नारी है भावुकता, नारी है सह्रदयता
नारी है उदारता, नारी है सहिष्णुता
नारी है त्यागमयी, नारी साक्षात् ममता
नारी है क्षमाशील, नारी ही है स्थिरता
नारी ही है जननी, नारी ही है दुहिता

नारी का हाथ लगे, मिट्टी हो जाये स्वर्ण
नारी का हाथ फिरे, घर आंगन हो प्रसन्न
ये तो सब सद्-गुण हैं ,ना समझो दुर्बलता
वक्त अगर पड़ जाये, वज्र सी है कठोरता
राक्षस के दमन हेतु, नारी साक्षात् काली
दुर्जन के दंड हेतु, नारी ही है दुर्गा
नारी से इस जग में, जीवन है सुगम सरल
नारी ही ना हो तो, होगा साक्षात गरल
पुरुष और नारी भी, दोनों हैं आवश्यक
आदर के साथ बनें, इक दूजे के पूरक
3 comments:
नारी का हाथ लगे, मिट्टी हो जाये स्वर्ण
नारी का हाथ फिरे, घर आंगन हो प्रसन्न
"bhut sunder, kash sbhee iskoutna hee samman deyn or smej payen"
बहुत सुंदर. जितनी तारीफ़ की जाए कम है.
सीमा जी आपने बहुत सुंदर लाइनें जोड़ी हैं.
मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी - "औरत क्यों रोती है?" कभी समय मिले तो मेरे ब्लाग प् आइयेगा. लिंक है:
http://kavya-kunj.blogspot.com/2008/06/blog-post_14.html
sundar bhav aor sundar soch ....
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