पल्लवी त्रिवेदी भोपाल मध्यप्रदेश में डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस हैं ।यह आज उनकी पहली पोस्ट है ।आशा है कि स्त्री समस्याओं से जुड़े बहुत सारे कानूनी पक्षो का रहस्योद्घाटन उनके द्वारा हो पायेगा व मसलों के कानूनी दाँव पेंच भी हम समझ सकेंगे ।पाठक पल्लवी जी से अपने प्रश्न व शंकाएँ बेहिचक रख सकते हैं ।
8 साल में इस पुलिस की नौकरी में कई खट्टे मीठे अनुभव हुए! कुछ ने इंसानियत का सबक सिखाया तो कुछ ने जेहन को झकझोर कर रख दिया!आज एक ऐसा ही अनुभव आप लोगों के साथ बाँट रही हूँ जिसने जो सवाल जेहन में छोडा ,आज तक जवाब तलाश रही हूँ....शायद आप लोग जवाब दे सकें....
घटना उन दिनों की है जब मैं ग्वालियर में पदस्थ थी! रोज़ की ही तरह मैं अपने ऑफिस मैं बैठी हुई थी तभी एक आदमी दरवाजे पर आया और अन्दर आने की अनुमति मांगने लगा, अनुमति पाते ही वह अन्दर आया और मैं कुछ पूछती या वह कुछ कह पाता ,इसके पहले ही उसने जार जार रोना शुरू कर दिया! मैंने उसे पानी पिलाया,तसल्ली दी! थोडी देर बाद वह सहज हुआ और उसने बताया कि वह भी छत्तीस गढ़ में पुलिस का ही एक जवान है! एक वर्ष पूर्व उसने अपनी बहन कि शादी ग्वालियर में की थी और तीन दिन पहले उसकी बहन को ससुराल वालों ने जलाकर मार दिया और बिना मायके वालों को खबर दिए लाश की अंत्येष्टि कर दी! इतना कहकर उसकी आँखों से फिर आंसू बहने लगे,मैं भी उसकी वेदना से द्रवित थी! उसने मुझसे चाहा की उसकी बहन को पूरा न्याय मिले और दोषियों को उनके किये की सजा मिले! मैं भी यही चाहती थी,मैंने उसे वापस भेजा और जी जान से मामले की तहकीकात में लग गयी! चूंकि मेरी सोच भी यही थी कि मामले की विवेचना इतनी मजबूत हो कि कातिलों को अदालत से कोई भी रहम न मिल सके! लेकिन मेरे सामने एक बड़ी दिक्कत यह थी कि उसकी बहन की अंत्येष्टि पहले ही की जा चुकी थी इसलिए मृत शरीर को देखने का मौका मुझे नहीं मिल पाया था और न ही शरीर का पोस्ट मार्टम हो पाया था इसलिए मैं अन्य सबूत जुटाने में लग गयी! इस बीच वह लगातार मेरे ऑफिस आता रहा और जल्दी कार्यवाही की मांग करता रहा! चूंकि मैं उसकी मानसिक हालत से अच्छी तरह वाकिफ थी इसलिए हर बार उसे आश्वासन देती रही! इस पूरे मामले की तहकीकात में कुछ दिन लगना लाज़मी थे किन्तु उसे संतोष नहीं हुआ और इस बीच उसने मेरे खिलाफ शिकायत करना शुरू कर दीं की मैं मामले में रूचि नहीं ले रही हूँ! मैं शांतिपूर्वक अपने काम में लगी रही! अगले दस दिन में मैंने सभी कातिलों को गिरफ्तार कर न्यायालय पेश कर दिया व मामले में चालान भी पेश कर दिया! मैंने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी!
खैर, मामले का ट्रायल कोर्ट में शुरू हुआ !करीब साल भर बाद मामले में फैसला आया जिसमे सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था! मुझे हैरत भी हुई और गहरा धक्का भी लगा!मुझसे कहाँ चूक हुई, यह जानने के लिए मैंने पता लगवाया की क्यों इन्हें बरी किया गया?
जो जवाब मिला उसने मुझे हिला के रख दिया! लड़की के मायके वालों ने ससुराल वालों से दो लाख रुपये लेकर राजीनामा कर लिया था व सब के सब अदालत में अपने बयान से मुकर गए, जिनमे वह भाई भी शामिल था जो दिन रात मेरे सामने रो रोकर न्याय की गुहार लगता था!
जेहन में सवाल यह है कि क्या सचमुच पैसे की हैसियत आज रिश्तों से ऊपर हो चुकी है? क्या एक भाई के आंसुओं को भी शक की नज़र से देखा जाना चाहिए? मैं आज तक जवाब नहीं ढूंढ पायी!
