नारी
कोई अबला नही
सबल है ताक़तवर है
जीवन दायीनी शक्ति है जीवन का संबल है
हर पीडा को सहकर जन्मती नया अंकुर है
मुसकिल है राहे
अंजान सी डगर है
आत्मविश्वास की डोर से चलती जीवन भर है
अभी धूप है
कल सुनहरी छांव होगी
आँखों में सपनो का सुहाना मंजर है
महिला दिवस ही केवल -
नारी के नाम नही
हर दिन अपना दिन है , मन ही मुक्ति डगर है
नीलिमा गर्ग
Tuesday, March 4, 2008
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16 comments:
आप बहुत बढिया बात काह रही हैं नीलिमा जी !हर दिन अपना दिन है ,और मन की मुक्ति डगर है--बहुत भाने वाली पंक्ति है !
neelimaa jee,
saadar abhivaadan, naari par abhee shodh jaaree hai aur bahut se pahloo saamne aate rahein hain. aapne bhee ek pehloo dikhayaa . dhanyavad.
कबीर सा रा रा रा रा रा रा रा रारारारारारारारा
जोगी जी रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा री
बहुत बढ़िया ।
घुघूती बासूती
sundar bhaav...bahut badhiyaa
"महिला दिवस ही केवल -
नारी के नाम नही
हर दिन अपना दिन है,
मन ही मुक्ति डगर है"
सच कहा आपने। मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
हर दिन अपना दिन है , मन ही मुक्ति डगर है
सबसे खूबसूरत पंक्ति यही है ।
हर दिन अपना दिन है , मन ही मुक्ति डगर है
मुक्ति किससे ? ??
हाँ मन से ही उपजती है मुक्ति की राह --
purani baat ghise pite andaaj men kahi gayi hai. aur itne log kah rahe hain waah, waah, waaaah. chokher bali ho to kuchh nai aur aesi baat kaho ki waah,waah kahne se pahle aadmi log apni aankhe malne ko majboor ho jayen. waah-waah ke shor men asli raah gum ho jati hai.
नीलिमा जी, आपकी पन्क्तियाँ पसँद आईं.
@ सुजाता, धन्यवाद सुजाता मुझे चोखेर बाली से परिचित कराने के लिये..आपको शुभकामनाएँ.
रचना.
अरुण जी
यह बात समझ नही आयी कि chokher bali ho to kuchh nai aur aesi baat kaho ki waah
सभी चोखेर बालियाँ एक ही टोन मे बात करें यह तो सम्भव ही नही है । यह सबका मंच है जो भी यहाँ लिखता है । फिर चाहे वो उसकी भावनाएँ हों ,आक्रोश या विचार । विविधता के रंग होने ही चाहिये ।
पहली बार इस मंच पर आने वाले को हतोत्साहित तो नही किया जाना चाहिये न!
और आपकी असहमति के लिए भी हमारे पास बहुत स्पेस है :-) खुशी से असहमत होइये । चोखेर बालियाँ हैं, इसेलिये हर किसी को उन्हें लताडने और नसीहत देने की ज़रूरत लगती है ।
रचना जी आपका स्वागत है , अप यहाँ की सदस्य होंगी तो हम सभी को अच्छा लगेगा ।
Arunji
baat purani ho sakti hai but since i wanted ,I said. I don't want undue wah wah .I am here to say what I want .
Thanks to all for encouraging me!!!
Mukti from all orthodox things prevailing in our society........
सुजाता जी, लताड़ने की बात तो मैं सोच भी नहीं सकता हूँ। हाँ मेरी टिपण्णी में नसीहत जैसा स्वर कुछ जरूर आ गया है। आगे ध्यान रखूँगा । वैसे मुझे कोई नसीहत दे तो मैं दिल खोलकर स्वागत करता हूँ। धन्यवाद भी देता हूँ। मेरे ब्लॉग पर जाकर आप इस बात को प्रत्यक्ष देख सकती हैं ( लो मैं अपना प्रमोशन भी करने लगा ) । नसीहत को मानना या न मानना हमारे ही हाथ में है, फ़िर किसी नसीहत को लेकर क्या बुरा मानना। नसीहत देने वाला तो ख़ुद अपनी समझ या नासमझी उजागर कर ही चुका होता है।
नीलिमा जी, आप लिखें, खूब लिखें और....और कुछ नहीं कहूँगा, वरना फ़िर कुछ नसीहत जैसा न हो जाए।
जय चोखेरबाली ।
NAARI...NA...ARI, YANI SHATRU NAHIN HAI,MITRA HAI VAH...
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