नोबेल पुरुस्कार प्राप्त पोलैण्ड की शानदार कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की एक कविता आज ही कबाड़ख़ाने में लगाते हुए मुझे रह रह कर यह कविता याद आ रही थी। पुरानी पाण्डुलिपियों में थोड़ा सा खोजने पर यह मुझे मिल ही गई।
अपनी बहन की प्रशंसा में
मेरी बहन कविता नहीं लिखती
ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं कि
वह अचानक कविता लिखना शुरू कर देगी।
वह मां पर गई है, जो कविता नहीं लिखती थी
और पिता पर भी जो कविता नहीं लिखते थे।
अपनी बहन की छत के नीचे मुझे सुरक्षित महसूस होता है।
उसका पति कविता लिखने के बदले मर जाना पसन्द करेगा
और बावजूद इसके कि यह बात पीटर पाइपर की तरह
बार-बार दोहराई जैसी लगने लगी है,
सच्चाई यह है कि मेरा कोई भी रिश्तेदार कविता नहीं लिखता
मेरी बहन की डेस्क की दराज़ों में पुरानी कविताएं नहीं होतीं
न उसके हैण्डबैग में नई कविताएं।
जब मेरी बहन मुझे खाने पर बुलाती है
मुझे पता होता है कि उसे मुझसे कविताएं नहीं सुननी होतीं।
उसके बनाए सूप स्वादिष्ट होते हैं और उनका कोई गुप्त उद्देश्य नहीं होता।
उसकी कॉफ़ी नहीं बिखरती पाण्डुलिपियों पर।
ऐसे बहुत से परिवार होते हैं जिनमें कोई कविता नहीं लिखता
लेकिन अगर ऐसा शुरू हो जाय तो फिर उसे रोकना बहुत कठिन होता है।
कभी-कभार कविता पीढ़ियों में बहती आती है
- वह रच सकती है ऐसे भंवर जिनमें परिवार का प्रेम
तहस-नहस हो सकता है
मेरी बहन ने मौखिक गद्य के इलाक़े में
थोड़ी कामयाबी हासिल की है
और उसका लिखित गद्य
छुट्टियों में भेजे गए पोस्टकार्डों में सीमित है
जिनमें हर साल
एक जैसे वायदे लिखे होते हैं:
जब वह लौटती है
उसके पास होता है
इतना
इतना सारा
बताने को इतना सारा।
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4 comments:
क्या बात है! मोती ढूंढ कर लाये हैं,बड़ी संज़ीदा सी कविता है...धन्यवाद
वाह भाई. बहुत ही उम्दा.
वह रच सकती है ऐसे भंवर
जिनमें परिवार का प्रेम
तहस-नहस हो सकता है
***
कितने आराम से कितनी बड़ी बात कह दी ।
स्त्री कितना डरायेगी ?
एसी कविता की पुरानी पाण्डुलिपि का मिलना और कविता को पाथकों तक पहुचना सुखद है. बधाई. कविता सच में अच्छी है.
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