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17 comments:
हो सकता है. नही भी हो सकता है. यह भी हो सकता है की ससुराल वालो ने इस बार भी उनलोगों में से किसी को मारने की कोशिश की होगी. इस धरा भूमि पर कुछ सम्भव है
Rajesh Roshan
पल्लवी जी कुछ सवालों के जवाब ढूँढना बहुत मुश्किल होता है...
जहाँ तक मैं समझता हूँ, रिश्ते तो सभी के लिए अहम् होते हैं लेकिन हालात से कई बार लोग समझौता कर लेते हैं... लेकिन यहाँ गरीबी जैसी बात भी नहीं दिख रही, भाई का सिपाही होना ये दिखाता है...
मुझे लगता है की उसका आपके पास आना भी उसकी इस सोच का एक हिस्सा था... ताकि अच्छा मामला बने और वो ज्यादा रकम उगाह सके...
अरे पल्लवी जी, इस संसार में भाई की बात आप कहकर आश्चर्य में है. यहां तो मां बाप को बच्चे और बच्चों को मा बाप तक सत्ता संपत्ति के कारण भूल जाते है. अभिषेक की बात में दम है.
पल्लवी जी, गवाहों को धन दे कर या दाब धौंस से बदलना दण्ड व्यवस्था का सब से बड़ा सूराख है। कमजोर अन्वेषण दूसरा।
पल्लवी जी
आज के समय मे पैसो की दम पर सब कुछ बदला जा सकता है और आज के समय मे कुछ लोगो के सिद्धांत बदल गए है .इस प्रकरण मे कुछ ऐसा ही लगता है . न्यायालय के निर्णय तो साक्ष्य गवाह और बयानों पर निर्भर कर सकते है . न्यायालयों को इसी व्यवस्था बनाना चाहिए कि गवाही से मुकरने पर गवाह के ऊपर कठोर कार्यवाही होना चाहिए .
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क्या कहा जा सकता है, रिश्तों को तक पे रखने वालों के बारे में. आजकल कोई पीछे नहीं है, हर पोलिस अधिकारी जानता है की धारा 498(A) का उपयोग से ज़्यादा दुरूपयोग ब्लेकमेलिंग और एक्स्टोर्शन के लिए होता है. जो कानून स्त्रियों को अधिकारों से लेस करने के लिए बनाये गए थे, उन्ही का कुछ महिलायें दुरूपयोग करने लगती हैं. और बदनाम सारीस्त्रियाँ होती हैं . ऐसा करने वाले कम से कम ये तो सोचें की उनके इन कारनामों से कल असली दुखियारी और ज़रूरत मंद महिलाओं को भी शक की नज़र से देखा जाने लगता है. शायद व्यवस्था का दुरूपयोग रोकने का हमारे पास कोई उपाए नहीं है.
कोई भी बात हो सकती है...मगर हर इन्सान को एक नजरिये से नही देखा जा सकता...कुछ लोग रिश्तों को सचमुच जीते हैं... कुछ लोग रिश्तों का हवाला देकर अपना काम निकलवाना जानते है...कुछ लोग रिश्तों को एक बोझ की तरह ढोते है...यहाँ मुझे लगता है दूसरी बात हैं वह लड़का रिश्तों का हवाला देकर अपना काम कर गया...उसने आपको मोहरा बनाया यह सोच कर कि बहन तो चली गई अब वापिस आ नही सकती तो क्यों न ससुराल वालों से कुछ रूपया ही ऎंठ लिया जाये...यह बात भी सच है कई बार इंसान पर गरीबी, भूखमरी,बेरोजगारी की मार इस कदर पड़ती है कि वह रिश्तों को भी ताक पर रख देता है...सिपाही होकर एसा करना निंदनीय है...
वाकई ऐसा भी होता है ?
पल्लवीजी आपका नाम सुना सा लग रहा है शायद दैनिक भास्कर में पढ़ा हो
आप सभी लोगों ने गहनता से इस विषय पर सोचा और अपनी राय व्यक्त की! मैं सुनीता शानू जी की राय से सहमत हूँ...क्योकी बाद के समय में मैंने ऐसे कई प्रकरण देखे !लोगों ने राजीनामा करने को एक धंधा बना लिया है! अपनी ७ साल की बेटी से बलात्कार करने वाले आदमी से बाप को राजीनामा करते देखा है.......इसके आगे और क्या कहूं......
