एक मजदूर आठ घंटे काम करता है और दिन के अंत में वो १०० रुपये पाता है ,शायद थोड़े कम या ज्यादा भी हो सकते हैं!एक क्लर्क शायद महीने के ५००० रुपये ,टीचर भी लगभग इतने...यानी हर व्यक्ति अपने काम का मेहनताना पा रहा है और सच भी है...कार्य का मूल्य तो होना ही चाहिए!
अब एक और द्रश्य....एक गृहणी सुबह से रात तक जो जो काम करती है वो किसी एक दायरे में नहीं रखे जा सकते!सारा गृहकार्य, बच्चों की देखभाल,पढाना, घर का प्रबंधन,बजट में घर चलाना,परिवार के सभी सदस्यों को मानसिक सपोर्ट देना....ये सारे काम बदस्तूर जिंदगी भर चलते रहते हैं...लेकिन इसके एवज़ में उसे कोई तनख्वाह नहीं मिलती है!इतना कार्य करने के बाद भी वो आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है!क्यों उसके कार्य का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कोई योगदान नहीं है? (GDP is defined as the total market value of all final goods and services produced within the country in a given period of time .)
आजकल कई देशों में इस पर विमर्श चल रहा है की किस प्रकार एक हाउस वाइफ द्वारा किये जाने वाले कार्य के बदले वेतन या मानदेय दिया जा सकता है और जनसँख्या का एक बड़ा प्रतिशत इससे सहमत है! कुछ लोगों का मानना है कि ये सब निजी कार्य की श्रेणी में आता है और इससे किसी अन्य को या सरकार को कोई लाभ नहीं है इसलिए वेतन की मांग करना तर्कसंगत नहीं है!
किन्तु वहीं इसके पक्ष में लोगों का कहना है कि घर चलाना ,बच्चों की परवरिश करना प्रत्यक्ष रूप से निजी कार्य भले ही दिखाई देता हो लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से प्रत्येक परिवार का सुचारू रूप से चलना ही किसी भी राष्ट्र की उन्नति और खुशहाली का आधार है! मैं भी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ! क्या हो यदि...गृहणी इन सभी कार्यों को करने से इनकार कर दे! दो बातें हो सकती हैं...सभी कार्यों को करने के लिए कोई नौकर रखा जा सकता है...लेकिन वो भी बिना वेतन के कार्य नहीं करेगा..यानी घर पर किये जाने वाले कार्य का भी मूल्य है! दूसरा काम ये हो सकता है कि पति और बच्चे अपना अपना सारा काम स्वयं करें! काम तो चल जायेगा किन्तु कहीं न कहीं परिवार में असंतोष जन्म लेगा और इसका असर बच्चों की पढाई और पति की प्रोफेशनल लाइफ पर पड़ेगा!
यहाँ एक प्रश्न ये उठता है कि जो महिलायें नौकरी करती हैं वो उतना घर का काम नहीं करती हैं जितना एक गृहणी करती है फिर भी घर सुचारू रूप से चलता है! बिलकुल सही बात है...उन घरों में स्तिथि दूसरी होती है वहाँ अपेक्षा की जाती है कि पति भी नौकरी के अलावा घर के कार्यों में बराबरी से हाथ बंटाए और पढ़े लिखे परिवारों में ऐसा होता भी है! एवं उन घरों की आर्थिक स्तिथि ठीक होने से वहाँ वेतन देकर नौकर भी रखा जा सकता है!
किसी ने मुझे बताया था कि शायद किसी देश ने हाउस वाइफ के लिए वेतन देना शुरू कर दिया है..मैंने नेट पर सर्च किया लेकिन मुझे पता नहीं चल सका कि क्या सचमुच कहीं पर ये व्यवस्था शुरू हो चुकी है और अगर हाँ तो किस देश में! यदि आप में से किसी को पता हो तो कृपया जरूर हमें भी बताएं!
