एक सुंदर सी कविता पढ़ी हैं आपके साथ बाँटना चाहती हूँ
आज फिर आईने ने दोहराया
तेरी आँखो में ये नमी सी क्यों है
तू औरत है
तो क्या हुया
आख़िर राहे हक में कमी सी क्यों है
Wednesday, April 30, 2008
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अनुप्रिया के रेखांकन
स्त्री को सिर्फ बाहर ही नहीं अपने भीतर भी लड़ना पड़ता है- अनुप्रिया के रेखांकन
स्त्री-विमर्श के तमाम सवालों को समेटने की कोशिश में लगे अनुप्रिया के रेखांकन इन दिनों सबसे विशिष्ट हैं। अपने कहन और असर में वे कई तरह से ...

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4 comments:
Anchal mein hai dudh aur ankho main paanee....
anayaas hee ye panktiya yaad aa gayee is rachanaa ko padker...
Sunder abhivyaktee....
bahut hi sundar hai.
nice lines...
अच्छी कविता है. मन में जो ख्याल आए लिख रहा हूँ. नारी और पुरूष ईश्वर की दो रचनाएं हैं, जिन्हें उसने एक दूसरे के पूरक के रूप में बनाया है. नारी के बिना पुरूष अधूरा है. मैं नहीं समझ पाता कि नारी की पुरूष से तुलना क्यों की जाती है? नारी के बारे में न जाने क्या क्या कहा गया और कहा जा रहा है - आँचल में है दूध और आखों में पानी, नारी अबला है, नारी पराया धन है. न जाने क्यों नारी स्वयं को पुरूष के बराबर साबित करने में लगी है. वह पुरूष से कम है ऐसा क्यों मानती है? जो बराबर है उसे स्वयं को साबित करने की क्या जरूरत है? क्या नारी पुरूष से ज्यादा कमा कर, पुरुषों के वस्त्र पहन कर, पुरुषों जैसे काम कर कर, घर के बाहर पुरुषों के साथ दौड़ कर ही अपनी बात साबित कर पायेगी? क्या अपने कार्य क्षेत्र में और अधिक प्रगति कर के नारी स्वयं को पुरूष से अच्छा साबित नहीं कर सकती? स्वयं को छोटा मानने से कुछ नहीं होगा. स्वयं को पुरूष के बराबर साबित करने को कोई जरूरत नहीं है. ईश्वर के विधान का सम्मान करो. पुरूष से पहले यह नारी को करना होगा.
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