कई लङकियों का भाग्य लङकी होने से, कहीं ज्यादा खराब होता है. शायद उनकी जिन्दगी हम से कहीं बदतर होती होगी. जहाँ समाज में उनके लिये कोई जगह नही, जानवरों के साथ किया जाने वाला सलूक और एक तिरस्कृत जीवन, अवहेलना की लङकी के नाम पर कंलक हो. लेकिन फिर भी वो लङकी तो हैं हमारी लङकियों जैसी, लेकिन हमारी नहीं. शायद वो जीना चाहती होगीं आम लङकी की तरह, सांसे लेना चाहती होगीं खुले आसमान में. पिछले दिनों "कृत्या" में नरेन्द्र पुण्डरिक कि कविता "थाने में खड़ी लड़कियाँ" पङी सो यहाँ भी पोस्ट कर रही हूँ.
थाने में खड़ी लड़कियाँ
मेरी अपनी लड़की तरह
लम्बा कुर्ता और सलवार पहने थीं
और वैसे ही सामने के उभारों को
दुप्पटे से छुपा कर रखे थीं
मेरी अपनी लड़की की तरह ही वह
घर की नहीं थाने की फर्श को
अपने अँगूठे से कुरेद रही थी
अपनी गल्तियों पर,
मेरी अपनी लड़की तरह
इनमें मिन्नत से भरा
टपक कर चू पड़ने वाला भोलापन था
थाने में खड़ी लड़कियाँ
मेरी अपनी लड़कियों से
अलग नहीं दिख रही थी
अन्तर सिर्फ इतना था कि
यह घर नहीं थाना था
जो लड़कियों के अपने वजूद को
इकदम से बदले दे रहा था
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13 comments:
मेरी अपनी लड़की की तरह ही वह
घर की नहीं थाने की फर्श को
अपने अँगूठे से कुरेद रही थी
अपनी गल्तियों पर,
...........बड़ा आत्मीय लगा।
मर्मस्पर्शी कविता
बेहद संवेदी कविता। बधाई।
देखिये इक तरफ़ा मत लिखिये , इन लडकियो के दूसरी तरफ़ जो पुलिस की वरदी मे खडी है, उन लडकियो पर भी नजर डालिये जी , बराबर की गालिया दे ती है वो बदतमीजी मे पुरुषो को पीछे छोडती हुई / जरा नजर उनपर भी डालिये जी
thaane mai sachi.... ladkiyo ka kaafi bura haal haota hai...
ab to je haal mahila thaano mai b dekhne ko mil raha hai.
darassal...
thaane mai aane ke saath hi un par padne waali najaar badal jaati hai...
kai baar essa b hua hai ki jamaant ke liye aae wakeel bi un per buri najar rakhate hai...
kavita dil ko chu gai
bhayi un per nazar daali isiliye to ve gaaliyan de rahin hain..inko bhi vardi pehnao aur fir dekho apni taraf uthhi ek bhi galat nigah ke javab me ye zameen kuredti hain ya palat kar ye bhi galiyaan?
इस देश में चाहे कितनी भी परेशानी हो हम थाने जाने से डरते हैं. अच्छे अच्छे पहुँच वाले लोग कुछ नहीं कर पाते! ऐसे में हमारे थानों में लड़कियों का होना ....हृदय स्पर्शी शब्द दिल को छू भी गए और दिल दहला भी गए. अभी हाल ही में हमने पुलिस का लड़कियों की तरफ़ रवैया देखा है, नॉएडा के आरुशी हत्याकांड केस में.
गाली दे या माफ़ी मांगे लड़कियों का थाने में होना अच्छा नहीं लगता. हमें शायद महिलाओं के लिए अलग थानों की आवश्यकता है. ..क्योंकि हमारी पुलिस ने तो मुंबई के कांस्टेबल सुनील मोरे के केस में भी यही साबित कर दिया की कोई भी लड़की या स्त्री हमारे थानों के पुरूष कर्मचारियों से सुरक्षा की कुछ अपेक्षा नहीं कर सकती.
थाने में कोई भी हो अपराधी हो तो सही है वरना लड़की हो या लड़का जो बेगुनाह है इसी तरह शर्म से जमीन कुरेदता हुआ या रोता हुआ, मिन्नते करता हुआ देखा जाता...
हदयस्पर्शी कविता के लिये धन्यवाद ।
marmik
कौन हैं यह लड़कियां और थाने में क्या कर रही हैं? बैसे थाने में तो बड़े-बड़े तीसमारखां भी जमीन कुरेदने लगते हैं, इन 'मेरी अपनी लड़की की तरह' की तो बात ही क्या. इन का अपराध क्या था?
Behad sanvedansheel kawita.
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