ये अलग मुद्दा हो सकता है कि इसके लिए बजट कहाँ से आएगा और सरकार किस प्रकार से इसे कार्यान्वित कर सकेगी....मगर ये बात निश्चित है कि यदि कभी ऐसा संभव हो सका तो ये प्रश्न हमेशा के लिए ख़तम हो जायेगा कि " are u housewife or working?" विडंबना ही तो है कि इतना काम करने के बाद भी उसे वर्किंग की श्रेणी में नहीं माना जाता क्योंकि उसे इन कामों का पैसा नहीं मिलता है! यदि एक महिला को उसके गृहकार्यों के लिए वेतन मिलेगा तो निश्चित रूप से उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी और साथ ही वह आर्थिक रूप से भी किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहेगी...आप सभी के इस मुद्दे पर विचार आमंत्रित हैं...ये बहस का नहीं बल्कि संयुक्त रूप से सोचने का विषय है!
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15 comments:
http://endofmen.wordpress.com/2008/02/19/housewife-would-be-paid-30000/
बस तो फ़िर घर दफ्तर बन गया समझो........
पल्लवी एक अच्छा मुद्दा उठाया है । घरेलू कार्यों को जैसे ही नौकर से करवाने की बात आये तो समझ आता है कि घर पर बैठने वाली स्त्री दर असल कितना श्रम और समय होम मैनेजमेंट मे लगा रही है । उसके काम और श्रम और समय की लागत को सम्मान नही मिलता । वेतन देने की बजाय उसे इस सम्मान का हकदार होना चाहिये डॉ अनुराग की बात से यह भी प्रश्न भी दिमाग मे आया कि-- वेतन कौन देगा ? पति ?
।कुछ स्पष्टता इसे लेकर मुझे भी नही हो पायी । पर आस पास देखा है कि घरेलू स्त्रियाँ जब पति से धन मांगती हैं तो उन्हें कई तरह के स्पष्टीकरण और हिसाब देने होते हैं या झिड़की खानी होती है ।मेरी एक मित्र की माँ आज भी घर खर्च के गिने गिनाए पैसे ही पाती है । बेटी बहू को कुछ देना हो तो उसे कहीं घर के रेग्युलर खर्च में कुछ महीने तक घपला करना होता है क्योंकि पति से धन की मांग की लिमिटेशन्स हैं ।
एक तरह से गृहणी का अर्थ पर तो कोई नियंत्रण होती ही नही । नौकरी करने वाली स्त्रियों का भी किस हद तक होता है यह एक नया सवाल है । पर निश्चित रूप से वे घर पर रहने वाली स्त्री से इस मायने मे अधिक आज़ाद हैं कि पूंजी उनके हाथ में आती तो है ।
कुछ अपवाद ऐसे भी हैं जहाँ पति की जेब साफ हो जाती है और पति उफ भी नही कर सकता , या जहाँ हर उत्सव पर गहनों की डिमांड आती है । पर सच कहें तो यह सब मध्यवर्गीय स्त्रियों की समस्याओं के ही दायरे हैं । निम्नवर्गीय या निम्न मध्यवर्गीय स्त्री जो घर पर रहती है या कोई छोटी मोटी नौकरी भी करती है अर्थ उसके नियंत्रण से बहुत दूर है अभी ।
ऐसे में मुझे सूर्यबाला की एक कहानी याद आ रही है , जल्द ही सभी से बांटती हूँ ।
इस विषय पर विस्तार से बात होनी चाहिये ।
क्या हो गया है चोखेरवालिओं को, कैसे मुद्दे उठा रही हैं बहस के लिए? एक मजदूर, एक क्लर्क, एक टीचर से तुलना कर रही हैं गृहणी की. मजदूर, क्लर्क, टीचर काम करते हैं और मेहनताना पाते हैं. आज वह यहाँ हैं, कल वह कहीं और होते हैं. कार्यस्थल से उनका बस इतना ही रिश्ता होता है कि काम किया, मेहनताना लिया और नमस्ते. क्या घर में गृहणी का यही रोल है?
