कल जब सुना , हाँलाकि बहुत से ऐसे वाकयात सुन चुके हैं हम सब , तब से इस खबर को खोजने की कोशिश थी ।यहाँ दिख गयी ।हफ्ता भर पहले भी दो औरतों को सरे आम भीड़ द्वारा चुड़ैल बताकर पीटने की खबर टी वी पर देखी थी । मुझे कहते अब ज़रा भी संकोच नही कि स्त्री की केवल उपस्थिति बदली है स्थिति नही । दो-चार परिवर्तन जो दिखते हैं वे केवल पदमूलक हैं ,संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता ।संरचना अब भी वैसी ही है - बासी !! सड़ी हुई !फफून्द लगी !
दर्पण से यह पोस्ट जस की तस यहाँ दे रहे हैं
रायपुर में समाज के ठेकेदारों ने 01 अप्रैल को एक लड़की को अर्धनग्ग होकर दौडऩे पर मजबूर कर दिया। लड़की दौड़ नहीं रही थी बल्कि उसे शहर के कुछ शरीफ लोग दौड़ा रहे थे। लड़की पर यह आरोप था कि वह जिस्मफरोशी करती है और समाज सुधारने का ठेका लेकर चलने वाले कथित लंपटों को यह मंजूर नहीं था कि वह अपना पेट पालने के लिए इस धंधे को अपनाए। जो समाज सुधारक लड़की के पीछे भेडिय़ा नजरें लिए दौड़ रहे थे शायद उन्हें पुलिस की शह मिली हुई थी। यदि पुलिस की शह नहीं होती तो मजदूरों और कर्मचारियों की जायज मांगों पर लाठी बरसाने वाली पुलिस लड़की के पीछे भागने वालों को रोकती, उन्हें खदेड़ती। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। जो लड़की जान बचाकर पुलिस के पास पहुंची, पुलिस का सबसे पहला सवाल ही यही था कि गलत काम करोगी तो लोग पूजा नहीं करेंगे? गलत तो होगा ही। लड़की ने बताया कि वह पहले गलत काम करती थी लेकिन पिछले ६ महीने से उसने यह धंधा छोड़ दिया है बावजूद इसके पुलिस यह मानने को तैयार नहीं हुई। खैर जैसे-तैसे लड़की बच तो गई लेकिन पुलिस उसे किसी खास कारण से न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सकी। पुलिस से पूछने पर पता चला कि वह विवेचना में जुटी हुई है। अब पुलिस उससे पूछ रही है कि बताओ कल कहां-कहां? किसने-किसने तुम्हारे शरीर को छुआ है? और कहां हाथ लगाया है? लड़की के साथ ऐसा क्यों हुआ इसकी भी अपनी तथा-कथा है। दरअसल लड़की के माता-पिता बचपन में ही चल बसे हैं। बहन और भाई का पेट भरने के लिए जब वह घर से बाहर निकली तो हर किसी ने उसके जिस्म को घूरना शुरू किया। हर कोई उसकी मदद तो करना चाहता था लेकिन बदले में अपने शरीर की बीमारी और तपिश जरूर देना चाहता था। मां-बाप के प्यार से महरूम लड़की दो सूखी रोटी के आगे हर किसी के सामने बिछती चली गई। लड़की स्वयं स्वीकारती है कि उसकी जिन्दगी में कई लोग आए और चले गए, लेकिन जब कभी भी उसने सुधरने की कोशिश की तो लोगों ने उसे नरक में धकेलने का ही काम किया। कल एक अप्रैल को शहर में जो कुछ घटित हुआ उसके पीछे केवल लड़की की जिस्मफरोशी ही नहीं है। लड़की जहां रहती है वहां कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो खाली मकानों पर कब्जा करने का काम करते हैं। बताते हंै कि एक ऐसे ही जमीन दलाल की नजर पिछले कई दिनों से लड़की के उस मकान पर पड़ी हुई है जिसे उसके पिता ने बनवाया था। रिद्धी-सिद्धी अपार्टमेंट के एक कमरे में लड़की की पहचान एक ऐसे व्यक्ति से जिसने उसे दिलासा दिलाया कि वह उसे इस नरक की जिन्दगी से उबार लेगा। लड़के ने अपना वचन भी निभाया, लेकिन एक दिन बेहद संदिग्ध ढंग से उस नौजवान की भी मौत हो गई जिसने उसका साथ देने की कसम खाई थी। पति का साथ छूटने के बाद लड़की ने अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए गलत रास्ता अख्तियार जरूर किया, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वह इस धंधे से बाहर आ गई। लड़की कल जब सड़क पर दौड़ रही थी तो चीत्कारते हुए यह भी कह रही थी कि जब गलत काम नहीं करो तो बोलते हैं कि गलत करो॥ कोई तो बचाओ। मां, मैं मर जाऊंगी... कोई तो बचा लो।
साभार-हरिभूमि
प्रस्तुतकर्ता मंतोष कुमार सिंह पर 10:10 AM
3 टिप्पणियाँ:
लोकेश said...
मेरा ख्याल है कि पिछले साल, छत्तीसगढ़ को देश का नम्बर 1 राज्य घोषित किया गया था!
वाकई में नम्बर 1 है, यह प्रदेश, इसकी राजधानी!
