
प्रिंसिपल मौली अब्राहम का कहना है कि फीस बढ़ा कर पैसे की तंगी को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। लेकिन हम लड़कियों को सस्ती शिक्षा के अपने मकसद से हटना नहीं चाहते। 1970 से कॉलेज की फीस 70 रुपए प्रतिमाह तय है।दिल्ली के प्रतिष्ठित जीजस एंड मैरी का सहयोगी संस्थान सेंट बीड्’स राज्य का एकमात्र कॉलेज है जिसे एन ए ए सी का ए प्लस का दर्जा मिला हुआ है।
दिलचस्प बात ये है कि 1967 में जब दिल्ली में नया जीजस एंड मैरी कॉलेज बना तो यह तय हुआ कि शिमला के इस कॉलेज को बंद कर दिया जाए। तब हिमाचल सरकार और स्थानीय लोगों के कहने पर इसे बंद करने का पैसला टाल दिया गया। डाक विभाग ने संस्थान के 100 साल होने पर डाक टिकट भी जारी किया है।
इस कॉलेज से जुड़ी कुछ मशहूर हस्तियां हैं- हिमाचल की पहली महिला आई पी एस अधिकारी सतवंत अटवाल त्रिवेदी, पहली महिला हिमाचल पुलिस अधिकारी पुनीता कुमार, मिस इंडिया अंजना कुथलिया, फिल्मी हस्ती प्रिटी ज़िंटा।
10 comments:
अच्छी तहरीर है...
सरकारी खैरात पर पलने की आदत छोड़नी होगी. आत्मनिर्भर बनिए. आज के समय में किसी कॉलेज की ७० रुपए प्रतिमाह की फीस होना एक मजाक है. अधिकतर स्कूलों की भी फीस डेढ़ से दो हजार प्रतिमाह है.
@इस कॉलेज से जुड़ी कुछ मशहूर हस्तियां हैं- हिमाचल की पहली महिला आई पी एस अधिकारी सतवंत अटवाल त्रिवेदी, पहली महिला हिमाचल पुलिस अधिकारी पुनीता कुमार, मिस इंडिया अंजना कुथलिया, फिल्मी हस्ती प्रिटी ज़िंटा।
कुछ और भी होंगी. क्या वह कुछ मदद करेंगी अपने कालिज की?
३८ वर्षों से फीस नहीं बढ़ी. अब तो बढ़नी चाहिए. सरकार कब तक मदद करती रहेगी?
लगता है बाज़ार ने लोगों की सोच सिरे से बदल दी है, तभी सब फीस बढ़ाने की वकालत में लगे हैं। इतनी कम फीस में कालेज की पढ़ाई एक प्राइवेट संस्थान में हो रही है, वह भी लड़कियों के लिए, क्या यह कम बड़ी बात नहीं है?
"क्या यह कम बड़ी बात नहीं है?"
मेरा मतलब था, - क्या यह कम बड़ी बात है?
अनुराधा आपका कहना ठीक है शिक्षा को लेकर एप्रोच में ही आधारभूत बदलाव आ गया हे लोगों को अब यह निवेश भर लगता हे इसलिए फीस में बढ़ोतरी की वकालत दीख रही है।
किंतु साथ ही मुझे इस 'निजी' शब्द की प्रतिध्वनि पकड़ने में कठिनाई हो रही है। दिल्ली का जीसस एंड मेरी निजी नहीं है। संभव है सेंट बीड्स भू-संपत्ति आदि के कारणों से 'निजी' बने रहना चाहता हो (स्वायत्ता इसकी वजह नहीं हो सकती क्योंकि सरकारी अनुदान के बाद भी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान पूरी तरह सवायत्त रहते हैं, मसलन दिल्ली का जीसस एंड मेरी तथा स्टीफेंस)
यानि हमारी राय में फीस बढ़ाना सही विकल्प नहीं है, पर कॉलेज यदि संभव हो यह निजीपन छोडकर सार्वजनिक हो जाए तथा यूजीसी व अन्य निकायों से अनुदान हासिल कर ले। कब्जाए रखने की प्रवृत्ति तो छोड़नी ही होगी न।
मैं अनुराधा की बात से पूर्णतः सहमत हूँ। सैंट बीट्स एक कालेज ही नहीं बल्कि हमारे देश का गौरव है, इतिहास है जो वर्तमान में भी जीवित है। सम्मान है..जिसे सिर माथे बैठाना होगा। ऐसे विषयों पर सार्थक बहस की आवश्यक्ता है। मेरे ख्याल से न सिर्फ लड़कियों बल्कि लड़कों के लिए भी उच्च शिक्षा मुफ्त होनी चाहिए। जहाँ तक निजी और सार्वजनिक की समस्या है...तो कोई भी अच्छी इंस्टीट्यूशन अपने भीतर सरकारी दखल पसंद नहीं करेगी। भई आज सार्वजनिक होकर तीन-चार साल तो आराम से निकल जाएँगे लेकिन उसके बाद, फिर लालफीताशआही का आलम। बड़े नेताओं, अधिकारियों की बच्चियों को जगह बाकी को राम-राम। कुएँ से बचने के लिए खाई में कूदने से किसी का भला हुआ है क्या। इससे तो बेहतर होगा कि इतिहास एक गौरव बनकर फना हो जाए। कम से कम यादें तो कड़वी नहीं होगी...कोई यह तो नहीं बोलेगा कभी इस कालेज का अच्छा नाम था...यहाँ सिर्फ पढ़ाई होती थी राजनीति नहीं। हाँ मुझे ये अवश्य लगता है कि कालेज की भूतपूर्व औऱ वर्तमान छात्राओं को अपनी पूरी जान लड़ा देना चाहिए अपने कालेज को बचाने के लिए। सिर्फ एक बार ठान ले कि विद्या के इस मंदिर को अपनी माँ की तरह मरने नहीं देंगे फिर क्या....देखिएगा कोई भी इस कालेज को बंद करने की हिमाकत नहीं कर पाएगा। सोच को वर्तमान में बदलना होगा और यदि ऐसा नहीं कर सकते तो रोने से कोई फायदा नहीं..हाँ लेकिन हम लज्जित होंगे। विद्या का ये देवालय बंद हुआ तो समूचे देश के रहवासियों को खुद पर शर्म करनी होगी...और यकीन मानिए उन शर्मिंदा लोगों में मैं भी शामिल होंउँगी...
कालेज का बंद हो जाना शर्मनाक होगा, बंद होने से बचाने के लिए सरकार और सच्चे स्वयमसेवी संस्थानों को सामने आना चाहिए.
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हां, क्यों नहीं। अगर इस संस्थान के बंद होने की वजह सिर्फ आर्थिक है, जो कि सरकार के नए नियमों के कारण पैदा हुई है, तो जरूर इस मसले को हम और लोगों, अपने जान-पहचान के लोगों तक पहुंचाएं और जो सक्षम है, जरूर इसे बचाने के लिए कुछ करे।
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