क्या यह जरूरी है कि हर बात को नकारात्मक रूप में देखा जाए? घर को चलाने में पुरूष और नारी का बराबर अधिकार और जिम्मेदारी होती है. अगर नारी को लगता है कि उसे उसका अधिकार नहीं मिल रहा तब उसे उस अधिकार की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना चाहिए. यहाँ तो उल्टा हो रहा है. ख़ुद को घर में मजदूर के रूप में देखा जा रहा है. यह कैसा संघर्ष है अपने अधिकार के लिए?
पल्लवी आप एक अविवाहित , सक्षम महिला ३० वर्ष के अंदर हैं , मै एक अविवाहित , सक्षम महिला 48 वर्ष की हूँ , सुजाता एक विवाहित , सक्षम महिला ३० -३५ वर्ष के अंदर हैं पर वोह इस ब्लॉग की सूत्रधार हैं यानी उनका कमेन्ट एक summerization होता हैं . कल जब आप की ये पोस्ट आई तो स्मित के रेखा मुख पर आगई और मैने कमेन्ट करने से अपने को रोका पर जानती थी की कोई भी विवाहिता स्त्री इस पर कमेन्ट नहीं करेगी { सुजाता का कमेन्ट अपवाद होगा कोई उन्हे तो करना ही है !!!!! } . जिस समस्या का सीधा प्रभाव जिस पर पड़ना हैं अगर वो ही नहीं बोलेगा तो आप के मेरे या सुजाता के बोलने से क्या होगा . हिन्दी ब्लॉग्गिंग में विवाहित महिला ब्लॉगर बहुत हैं और आप के इस ब्लॉग को पढ़ती भी हैं , फिर ये चुप्पी क्यों { क्या इसलिये की पोस्ट शनिवार को आयी !!! } . बार बार विवाहित स्त्रियाँ ब्लॉग पर ही नहीं जगह जगह प्रिंट मीडिया , साक्षात्कार , टीवी , आत्म कथा लिखती हैं और ५० % से ज्यादा अपने आप एक घुटन का खुलासा करती हैं . और फिर कहा जाता हैं सामाजिक व्यवस्था को एसा करो की सबको स्वयं आज़ादी मिल जाये . क्यों समय रहते विवाहित स्त्री अपने अधिकारों के लिये नहीं बोलना चाहती हैं . और अगर इन सब बातो को जो प्रश्न आप उठा रही हैं वोह गैर जरुरी समझती हैं तो क्यों फिर बाद में सबसे ज्यादा सिस्टम के खिलाफ एक विवाहित स्त्री ही बोलती हैं लकिन तब बोलती हैं जब वो उस सिस्टम में पुरी तरह रम चुकी होती हैं और उसके बेस्ट का फायदा ले चुकी होती हैं . ब्लॉग्गिंग में सब पढ़ी लिखी महिला हैं फिर भी किसी विवाहित स्त्री को इस पोस्ट पर कमेन्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई ?? ये लिखने में कितना समय लगता हें की हाउस वाइफ को वेतन मिलना या नहीं मिलना चाहिये . अगर कोई बोलना ही नहीं चाहता तो क्या फायदा हैं विमर्श का . चाहे वोह चोखेर बाली ब्लॉग पर हो या नारी ब्लॉग पर .
व्यक्तिगत तोर पर मै विवाहित स्त्री के वेतन के ख़िलाफ़ हूँ और स्त्री की आर्थिक रूप से सक्षम होने के पक्ष में हूँ . पर जिनको फर्क पढ़ना चाहिये वहाँ सिर्फ़ मौन हैं सन्नाटा हैं
mera vyaktigat taur par maanna hai hai ki har vyakti ke kaam ka moolya hona hi chaahiye!sabke apne vichaar hain....main to is vyavastha ka samarthan karti hoon.jis din koi bhi country aisa karna shuru kar degi sabhi deshon mein is vishay par bahas hone lagegi.
