
इतिहास की ओर लौटना हमेशा बहुत रोमांचक नही होता,पर विस्मित करने वाला ज़रूर होता है जब कुछ अनछुए पहलू उजागर हो जाएँ और वह भी बहुत दूर नहीं अपने ही आस-पास महसूस होने लगे कि ,ओह!यहाँ तो वह अतीत धड़कता था जहाँ हम आज वैश्विक दौड़ में शामिल होने को भागते चले जा रहे हैं । चाँदनी चौक दिल्ली के इतिहास और राजवंशों के अतीत की ही दास्तान नही सुनाता बल्कि वह कुछ ऐसे लोगों की भी कहानी है जिन्हें हम शायद अब भी नही जानते ।।मुझे एक ग्लानिमय अचम्भा तब हुआ जब चावड़ी बाज़ार की बेगम सुमरू के बारे मे जाना । गली परांठेवाली से गुज़रता रास्ता "चूड़ीवाली की हवेली" की ओर ले जाता है और हमारे मन में एक भी सवाल पैदा नही होता कि कौन चूड़ीवाली ?

18 वी 19 वी शताब्दी के बीच का वह समय जब मुगल काल क अवसान हो रहा था और अंग्रेज़ी साम्राज्य धीरे- धीरे अपने पाँव जमा रहा था , यह चूड़ीवाली , फरज़ाना या बेगम सुमरू ,इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी ।
चूंकि फरज़ाना एक नाचने वाली {जिसके लिए कहा जाता है कि एक पारसी मूल के असद खान की उपपत्नी थी} की बेटी थी , सो दिल्ली के रेडलाइट इलाके में आ पहुँची जहाँ उस 14 साल की खूबसूरत लड़की फरज़ाना पर वॉल्टर सोम्बर{या सुमरू}{ भाड़े के यूरोपियन सिपाही } की नज़र पड़ी और वह उसे ब्याह लाया ।पति की मृत्यु के बाद उसकी एक बड़ी भाड़े की सेना जिसमें भारतीय और यूरोपीय सिपाही थे बेगम के हाथ आयी।लेकिन सेना का संचालन आसान नही था । पति के ही साथी ले वेसौल्ट से वह प्रेम करने लगी ,शायद प्रेम की उम्र ही अब आयी थी ,ब्याह की उम्र में तो वह होशमन्द भी न थी ।सेना को यह नागवार गुज़रा और सेना ने विद्रोह कर दिया । वेसौल्ट और सुमरू को रातों रात भागना पड़ा ।और खबर उड़ाई गयी कि वेसौल्ट गोली लगने से मारा गया व बेगम ने खुद को चाकू घोंप लिया ।जबकि वह जीवित थी और वेसौल्ट अपने किसी पुराने ज़ख्म से बीमार होकर मरा ।
उसके बाद से अगले 50 साल तक बेगम सुमरू ने अपनी हुकूमत बदस्तूर चलाई और बाहरी ताकतों के खिलाफ मुगल शासन का साथ दिया ।
चूड़ीवाली ,शाह आलम द्वितीय की सबसे चहेती बेटी थी जिसने तीस हज़ारी में सिखों की तीस हज़ार की सेना को दिल्ली में प्रवेश करने से रोका और बदले में सरदाना की हुकूमत उसे ईनाम में मिली ।इसके अलावा भी बहुत सी कड़ी लड़ाइयाँ उसने अपनी सेना के साथ लड़ीं ।
सरदाना और चावड़ी बाज़ार में उसी ने महल बनवाए ।
40 वर्ष की उम्र में वह रोमन कथोलिक बनी ।
एक ऐसी महिला जिसने अपने प्यार और राजनैतिक उत्तर्दायित्वों को साथ साथ निभाया ।पिता की मृत्यु के बाद अपनी माँ के साथ सौतेले भाई द्वारा घर से बेघर किये जाने के बाद शायद वह 14 साल की लड़की जानती भी नही थी कि वह इतिहास में एक महत्वपूर्ण द्स्तावेज़ बन जायेगी ।एक सैनिक से शादी के बाद उसका जीवन उसे कैसे कैसे मंज़रों से गुज़ारेगा ।जैसा कड़ा जीवन उसने जिया ,शायद उसी ने उसे इतने बुलन्द हौसले दिये ।
चान्दनी चौक की हवेलियाँ जिनका आज व्यावसायिक इसतेमाल हो रह है दुकानों के रूप में, वहाँ एक सशक्त नारीवाद उन इमारतों के बीच इस हवेली के अतीत में सपन्दित हो रहा है ।एक नाचने वाली ,एक विद्रोहिणी से एक शास्क और योद्धा बनी बेगम सुमरू का इतिहास । इसे खंगालने –पलटने –झाड़ने की ज़रूरत है ।
एकता के सौजन्य से प्रस्तुत नाटक "बेगम सुमरू" Beghum Sumroo : The rebel courtesan का एक पोस्टर।
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9 comments:
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दिलचस्प है इतिहास का यह हिस्सा। अच्छा लगता है यह जान कर कि उस समय में भी, जब औरतें केवल राजनीतिक संधियों में ली दी जाने वाली चीज़ की हैसियत रखती थीं,कुछ एक औरतें थीं जो अपनी ज़िंदगी का रुख खुद तय करने की हिम्मत रखती थीं।
दिलचस्प है इतिहास का यह हिस्सा। अच्छा लगता है यह जान कर कि उस समय में भी, जब औरतें केवल राजनीतिक संधियों में ली दी जाने वाली चीज़ की हैसियत रखती थीं,कुछ एक औरतें थीं जो अपनी ज़िंदगी का रुख खुद तय करने की हिम्मत रखती थीं।
इतिहास के पन्नों में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो भुला कर भी याद की जाती रही है।
very nicely written post congrats
बहुत सुन्दर। कृपया इस तरह के पात्रों को खोज-खोज तक लाएं और उनके बारे में हमें बताएं। इससे हमारी आंखों में पड़ी हुई माड़ी साफ होगी। धन्यवाद।
बहुत बढ़िया पोस्ट है सुजाता--thx
एक बेहतरीन जज्बा
एक उम्दा पोस्ट.
अविनाश वाचस्पति
धन्यवाद साथियों !
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