मै आज हुमक -हुमक उठती थी
महिला दिवस पर, सुबह सुबह देखे अखबार
महिला दिवस कैसे मनाया जा रहा है
दिल्ली हाट मे, फ़िक्की मे ,नेशनल स्टेडियम मे ,
राष्ट्र सन्घ मे , तय कर लिया
मै तो जाउन्गी दिल्ली हाट
क्योकि प्रीति ज़िन्टा आएगी वहा आज
पर कस्तूरी आज
उदास सी लग रही है,
सूजा हुआ चेहरा है उसका
पूछा - "कस्तूरी ! तुझे क्या हुआ है?
आज नारी सम्मान उत्सव पर
तू हताश क्यो है?"
वह नही बोली कुछ भी ,
एक फीकी मुस्कान थी बस ;
जानती हूँ
कल उसकी बस्ती मे
उसने फ़ाँसी पर लटकती देखी थी
पडोसन की लाश और
बिलखते बच्चे उसके आसपास ।
वह आज खिन्न है,
चुपचाप धो रही है कपडे,
मान्ज रही है बर्तन
और बुहार रही है आंगन मेरा
उसे छुट्टी चाहिये थी
अस्पताल जाने के लिए अपनी
जली हुई ननद को देखने
मैने कर दिया था मना
क्योन्कि आज मुझे महिला दिवस पर
अटेन्ड करने थे कई कार्यक्रम
जाना था
कई उत्सवो में ,
काम कौन करता ?
कस्तूरी क्या करेगी छुट्टी लेकर कि
वह कुछ जानती ही नही ।
इतना ही जानती है
कि उसे निपटाने है अभी
मुझ सी महिलाओ के कई घर और!
international womens day
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8 comments:
मजबूरी का नाम कस्तूरी है।
ऊबी हुई और सुखी महिलाओं के लिए
महिला दिवस एक जश्न है
बाकी के लिए एक प्रश्न है।
ये कस्तूरी मेरे,आपके और सबके आस-पास है। लेकिन हममें से कितने हैं जो उनकी हालत समझ पाते हैं और ईमानदारी से अपने स्वार्थ को सबके सामने स्वीकार कर पाते हैं। दिल को छू लेने वाला बयान।
एक भावपूर्ण उम्दा रचना के लिये बधाई.
sujata jee,
aapke chokher bali ko to ab log rupaayan ke maadhyam se bhee pehchaanne lage hain.
कितना काम करतीं हैं कस्तूरी जैसी महिलाएं --
उनकी कर्मठता को वंदन !
इस वर्ष महिला दिवस कुछ इस तरह मनाइये
कस्तूरी को पूरे वर्ष , आधा घंटा रोज़ पढाइये
ह्ह्म्म जी... पढ़ा .....
aaj har aurat ek kasturi hi to hai
jo na jaane kitne hi bandhano wa bediyo me bandhi hai
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