April 3, 2008 11:06 AM
Sanjeet Tripathi said...
हुआ तो गलत है इसमे कोई दो राय नही!!
हरिभूमि मैने भी पढ़ा आज!! खबर पूरी नही है इसमें सो आपकी पोस्ट मे भी वो हिस्सा मौजूद नही है जो अन्य अखबारों मे है!!
अन्य अखबारों ने यह भी जानकारी दी है कि मामला आखिर शुरु कैसे हुआ!!
खबर के मुताबिक-
यह लड़की एक अन्य के साथ बालकनी पर खड़े होकर आने जाने वालों को इशारा कर रही थी। एक लड़के को इशारेबाजी कर उपर बुलाया गया, और जब उपर लड़का पहुंचा तो उसे इन दोनो लड़की और एक सहयोगी लड़के ने डरा-धमका कर लूटना शुरु कर दिया, लड़के ने शोर मचाया तब मोहल्ले वाले पहुंचे!!
और फ़िर यह सारा मामला हुआ जो कि उपर लिखा गया है!!
मै इस सारे मामले को सही नही ठहरा रहा, दर-असल ह्यूमेन स्टोरी बनाने के चक्कर मे हरिभूमि संवाददाता ने मूल बात को दबा दिया बस वही बता रहा हूं!!
संभव हो कि मै ही गलत होऊं!!
एक पत्रकार से ज्यादा कौन जानता है भैया!! अपन तो नई!!
April 3, 2008 1:21 PM
सुजाता said... कारण कुछ भी रहा हो , यह सलूक निहायत गलत है निन्दनीय है ,मानवीयता को इस पर शर्मसार होना चाहिये ।
रचना said...
galat haen pr kyaa ?? jo punishment public nae diya yaa wo jo karne ko majbur public nae us ladki ko kiya yaa phir wo jo us ladki nae kiya ?
jarurat haen sochney kee ki aakrosh kyon haen public mae
nisendhey jo hua sharmsaar tha aur kewal jo hua wohi hii nahin uskae hone ka har karna sharmsaar hae
April 3, 2008 8:47 PM
राज भाटिय़ा said...
बाते करना,टिपण्णी करना कितना आसान हे,जब उस लडकी कॊ .. दोडाया जा रहा था जो लोग देख रहे थे,उस समय वो क्यो नही बोले,फ़िक्र मत करो अगर हम सब ऎसे ही तमाशा देख्ते रहे तो कल हमारा,हमारी बहन ,बेटी का भी नम्बर आने बाला हे,जागो ओर ऎसा करने वालो का मुकाबला करो,अगर यह सब मेरे समने होता तो मे ओरो की तरह से तमाशा नही देखता
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7 comments:
इस घटना ने हमें स्तब्ध कर रखा है पिछले तीन दिनों से, राज जी ध्यान दें "हमें". हम में है मेरे पुत्र 7वीं और 9वीं में पढ़ने वाले। और उनकी मां।
हम वो लोग हैं जिनका उस बालिका से कोई लेना देना नही है। फिर क्यों एक अबोला तनाव है मेरे छोटे से घर में ?
छोटे साहब कहते हैं - सब देख रहे थे, फोटो खींच रहे थे, किसी ने उसे कपड़े क्यों नही दिये?
राज जी सटीक बात कहने के लिये धन्यवाद।
सुजाता जी आपकी पहल और यहां के कमेंट्स ने मुझे तगड़ा शाक (ट्रीटमेंट) दिया है, मेरी बात जारी रहेगी...
जिन्हें हिंद पर नाज है वो क्हां हैं
@ Internet Existence
आप बिल्कुल बात को जारी रखिये यह बहुत अच्छा होगा । खत्म हो जाने के लिए नही उठाई गयी ये बात ।
तगड़े शॉक भी अब यहाँ के लोगो को शॉक नही करते ।
जो हुया ठीक नहीं हुया।
हमारी संवेदनायें मर गयीं हैं, यह प्रलाप ही कर पाते हैं, हम।
घटना स्थल पर होता तो पता नहीं क्या कर पाता। शायद उन्मादी भीड़ कुछ अच्छा करने ही नहीं देती।
ऐसी ही स्थिति, एन चन्द्रा की फिल्म, 'प्रतिघात' (1987) में आती है, तब नग्न नायिका को, नायक, तिरंगे से ढकता है।
यकीन मानिये, रोंगटे खड़े हो गये थे, तब।
आज उसी स्थिति को घटित होते देख रहा हूँ, समाज में।
कारण कुछ भी हो।
हमारा मानव स्वभाव, अंतिम परिणाम ही देखता है।
ये है इंडिया!
देखिये - लड़की को अर्द्ध नग्नावस्था मे दौड़ाने के विरोध में रायपुर का उबाल -दर्पण में -
http://darpan1.blogspot.com/2008/04/blog-post_2078.html
yeh aisa hi hai jaise congress ke karykarta mahatma gandhi ka virodh karne walon par hinsak ho jate hai, bible ki kahaniyon ke kai sansakaran har din dekhe ja rahe hain, iske virodh main prabal awaaj uthani jaroori hai.
sujata ji aapki tadap sahi hai, yahi tadap logon ko aage aane par prerit kregi
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