मूल मुद्दा कुछ भटका (स्त्री विमर्श के मुद्दे अक्सर भटकते हैं- भटकाए भी जाते हैं) तनख्वाह मिले या नहीं से ज्यादा अहम है कि स्वीकारा जाए कि इस काम का 'मूल्य' है। परिवार की 'महानता' स्त्री के 'त्याग' आदि के महिमामंडन में इस घरेलू काम को आर्थिक तौर पर निरर्थक क्रिया न मान लिया जाए।
2002 में एक स्त्री समूह में दिल्ली विश्वविद्यालय में यह आंकलन किया और पाश कि मध्यम वर्ग में जब पति की आय औसतन 8000 थी तब पत्नी के घरेलू कार्य की बाजार कीमत 12000/- के लगभग थी। बहुत ही कच्चा आंकलन था जो पति के घर में किए गए कामों को नजरअंदाज करता था पर फिर भी कम से कम ये तो पता चलता है कि यदि घरेलू काम का आर्थिक मूल्य नजर में रखा जाए तो घरेलू भी वर्किंग माना जाएगा।
नहीं पल्लवी कि पोस्ट का मुद्दा बिल्कुल " crystal clear " हैं और उनका कमेन्ट भी इसी और हैं हर व्यक्ति के क्षम का मूल्य होना चाहिये और आज कल के दौर मे मूल्य का अर्थ बिल्कुल सीधा हैं कि काम का पैसा मिले । घरेलू काम के लिये गृहिणी को गृहकार्य का वेतन मिलना चाहिए , या नहीं । जहाँ तक मेरी अल्प जानकारी हैं शायद नोर्वे सरकार ये करती हैं पर मुझे doubt हैं कि वोह इसे house wife allowance कि तरह देती हैं या unemployed कि तरह . मसिजीवी जी commercialization का ज़माना हैं इस लिये मूल्य का मतलब आर्थिक मूल्य हैं ।
हर व्यक्ति के क्षम का मूल्य होना चाहिये और आज कल के दौर मे मूल्य का अर्थ बिल्कुल सीधा हैं कि काम का पैसा मिले
rachna se poori tarah sahmat....
अज़ीब सी बहस हो रही है । समझ नहीं आता कि यह श्रम का मूल्य सरकार से दिया जाने को कहा जा रहा है या पति से ?
यदि सरकार से इस की अपेक्षा की जा रही है तो उसका क्या औचित्य है ? सरकार निजी क्षेत्र में काम करने वाले किसी पुरुष को पैसा नहीं देती । सरकार सिर्फ़ उन पुरुषों को वेतन देती है जो सरकारी नौकरी करते हैं और सरकार के काम को आगे बढाने मे योगदान देते हैं । घर में काम करना महत्वपूर्ण तो है लेकिन सरकार के काम में किस तरह सहायता कर रहा है ? फ़िर वेतन कार्य की कुशलता और योग्यता पर निर्भर करता है, क्या सरकार आप के घर में उसे आंकने के लिये आयेगी ?
