की संरचना की वजह से बार बार अपमानित होना पड़ता है और मै अपनी हर सम्भव कोशिश करती हूँ कि इस के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखूं । मानसिक परतंत्रता से ग्रसित है स्त्री वर्ग और बदलना जरुरी है उस सोच का
अगर भडासी, इस म्लोग मे लिखने लगे, और तय करने लगे कि क्या लिखना होगा. टो मुझे इस ब्लोग की सदस्य्ता को लेकर सोचना होगा
भइया, इस टिल्ली-बिल्ली उद्यीपन में मैं, बतौर एक ब्लॉगर और इस सामाजिक स्पेस को शेयर करते हुए- रचना व स्वप्नदर्शी की प्रतिक्रियाओं के साथ हूं. यही अच्छा है कि सब अपना सबक स्वयं लें.. बस इस बात से ज़रा ताज्जुब होता है कि नतीजों तक पहुंचने की ऐसी हड़बड़ क्यों मची हुई है? मानो किसी सलाने जलसे में ईनाम बंटनेवाला है कि यह सही और यह गलत!.. बिना नाटकीयता के अलग-अलग पर्सपेक्टिव नहीं बनाते रखे जा सकते?
रचना व स्वप्नदर्शी ne sahi kaha
ये पोस्ट मैंने अभी देखी। हम सबकी बात प्रतिनिधि तरीके रचना और स्वप्नदर्शी ने कह दी है।
sochna yh hai ki aurt chahti kya hai? hr aurt ki smsya bhi ek nhi hai...khaee-aghaee aurton ko kya chahie...
agr aurten sahi mayne me chahtee hain ki jivan unhe savabhavik aur sahj taur pr uplbdh ho to sbse pahle unhe sachiyon ko svikarne ka sahs hona chahie...
jb tk aurt arajk nhi ho jaegi... is str pr nhi aa jaegi.. kr lo mera kya kr loge...tb tk to mujhe lgta hai aajadi bs ek swpn bhr hi rhegi...
yh bilkul jroori nhi ki purush ke btae rah pr aurt chale lekin yh bhi nhi ho skta ki aap apne str pr koi risk n len aur dunaya bhr ki aurton kee aajadi ka nara bulnd krte rhen...
bdlav ki koi bhi shuruaat khud se hogi...aur iska rasta arajkta kee galiyon se jata hai...
rudhiyon ko dhoti rhiye parmprik naitkton ka almbrdar smaj aapko bahut achchha kahega...sahaj jivn jine shuroo kijiye, apne mn ka kijie, bwal ho jaega...yh bhi chl skta hai smaj sudhariye aur ghr me char lat khane ke lie taiyar rhie...yh bhi achchha lekin ghr se hi shuru kr dijie...lat ka jvab lat se de dijiye ...aap avara hain...buri hain..bhadasi hain...
yshvant ki bat me dm hai, bs yon bhadasi kahkr kharij krne se nhi hoga...aap sochen chahiye kya...fir rasta kya hai
vkt katne ke lie ya vidvata ka bllam chmkane ke liye bahas ho rahi hai to koi nhi...j
हरे प्रकाश उपाध्याय
aap ke paas 1000 member haen jo bhadaas per likh rahen haen agar ham sab ko aap kii baateyn sahii lagtee toh ham sab ek alag saamuhik blog kyon banatey . aap kii soch aap kii hamaarii soch hamaaree .
क्या कहना चाहते हैं यशवंतसिंह कुछ समझ में नहीं आया। हमारे यहां हर नई ( मगर अधकचरी सोच को क्रांति क्यों मान लिया जाता है ?) क्या कर दिया है भड़ास ने और क्या कर दिया है चोखेरबाली ने कि हर पत्रकार भड़ासी हो जाए और हर लड़की चोखेरबाली पर चली आए ? इतनी हड़बड़ी क्यों ? अच्छे संस्कार देने का टोटा पड़ गया है क्या ? क्या डेढ़ हजार साल पहले या डेढ़ सौ साल पहले या पचास साल पहले प्रगतिशील मूल्य नहीं थे जो अब इसे पतनशीलता कहने की नौबत आ गई ?
रचना, स्वप्नदर्शी,प्रमोदसिंह जैसे लोगों की बात के साथ हूं। चोखेरबाली का तो मकसद साफ है। भड़ास का क्या मकसद है ? यै कैसा भड़ासी शऊर सिखा रहे हैं ज़मानेभर की लड़कियों को।
भड़ासी पतनशीलता कम उच्चश्रृंखलता से ज्यादा आनंदित होंगे, अब जो आँख की किरकिरी बनना चाहती हैं उन्हें क्या पतनशीलता के गर्त में जाने के लिये मार्ग खोजने होंगे?
काफ़ी दिन से इस ब्लॉग को पढ़ रहा हूँ और देख कर अच्छा लगा की आप लोग कुछ सार्थक करने की कोशिश में है| मगर ये पतित होने की बात गले से नही उतरी| एक बहुत साधारण सा सवाल है क्या किसी डॉक्टर की किसी की शराब छुड़ाने के लिए ख़ुद शराबी बनना पड़ता है क्या? पतित हो क्या आप क्या साबित करेंगी? इस हिसाब से तो जो पुरूष चाहते है की उन्हें पतित स्त्रिया मिले, उन का तो काम सरल हो गया और हालत और बिगड़ जायेंगे|
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