पेशे से टीचर हूं। रोज घर से स्कूल के बीच अनेक अनुभव होते हैं। यहां तक कि स्कूल में भी। कई दफा ऐसे वाकये सामने आते हैं कि मन खिन्न हो जाता है। जैसे कल का ही वाकया। यह घटनाक्रम औरतों को उनकी औकात बताने की साजिश से कम नहीं है।कल छुट्टी का दिन था। सो, एक सहेली के पास गई थी। कुछ देर इधर-उधर की बातों के बाद वो अपना दुखड़ा सुनाने बैठ गई। दरअसल उनके परिवार में तीन भाइयों के बीच हाल ही बंटवारा हुआ है। वो अपने एक बेटे और दो बेटियों को राजधानी में पढ़ाना चाहती है। उसका गांव कोई ४५ किलोमीटर दूर है शहर से। अपने एक बेटे को तो शहर में एक स्कूल में दाखिला दिलवा दिया। साथ में उनकी बड़ी बहन के बेटे को, जो इस साल १२ वीं में पहुंच गया है, को भी दाखिला दिलवा दिया। .....परसों वो अपनी दो छोटी-छोटी प्यारी सी बेटियों को भी पढ़ाने के लिए राजधानी ले आई। यह बात शायद उनके जेठ, जो उनके जीजा भी हैं, को सहन नहीं हुई कि औरत कैसे इतना बड़ा फैसला ले सकती है। ...........
एक महिला, जिसने दो बेटियों के लिए कुछ साहस दिखाया तो उसे समूचे समाज ने मिलकर कमजोर साबित कर दिया। सबने जता दिया कि वह घर, परिवार, समाज तथा रिश्तों की देहरी से बाहर नहीं है। जब उसने प्रतिरोध की ध्वनि को अनसुना कर राजधानी में कदम रखे, तो यह घर के पुरुष को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसका अहं आहत हुआ और उसने समाज का सहारा लिया। उसके पैरों में जंजीर पहना दी। एक औरत को, कमजोर साबित कर एक भयभीत पुरुष का अहंकार शांत हो गया? नहीं, यह उसका भ्रम है, क्योंकि सम्पूर्ण चर्चा के बाद उस सहेली की आंखों में मैंने दृढ़ता के भाव देखे हैं। जो और भी बड़े फैसले की ओर बढ़ रही है।
स्पेस फॉर विमेन
5 comments:
ऐसी घटनाएं दुखद है. इन्हें किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता. एक स्त्री एक फ़ैसला करती है. इस से एक पुरूष का अहम आहत होता है. वह इस फैसले के रास्ते में वाधाएं पैदा करता है. लेकिन इस के लिए उसे पूरे समाज का समर्थन मिला है ऐसा कहना ग़लत है. उस ने ऐसा करने के लिए, अपने जैसे कुछ पुरूषों का सहयोग लिया होगा. संभवतया उसे कुछ स्त्रियों का सहयोग भी मिला होगा. मेरे विचार में स्त्रिओं को स्त्रियों के ऊपर हो रहे अत्त्याचार के ख़िलाफ़ एक होना चाहिए. अगर स्त्रियाँ एक हो जांए तो ऐसे पुरुषों को हिम्मत नहीं होगी स्त्रियों पर अत्त्याचार करने की. ऐसी स्थिति में सही सोच वाले पुरुषों का समर्थन भी मिलेगा स्त्रियों को. पूरे समाज पर दोष लगाने से बात नहीं बनेगी.
दुखद हैं ऐसी घटनाएं फिर भी सलाम है उन महिलाओं के हौसले को जो सही के लिए लड़ रही हैं।
अभी-अभी अन्नूजी की पोस्ट से होकर लौटा हूँ। अच्छा मुद्दा उठाया है। मैने जल्दी में टिप्पणी भी कर दी जिसे पढ़कर मेरी घरवाली ने मर्दों को जमकर लताड़ा। इस घमासान की आशंका के मद्देनज़र मुझे वहाँ दुबारा जाना पड़ा। अपनी पोजीशन क्लीयर करने। …
अब लगता है कि नारी को बहुत दिनों तक घर के भीतर बन्द रखना आसान नहीं रहेगा। उचित तो कभी नहीं था यह…।
ये घटनाएं परंपरागत खेतिहर समाजों में आम हैं जहां रोजगार के लिए शारीरिक ताकत को जरूरी माना जाता है और उसी से परिवार में शक्ति समीकरण भी तय होते हैं। लेकिन इन कमजोर कड़ियों को ताकत देने के लिए महिलाओं को शब्दों के अलावा ऐक्शन में भी कोशिश करनी होगी। क्या चोखेर बाली के शब्दों की गूंज कहीं तक पहुंच रही है?
दुःख होता है ऐसी घटनाओं को पढ़ कर,लेकिन हिम्मत बढ़ जाती है जब पता चलता है की ऐसे हालत में भी ओरत हार नही मानती...वाकई सलाम है,
सुजाता जी से....सुजाता जी,क्या बात है आपने मेरे ब्लॉग पर आना ही छोड़ दिया...आपके कमेन्ट मुझे नई ताकत देते थे...आपका सिर्फ़ इतना कहना की अच्छा लिख रही हो , बस लिखती रहो...बहुत कुछ कह जाता था मुझ से...मुझे शिद्दत से आपका इंतज़ार रहता है...
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