सुनीता गर्भवती थी। उसे उसके पिता, भाइयों, रिश्तेदारों और गाँववालों ने अभूतपूर्व एकता का परिचय देते हुए बेरहमी से मार डाला। इसके बाद क्या कुछ और कहना बाकी है? क्या यह बताने से अपराध की बर्बरता में कुछ कमी होगी कि उसने उस पति को छोड़ दिया था, जिससे उसके घरवालों ने उसकी शादी की थी और अपने दस साल पुराने प्रेमी जसबीर के साथ रह रही थी ?
करनाल के बालाह गाँव में जसबीर को भी उसके साथ मारा गया और फिर लाश को घर के सामने पेड़ पर लटका दिया गया। सुनीता के पिता ने शान से पुलिस के सामने जाकर समर्पण किया जैसे भगतसिंह ने संसद में बम फोड़ने के बाद किया था। हत्याएं बहुत होती हैं, लेकिन बड़ी बात है कि पूरे गाँव को इस कृत्य पर गर्व है।
पिछले कुछ सालों मे एक शब्द बहुत तेजी से चला है- 'ऑनर किलिंग' यानी 'प्रतिष्ठा' बचाने के लिए हत्या। और यह जो तथाकथित प्रतिष्ठा है, यह सब स्त्रियों से ही है। पुरुष कितना भी पतित हो, ऐसे किसी परिवार या समाज की इज्जत पर रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ता, लेकिन लड़की अरेंज मैरिज करने से मना कर दे, या किसी से प्रेम करने लगे या भाग जाए तो फिर उसे मारना ही इन लोगों के पास एक विकल्प रह जाता है। फिर बार बार ऐसा कुछ किया जाता है, जिससे बाकी लड़कियों के मन में भय बैठे। मीडिया पेड़ पर लटकी हुई लाशों को बार बार टी वी पर दिखाता है जिससे बसथली, शेखपुरा, उचाना, शम्सीपुर या मेरठ, ग्वालियर, बीकानेर या दिल्ली, मुम्बई, बैंगलूर में भी किसी कच्चे-पक्के घर या ऊँची इमारत में टी वी देख रही लड़कियाँ ऐसा सोचते हुए भी काँप जाती हैं। बालाह के सरपंच कहते हैं कि ऐसा किया भी इसी उद्देश्य से गया है कि लड़कियाँ ऐसी हरकत करती हुई डरें।
माने आप बताएंगे कि उन्हें करना क्या है, दुपट्टा कहाँ तक होना चाहिए, चलते हुए पैर किस तरह पड़ने चाहिए, अख़बार का कौनसा पन्ना उन्हें नहीं पढ़ना चाहिए, कितने बजे तक अच्छी लड़कियों को सो जाना चाहिए, पढ़ाई करनी है तो कौन कौन से विषय उनके लिए अच्छे रहेंगे (अक्सर सिर्फ़ होमसाइंस), कौनसी नौकरी उनके लिए ठीक है (मैंने पढ़े लिखे समझदार बुद्धिजीवी लोगों को भी बहुत जोर देकर यह कहते हुए सुना है कि लड़कियाँ नौकरी करें तो टीचर ही बनना चाहिए, बाकी काम उनके लिए ठीक नहीं है), चरित्रहीन न लगें इसके लिए किस उम्र तक उन्हें शादी कर लेनी चाहिए........
और यदि एक भी बात वे नहीं मानती तो आपका परिवार बदनाम हो जाता है और फिर आपको वही करना पड़ता है, जो राम ने सीता के साथ किया था...आग में फूंक डालना।
ऐसा भी नहीं है कि यह मानसिकता गाँवों में ही है। लड़की बग़ावत कर रही है तो यही समाधान बालाह से लेकर बम्बई तक सबको सूझता है। ज्यादातर मामलों में लड़की के साथ उसके प्रेमी को भी मार दिया जाता है मगर यही क्यों कहता है कि यह कृत्य हमेशा लड़की के परिवार वाले ही करते हैं?
