सरकारी दफ्तरों में काम करने वाली महिलाओं के लिए अच्छी खबर है। पता नहीं क्यों, अखबारों ने इन्हें खास तवज्जो नहीं दी, लेकिन है यह काम की खबर।
अब महिलाओं को अब साढ़े चार के बजाए छह महीने की मैटरनिटी लीव मिलेगी। उससे भी ज्यादा दिलचस्प और खुशी की बात है कि उन्हें अपने बच्चों के पालन के लिए अलग से दो साल की सवेतन छुट्टी मिलेगी और इसे वे किसी भी समय, टुकड़ों में भी, ले सकती हैं। शर्त बस ये है कि बच्चे/बच्चों की उम्र 18 साल से ज्यादा न हुई हो। उन्हें इस छुट्टी के दौरान तनख्वाह तो मिलती रहेगी ही, उनकी सीनियॉरिटी भी बनी रहेगी। यह पहली सितंबर से लागू है।
अब कोई इसे चुनावी हथकंडा कहे, पर सरकारी कामकाजी महिलाओं के लिए काफी सुविधा हो गई है। इसका मतलब यह है कि वे बच्चों की परीक्षा के समय उन्हें पढ़ाने, हारी-बीमारी में देखभाल, उसे किसी हॉबी आदि के अभ्यास या ट्रेनिंग, प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए शहर से बाहर ले जाने या घर में बच्चे की किसी और जरूरत के लिए भी छुट्टी ले सकती हैं।
उम्मीद करें कि केंद्र सरकार के इस नियम को और दफ्तरों में भी लागू किया जाएगा।
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9 comments:
बहुत अच्छा समाचार है.. इसे सर्वत्र लागु करना चाहिये..
इस का मतलब बच्चों की जिम्मेदारी केवल महिलाओँ की ही मानी गई। पुरुषों का कोई योगदान नहीं। यह पुरुषों के लिए अपमान का कारण बन सकता है। पुरुषों को भी इतनी ही नहीं तो कम से कम डेढ वर्ष का अवकाश तो मिलना ही चाहिए। वह भी इस बात की सजा के बतौर कि वे बच्चा जन नहीं सकते।
ये वाकई एक बेहद संवेदनशील कदम है। कम से कम जिस क्षेत्र में हम हैं वहॉं तो ये अक्सर देखा गया है कि पुरुषों की सीएल यानि आकस्मिक भी पूरे नहीं होते जबकि महिला शिक्षिकाओं खासकर युवा शिक्षिकाओं को छुट्टियों का टोटा रहता है की बच्चे की ये समस्या कभी वो...
उचित है कि राज्य ने यह समझा कि बच्चे पालना मॉं का निजी काम भर नहीं है। ये राज्य की भी जिम्मेदारी है जिसका निर्वाह स्त्री कर रही है। इसका उसे लाभ मिलना चाहिए न कि उसके प्रोफेशनल जीवन में खमियाजा।
I think its a far fetched step. The increase upto 6months is understandable. But 2yrs long paid leave? And is it really a well researched step?? if it is then like other rulings it shud also be made forceable to non-govt organisations. But i doubt it will as unlike govt institutions they will not allow work to suffer.
यह एक अच्छी खबर है. स्त्री सशक्तीकरण के लिये इस तरह के सकारात्मक खबरों का स्वागत होना चाहिये
-- शास्त्री
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
गैरसरकारी संस्थानों पर ऐसे नियमों का लागू होना समस्या है, शायद अनुचित भी हो ... जो संस्था सिर्फ़ मुनाफे के लिए खुली है वो ऐसी शर्तों से बचने के लिए शायद महिलाओं को नौकरी ही न दे?
दिनेशराय द्विवेदी की बात से भी मैं सहमत हूँ, कि पुरुषों को भी तीन चार महीने के लिए नयी माँ कि सहायता के लिए अवकाश मिलना ही चाहिए.
Bahut achchi Khabar hai. Mere jaisi mahilaen isaki upyogita lo bakhoobi janati hain jinhe mahaj 80 din ki chutti par kam chalana pada. bahut hi swagateey kadam hai.
ये सचमुच अच्छी खबर है...सभी जगह इसे लागू किया जाना चाहिए!मध्य प्रदेश में तो केवल तीन माह की मेटरनिटी लीव मिलती है जो कि बहुत कम है!अभी अलग अलग राज्यों में अलग अलग प्रावधान हैं!
I think this should be a parental leave, which should be given to either mother or father or to both of them in total, depending upon situation.
If this is solely attached to women, nobody will employ women even in the government jobs and the biased against women employment will increase further.
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