पति से घर मे किये गये कार्य के लिये वेतन की अपेक्षा सैद्धांतिक रूप से अच्छी लगती है लेकिन व्यवहारिक नही । क्या घर में किये गये हर काम का आप आर्थिक मूल्य लगाने लगेंगे ? आज मैं बाज़ार से सामान ले कर आया , उस का मूल्य इतना हुआ , आज खाना बनाने का मूल्य इतना हुआ , अच्छा आज घर की सफ़ाई नहीं हुई , इसालिये उसका पैसा काट लिया जायेगा । स्थिति हास्यास्पद सी नहीं हो जायेगी ? फ़िर यदि स्त्री के श्रम की कीमत लग रही है तो पुरुष जो परिवार के लिये कर रहा है , उस की कीमत क्यों नहीं ? परिवार को यदि इकाई की तरह ही लिया जाये तो बेहतर होगा
हां स्त्री के काम का महत्व है और उसे स्वीकार किया जाना चाहिये , घर की हर चीज़ में उस का बराबर का हिस्सा होना चाहिये, कानून मे बदलाव हो कि ’सेपरेशन’ की स्थिति में स्त्री को उस का पूरा हक मिले लेकिन श्रम की कीमत की तरह ’वेतन’ की बात व्यवहारिक नहीं लगती ।
मेरा हर कमेंट एक पाठक के तौर पर होता है न कि किसी की पोस्ट को कनक्लूड करता हुआ ।
इस मुद्दे पर अनूप जी से सहमति है ।
घरेलू श्रम के मूल्य की बात महत्वपूर्ण है लेकिन वह मूल्य क्या हो और उसे किससे प्राप्त किया जाएगा यह बड़े सवाल हैं । पत्नी बनने का वेतन समझ नही आता । घरेलू कार्य स्त्री अपने बसाए घर के प्रति स्नेह और प्यार से करती है , इसे किसी की ज़िम्मेदारी या कमज़ोरी नही मानना चाहिये , न ही इस कारण किसी को हीन समझना चाहिये ।यदि वह कामकाजी भी है तो यह श्रम कई गुना हो जाता है । इसका उपाय आपसी सामंजस्य से घरेलू कामों को निबटाकर किया जा सकता है ।जो कि आमतौर पर नही होता ।
दूसरी बात वही ,
कि घर मे रहने वाली पत्नियाँ कुछ नही करतीं यह मत गलत सिद्ध करने के लिए ही इस प्रकार के शोध होते हैं जो साबित करते हैं कि आप वास्तव में घर की स्त्री के किये काम का बाज़ार मूल्य लगाने चलेन्गे तो पायेंगे कि उसका किया काम कितना महत्वपूर्ण है ।
तीसरी बात ,
यदि पल्लवी और रचना से सहमत हुआ जाए तो जब पति कार चलाकर परिवार को कहीं ले जाता है तो उसे अपनी ड्राइवरी की कीमत वसूल करनी चाहिये । तो इस तरह बच्चे भी घर का एकाध काम करने , बाज़ार से दूध-दही ले आने के बदले पैसा वसूल करेंगे ।
चौथी बात ,
इस तरह से आप पुरुष के वर्चस्व को और अहमियत दे रही हैं और साबित कर रही हैं कि वास्तव में पुरुष मालिक है । वह पत्नी से मनचाहे ढंग से काम करायेगा और सहानुभूते भी नही रखेगा क्योंकि वह उसके श्रम का सारा बाज़ार मूल्य अदा कर रहा होगा ।इसमें क्या क्या श्रम शामिल करना चाहेंगी ? सम्भोग भी ?
बहुत सम्भव है कि मसिजीवी जी ने जैसा कहा कि - बहस कहीं और ही भटक रही है ।
साधारणत: घरेलू पत्नी का घर के आर्थिक ढांचे पर कोई नियंत्रण नही होता और उसका घर में दिया जाने वाला श्रम महत्वहीन समझा जाता है । मेरे खयाल से हमें इसके आस पास रहकर बात करने की ज़रूरत है ।
Roman mein hindi ke liye kshama.
Mere vichar se Ghar ke kam ke Vetan ki jagah baat honi chahiye ghar par rehne ali stree ko aarthik roop se swatantra bananey ki.
Uske liye pati aur patni milkar ek joint account khol saktey hain, pati ki sari salary vahan ho aur donon apney vivek se use istemal karein.. Ya patni ka individual account ho jisme pati har mah fixed paisa daley.
Issey samasya kafi had tak door ho jayegi.
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