यह वास्तव में चिंता का विषय है कि जिस देश में कन्या की पूजा होती है , वंहा लड़कियों की संख्या घटी जा रही है ..कुछ तो गर्भ में आते ही हत्या कर दी जाती है कुछ बाद में ..यही वजह है कि महिलाओं का अनुपात गिरता जा रहा है ..आज नही तो कल जवाब तो देना ही होगा .... नवरात्र में जब सभी नारी शक्ति ..कन्या का पूजन करतें हैं तो जीवित कन्याओं से दुर्वयवहार क्यों ...समाज का यह दोगलापन कब समाप्त होगा ...???
---नीलिमा गर्ग
Monday, October 6, 2008
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अनुप्रिया के रेखांकन
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17 comments:
' vastav mey hee chinta ka vishey hai, shee mudda uthaya hai aapne'
regards
नीलिमा जी यह तब समाप्त होगा जब हम अपने बात जो हम कहते हैं। उसको व्यवहार में लायेंगे ।साथ ही साथ सोच भी बदलेंगें।
well said miss/mrs neelima.
tht is a good question.
accepted
सुना है कि पहले ज़माने में इस्लाम आने से पहले बड़े और सरमाया दार लोग लड़की पैदा होते ही ज़मीन में दफन कर देते थे,हमारे रसूल ने ऐसे लोगों को बताया कि लडकियां होना कितने फख्र की बात होती है और इसी लिए उन्होंने खुदा से दो बेटों के बजाये, एक बेटी का तोहफा माँगा...उसे इतनी इज्ज़त दी कि जब वो अन्दर आती थीं तो वो उनके एहतराम में खड़े हो जाते थे...उनको देख कर लोगों के बेटियों के प्रति नज़रियात में ज़बरदस्त बदलाव हुआ...लेकिन आज जब हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं तो हमारी वही सदियों पुरानी जाहिलाना सोच वाकई शर्मनाक है....
ये चर्चा और चिंता दोनों का विषय है लेकिन बहुत हद तक इसके पीछे महिलाओं का बेटी होते ही अपने करम कोसने से भी है।
बहुत ही चिंताजनक बात है .
किंतु इन बातों के लिए दोनों ही जिम्मेदार है चाहे वह स्त्री हो या फिर पुरूष जो की इस समाज का हिस्सा है . क्योंकि भ्रूण हत्या जैसे घ्रणित कार्य मैं दोनों का ही सहयोग होता है . किसी का कम ताओ किसी का ज्यादा . ऐसी बातों को रोकने के लिए मिलकर कदम उठाना होगा .
sahi kaha aapne, par yeh tabhi khtam hoga jab woh sab....mata,pita,doctor....jo iske liye jimmedaar ha unhe sja miley, aise to kisi ki samjh aa nahi raha
sahi kaha apne
need to be taken seriouly
regards
do visit if possible
makrand-bhagwat.blogspot.com
Chinta chita saman hoti hai, itne important issue me sirf itna se lekhan. Baat ko vistaar se likhna chahiye, agar aisa ho reha hai to kyon? kya kaaran hai? Kya sudhar sambhav hai. Ye to sabhi jaante hain aisa ho reha hai koi nayi baat nahi. Nayi baat hogi ye batakar Ladkiyan bhi kisi se kam nahi. Aur iske liye Udharan pesh karne honge.
लड़की को २०-२५ साल तक घर बैठकर खिलाओ, फिर कई लाख रुपयों के साथ पराये घर को विदा कर दो. सीधा सीधा नुक्सान है, और आजकल के पूंजीवादी समय में कोई भी नुक्सान नहीं चाहता है. जिस दिन दहेज़ प्रथा ख़त्म होगी, उस दिन लड़कियों की संख्या बढ़ने लगेगी.
हाल ही में किसी ब्लॉग पर ये लाइनें पढ़ी थीं-
बेटी, गर्भ में
भविष्य के सपने
सजा रही थी।
माँ, ऑटो में बैठकर
अबॉर्शन को
जा रही थी॥
तबसे मन उदास सा रहने लगा है।
नीलिमा जी, समझाइए इन माँओं को जो पति,सास,ननद और दूसरे समाज के दबाव में अपने पैरों से चलकर किसी अजन्मा के सपनों का खू़न करने न निकला करे।
हम अपनी बनाई मूरत को पूजते हैं भगवान की बनाई को नहीं।
uddhared atmanatmanam yani apna uddhar swayam hi karna hoga nariyon ko samarth maa bankar,rokna hoga samajik vikritiyon ko
uddhared atmanatmanam yani apna uddhar swayam hi karna hoga nariyon ko samarth maa bankar,rokna hoga samajik vikritiyon ko
I agree with Vidyattamaa ji. Apne liye madad bhi khud hi karani hogee aur sahee mudde par jam kar date rahana hoga. Maon ko he ladkiyon ko samazana hoga ki khud majboot bano aur bina kisika apman kiye apana hit sadhya karo.
sahi likha hai aapney.
आज हम कन्याओं की पूजा करते हैं और कल करते हैं उन के साथ दुर्व्यवहार. समाज का दोगलापन समाज ही ख़त्म करेगा. समाज में रहते हैं हम सब. तो यह हम में से हर एक की जिम्मेदारी बनती है. आइये अपनी जिम्मेदारी पूरी करें.
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