
मुझको है जो याद पर मुंह जबानी
कहती थी मुझको यह बचपन में नानी
समझती थी जब मैं उसको कहानी
शायद न समझी थी तब उसका मानी
वो सच्ची कहानी, नहीं थी कहानी
हमारी तुम्हारी ही थी जिंदगानी
स्तुति दिल्ली और पत्रकारिता के लिए नई हैं लेकिन कलम के लिए नहीं। वे बचपन से कविताएं लिखती रही हैं, पर ज्यादातर अपनी डायरी के लिए ही। मेरे कहने पर सकुचाते हुए उन्होंने इस कविता को बाहर की दुनिया दिखाई है। इसमें जो अनकही बात है हम सब उसको बिना सुने भी समझते हैं। है कि नहीं?
6 comments:
वो सच्ची कहानी, नहीं थी कहानी
हमारी तुम्हारी ही थी जिंदगानी
bahut sunder likha hai....
badhaae
इतने सरल तरीके से इतनी सहज बात। दिल को छू गई।
कम शब्दों में सुन्दर और सरल अभिव्यक्ति ...
छोटी पर अच्छी कविता।
सुंदर रचना है.
जो समझ गया वह खिलाड़ी है,
जो न समझा वह अनाड़ी है,
जिंदगी की कहानियाँ ऐसी ही होती हैं.
प्यारी स्तुति, कभी कुछ यूँ ही कहीं भटकते हुए अपनी कलम की घिसाई की थी। कॉलेज के मस्तीभरे दिन थे, हम वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए पचमड़ी के टूर में गए थे। वहाँ वी फॉल के पास कुछ लिखा था आज आपने याद दिला दिया...शब्दों की टूटी-फूटी बानगी कुछ यूँ थी
" थोड़ी सी मिट्टी...थोड़ा सा पानी
थोड़ा सा कागद...उसमें घुली स्याही
थोड़ी हकीकत बाकी कहानी
ये अजब सी है जिंदगानी
कभी हँसना, कभी रोना
कभी आँसू पीकर चुप हो जाना
कभी किसी के एकाएक करीब हो जाना
तो कभी यूँ ही कोसो दूर हो जाना
कभी खिलखिलाना, कभी गुमसुम हो जाना
अजब हैं जिंदगानी तेरी हर कहानी "
तब ये दोस्तों से दूर होते समय लिखी थी...
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