पल्लवी जी,
अगर बहुमंजिला भवन बनाना है, तो बुनियाद का मजबूत होना बेहद जरूरी है। मुझे लगता है ठीक ऐसे ही किसी केस को जीतने के लिए बुनियाद बेहद मजबूत बनानी चाहिए।
आपने जो केस सामने रखा उसी के संदर्भ में कुछ बातों पर गौर करें :
1. मैंने माना कि उस छत्तीसगढ़ के पुलिस के जवान ने आपको एक मोहरा बनाया और बहन की मौत का सौदा ससुरालवालों से किया। इसके लिए उसने अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ आपको अपने पक्ष में लिया, भले ही इसके लिए उसे जो नौटंकी करनी पड़ी हो।
२. उसने अपने मोहरे को अपने तय प्लान के साथ इस्तेमाल किया। उसने आपको अपने प्लान से बाहर सोचने का मौका ही नहीं दिया। उसने जो आधार दिया, उसके बाद के स्टेप्स पर आप सोचती रहीं।
३. माना कि केस जीतने के लिए आप बड़ी मेहनत से सबूत जुटाती रही होंगी। पर क्या कभी उस पूरे परिवार को मानसिक स्तर पर तैयार करने की आपने कोई कोशिश की कि वह परिवार अपनी बेटी के कातिलों को सजा दिलवाने के लिए किसी हालात से समझौता न करे।
शायद नहीं। अगर इस संदर्भ में उस परिवार से आपने कोई बात की होती तो शायद आपके सामने आ जाता कि एक ने हत्या की है और दूसरा उसे भुनाने चला है।
यानी, कुल मिलाकर केस जीतने की बुनियाद ही बेहद कमजोर थी। जिसके टूटते ही केस टूट गया।
हो सकता है कि मेरी ये बातें बेहद अव्यावहारिक लगें। पर मुझे लगता है कि सरकारी पक्ष की गतिविधियों को भी बेहद बारीक तरीके से ध्यान में रखकर पुलिस को काम करना चाहिए। शायद इससे सरकारी पक्ष के मुकरने के पहले ही पुलिस को उसकी भनक मिल जाये।
सरकारी पक्ष को मानसिक रूप से तैयार करने को मैं केस जीतने की मजबूत बुनियाद मान रहा हूं।
वैसे बातें और भी हैं, पर वह बहस का अगला चरण होगा, क्योंकि एक छोटी सी प्रतिक्रिया में ढेर सारी बातें डाली नहीं जा सकतीं। आपके जवाब की प्रतीक्षा में, क्योंकि आपके पास अनुभव है और मेरे पास कोरी कल्पना।
आप आज तक जवाब नहीं ढूंढ पायीं. ऐसा क्यों? पैसों की चमक में रिश्ते आंखों से ओझल हो रहे हैं यह तो अब एक आम बात हो गई है. शिक्षा का प्रतिशत बढ़ रहा है. उस के साथ पैसों की चमक भी बढ़ रही है.
क्या इस मामले में आप ने लड़की के मायके वालों और विशेष रूप से लड़की के भाई से बात की? शायद आप को जवाब मिल जाता.
पल्लवी जी:
ऐसे ही कई और अनुभव आप की जीवन में आयेंगे जब कि पूरे ईमानदार प्रयास के बावज़ूद परिणाम सही नहीं होंगे ।
ऐसे में स्वयं अपने प्रति आस्था और विश्वास बनाये रख्नना कठिन लेकिन ज़रूरी होता है ।
शुभ कामनाओं के साथ ...
अनुराग अन्वेषी जी.....
आपके विचार सही हैं !आपका यह कहना कि मुझे उसके परिवार वालों से बात करनी चाहिए थी और इस बात के लिए तैयार करना चाहिए था, बिलकुल सही है! लेकिन मैं यहाँ यह उल्लेख करना भूल गयी थी कि वह ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मेरी पहली पोस्टिंग थी और उस वक्त यह मेरा पहला अनुभव था और यह सोचना भी मेरे लिए ना मुमकिन था कि ऐसा भी हो सकता है! बाद में ये चीज़ें सामान्य हो गयी! और बाद के मेरे अनुभव के आधार पर मैं ये कह सकती हूँ कि १००% लोग ऐसे नहीं हैं लेकिन काफी संख्या में अभी भी ऐसे लोग हैं जो पैसे के लिए कानून का दुरूपयोग करते हैं और दुर्भाग्य वश हमारी विवेचना का स्तर और न्याय प्रक्रिया मैं भी काफी कमियाँ हैं!
सुरेश गुप्ता जी...
मुझे वो भाई तो दोबारा नहीं मिला लेकिन उसके परिवार वालों से मैंने इस बारे में पूछा था ,उनका जवाब वही था जो सुनीता शानू जी ने कहा कि जानेवाला तो गया अब हाथ आई लक्ष्मी क्यों छोडें?
aajkal insaan itna lalchi ho gaya hai ki paiso ke liye kuch bhi karne ko taiyaar ho jata hai. kabhi -kabhi to wah apne parivaar tak ko khatam karne ka unka istemaal karne se bhi peeche nahi rahta.
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