इसका सबसे आश्चर्यजनक और दुखद पहलू यह है कि परिवार की महिलाएँ भी पुरुषों को पूरा समर्थन दे रही होती हैं। एक उम्र तक आते आते शायद वे भी इसी तालिबानी सोच का अंग बन जाती हैं या यह कहा जा सकता है कि वे इतनी असंवेदनशील हो चुकी होती हैं कि औरत होकर भी औरत का दर्द नहीं समझ पाती। यह सबसे चिंताजनक तथ्य है क्योंकि ऐसा होने पर हत्यारों को लाइसेंस मिल जाता है कि वे सही हैं।
बालह वाली घटना के चार दिन बाद ग्वालियर में एक सेवानिवृत्त सैनिक ने अपनी बीस साल की बेटी वन्दना को इसलिए मार डाला था कि वह एक मराठी युवक से शादी करना चाहती थी। उससे पहले आठ अप्रैल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गढ़िया गाँव में एक किशोरी ममता इसलिए मार दी गई क्योंकि उसके पिता ने उसके कमरे में उसकी क्लास के एक लड़के को देख लिया था।
वन्दना की माँ कहती है कि उसके पति ने सही किया। ममता की दादी कहती है कि उसे यही सजा मिलनी चाहिए थी।
सुरेश गुप्ता जी ने अपनी एक पोस्ट में एक केस बताकर कहा था कि क्या वह नारी का रूप है, जिसने अपने परिवार वालों को बेरहमी से मार दिया। उनसे आग्रह है कि ये तथ्य देखें-
हरियाणा के डीजीपी के अनुसार हरियाणा में होने वाली महिलाओं की हत्याओं में से दस फीसदी ऑनर किलिंग्स होती हैं।
2007 में आई पी एस एस द्वारा करवाए गए एक सर्वेक्षण में 655 ऑनर किलिंग्स दर्ज़ हुई थी, जिसमें से 25% अकेले मुज़फ्फरनगर जिले में थी और 32% पंजाब और दिल्ली में। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में यह हत्याएं सबसे ज्यादा हैं। ये सब जाटबहुल इलाके हैं और ऐसे ज्यादातर मामले भी जाट समुदाय के ही हैं। बहुत से मामलों में तो पंचायतें यह फैसला सुनाती हैं।
ये चोखेरबाली हैं, जिन्हें अपने पिताओं, भाइयों, माँओं से ही सबसे ज्यादा खतरा है...और उनकी गलती सिर्फ़ यही है कि वे आज़ाद होकर अपने फैसले अपने आप लेना चाहती हैं।
गौरव सोलंकी
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bilkul sahi kaha aapne..hamare desh ka yah doglapan hi hai.
सहमत हूँ
हमारे समाज ने कभी ऒरत को उसकी मर्जी से जीने का हक नहीं दिया ऒर यदि कभी किसी ने आवाज उठाने की कोशिश की हॆ तो ऎसे ही बेरहम तरीकों से उस आवाज को कुचल दिया गया हॆ। It is disgusting
ऑनर किलिंग्स या जो भी नाम इन हत्त्याओं को दिया जा रहा है, किसी हालत मैं भी सही नहीं ठहराई जा सकतीं. यह सब एक जानबूझ कर, प्लान बना कर की गई हत्त्याएं हैं. यह हत्त्याएं परिवार और समाज के माथे पर एक कलंक है.
एक बात कहना चाहूंगा, इस सब में राम और सीता को बीच में क्यों ले आए आप? यह अच्छा नहीं लगा.
सुरेश जी, यदि रामायण की कहानी में सीता आग में जल गई होतीं तो क्या वह ऑनर किलिंग का सबसे पुराना केस नहीं होता? सीता और राम विषय के कारण ही बीच में आए हैं।
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