जब मैंने ये खबर पङी तो अनायास ही मन हुआ कि गाऊँ “यहाँ के हम सिकन्दर चाहें तो कर लें सबको अपनी जेब के अंदर” एक बार और सिद्ध हो गया कि हम औरतें मर्दों से कम नहीं, कम का तो सवाल ही नहीं उठता, कहना चाहिये हर क्षेत्र में उन्नत हैं।
http://news.in.msn.com/national/article.aspx?cp-documentid=1587592
हाल ही के सर्वे से ज्ञात हुआ है कि जिन संस्थानों में अधिक महिला अधिकारी कार्यरत हैं उन संस्थानों ने अपने आंकङो में बेहतर सुधार किया है। इतना ही नहीं महिलाओं ने वित्य विभाग के आंकङो को खासा प्रभावित किया है, जो बेहतरी की ओर अग्रसर हैं।
वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2006 तक परिषद सदस्यों के बीच महिलाओं कि संख्या में खासी बङोतरी हुई हैं, जो सिद्ध करता है कि महिलायें हर क्षेत्र में मर्दों से कहीं आगे हैं।
अब आप बतायें ये खबर पङकर आप कैसा महसूस करेगीं / करेगें
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनुप्रिया के रेखांकन
स्त्री को सिर्फ बाहर ही नहीं अपने भीतर भी लड़ना पड़ता है- अनुप्रिया के रेखांकन
स्त्री-विमर्श के तमाम सवालों को समेटने की कोशिश में लगे अनुप्रिया के रेखांकन इन दिनों सबसे विशिष्ट हैं। अपने कहन और असर में वे कई तरह से ...

-
चोखेरबाली पर दस साल पहले हमने हाइमेन यानी कौमार्य झिल्ली की मरम्मत करने वाली सर्जरी के अचानक चलन में आने पर वर्जिनिटी / कौमार्य की फ़ालतू...
-
ममता सिंह नवरात्रि आने वाली है देवी मैया के गुणगान और कन्याओं की पूजा शुरु होने वाली है, हालांकि कोरोना के कारण धूमधाम...
-
हिंदी कहानी के इतिहास में उसने कहा था के बाद शेखर जोशी विरचित कोसी का घटवार अपनी तरह की अलग और विशेष प्रेमकहानी है। फौ...
9 comments:
जो सिद्ध करता है कि महिलायें हर क्षेत्र में मर्दों से कहीं आगे हैं।
yes yes very true
top of the world
पुरुष हूं मैं, और सब जानता हूं कि कंपनी में महिलाओं को रखने से कंपनी ज्यादा मुनाफा कैसे कमाती है! भई उन महिलाओं को रिझाने के लिये पुरुष भी तो अपना काम दोगुना कर देते हैं! :)
अनिल,
आज से 26 साल पहले वुमन अ जर्नल ऒफ लिबरेशन पत्रिका में महिला विषयों की जानी-मानी विशेषज्ञ लिंडा फेल्प ने अपने एक लेख में लिखा था- ‘हमारा सांस्कृतिक नजरिया पूरी तरह पुरुष के अनुभवों की अभिव्यक्ति है। यहां तक कि महिलाएं अपने शरीर को भी पुरुष की नजर से ही देखती और आत्म मुग्ध होती रहती हैं। उनकी कल्पनाएं और फंतासियां भी पुरुषों द्वारा ही परिभाषित और नियंत्रित होती हैं।‘ अच्छी बात यह है कि औरत अब समझने लगी है कि महिला मुक्ति के विश्व-अभियानों के बाद भी मूलतः कुछ नहीं बदला है।
पुरुष का महिला को देखने का नजरिया सदा से एक ही रहा है। अब किसी एक की क्या बिसात कि उस फ्रेम से बाहर भी कुछ देख पाए!
और भई, अब आपके महिला-पुरुष सहकर्मियों, साथियों को पता चल रहा है कि आपको रिझाना कितना सहज और सरल है! (वैसे राज़ की बात जान लीजिए, महिलाएं आदतन ही काम अच्छा और मेहनत से करती हैं। आप उन पर यूं ही रीझने लगें तो वही बात हुई- हर्रा लगे न फिटकरी, रंग चोखा!)
माफ करें, पिछली पोस्ट की टिप्पणी को यहां दोहरा दिया है। दरअसल मूल मुद्दा तो दोनों का वही है, इसलिए उम्मीद है, कुछ गलत नहीं हुआ। अगर गलत है, तो फिर माफी।
anil
sahii aur sach likha haen . purush ki jyaada energy mahila ko reejhaney mae jaatee haen so kaam ki naahi woh bas "kaam" kii baat kartaa haen , vishvaas naa ho to yahaan daekhey
http://indianscifiarvind.blogspot.com/
भई यह ख़बर पढ़कर हम तो बहुत अच्छा महसूस करेंगे, बल्कि करेंगे क्या हम तो बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं. नारियां पुरुषों से ज्यादा प्रगति करें, इससे परिवार, समाज और देश दोनों का ही फायदा है. वधाई हो.
इस खोज को सामने लाने के लिए बधाई। उपलब्धि इस लिए नहीं कहूँगा कि यह किसी एक वर्ग विषेष की महिलाओं के अच्छे काम से आगे जाकर सभी महिलाओं की कार्यकुशलता के बारे में कु्छ सकारात्मक निष्कर्ष हैं जो प्रकृति प्रदत्त बताये गये हैं। भारतीय संदर्भ में इनकी व्याख्या की जानी चाहिए।
बधाई।
Post a Comment