-जब कहा उसने-
-मै अकेली नही-
-मेरे मालिक हैं साथ मेरे-
-क्या तुम अकेली हो?
-मैने देखा उसे मुस्कुराकर और कहा-
-जो मालिक है तेरा वही तो है सबका रखवाला-
-जो रहता है तेरे साथ वही तो है मेरे साथ-
-सुनकर वो झल्लाई,थोडा पगलाई और बोली-
-हम बात करते है अपने पालन हार की-
-मैने कहा हाँ वही तो है जग का पालन हार-
-मै भी तो हूँ उसके साथ-
-इस बार सब्र टूट गया-
-सुन्दर प्यारी आँखों मे-
-पानी सा घूम गया-
-कहा उसने हैरान परेशान-
-अरे! नही है मेरा घरवाला बेईमान-
-मेरा मालिक बस मेरा है-
-उसकी आँखों की सच्चाई-
-उस पुरानी फ़िल्म से जा टकराई-
-जो देखी थी बचपन में कभी-
-कि मेरा पति मेरा देवता है-
-मै असमंजस में थी-
-जिंदगी भर का वादा कर-
-कैसे बन जाता है कोई देवता या मालिक?
-क्या औरत है एक मकान-की चाहर दिवारी-
-और वो मालिक-
-जो रखे उसकी साज-सम्भाल,
-टूट-फ़ूट की जिम्मेदारी-
-कब आयेगी ऎसी बेला-
-जब होगा उसका अपना वजूद-
-और नारी होगी बस एक नारी-
-और नारी होगी बस एक नारी-
सुनीता शानू
3 comments:
nice poem
अब दिल्ली दूर नहीं... बस अलख जगाये रखें ये चोखेर बालियाँ। शुभकामनाएं।
अच्छी कविता है. कोई इंसान किसी दूसरे इंसान का मालिक नहीं हो सकता. हम सबका मालिक एक है और उस की नजर में हम सब बराबर हैं. किसी इंसान को अपने से छोटा समझना उस मालिक के प्रति अपराध करना है.
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