http://timesofindia.indiatimes.com/Indians_Abroad/NRI_woman_paraded_nude_in_Punjab/articleshow/3596874.कम्स
कितनी घृणित घटना है यह, कारण कुछ भी हो, यह हक किसने दिया सरपंच को? इसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। कोई भी महिला अपने घर मे क्या करती है किसे बुलाती है, इस का निर्णय सिर्फ़ वही कर सकती है और कोई नही, और इसमे उसका इतना अपमान ! शर्म से सर झुक जाता है देख कर, और यह पहली बार नही हुआ है, नियमित रूप से ऐसी घटना कही न कही होती रहती है, हम सब कुछ दिन कहते हैं और बात ख़तम, इसके लिए हमें एक संस्था बनानी चाहिए, हर शहर मे जो उन महिलाओं को सहायता दे सके क्योंकि बाकी समाज और पुलिस तो कुछ करते नही हैं समय पर.
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अनुप्रिया के रेखांकन
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11 comments:
संस्था क्या करेगी और पुलिस क्या करेगी ? ये अब किसी से छिपा नहीं है । मैं यहां आपसे सहमत नहीं हूँ । कारण कि अब खुद को बचाने के लिए खुद को उस काबिल बनाना होगा । किसी के भरोसे नहीं । क्यों कि पुलिस मेरे अनुसार अपना विश्वास खो चुकी है । क्या मानती है कोई संस्था आज सक्षम है ? वो तो खुद रोना रोती है आधुनिक सुविधाओं का । आप का प्रश्न औचित्यपूर्ण है । धन्यवाद
एक नारी का इस तरह अपमान, इस घटना की राष्ट्रिय स्तर पर निंदा की जानी चाहिए. इसे ऐसे ही नहीं जाने देना चाहिए. इस में जो लोग भी शामिल हैं उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए.
मुझे दुःख है कि कोई एनजीओ अभी तक आगे नहीं आया. मानवाधिकार आयोग क्या कर रहा है? क्या वह नारी मानव नहीं है? और महिला संगठन क्या कर रहे हैं? क्या किसी को इस नारी की पीड़ा महसूस नहीं होती?
Blogs ki duniya mein apne aap ko kavi ke roop mein pesh karne wala Vijay shankar chaturvadi , Kya tum jante ho ki vah apne patni ka Hatyara hai?
अनाम जी,
अच्छा हो कि आप सनाम हो कर खुल कर अपनी पूरी बात कहें ,इस टिप्पणी के क्या मायने हैं ?
रेनू जी ,
आपकी चिंता और गुस्से को समझ रही हूँ लेकिन संस्था बना देने से इलाज होता तो आपको जानकर हैरानी होगी कि सैंकड़ो एन जी ओ पहले से ही इस तरह के मुद्दों पर काम कर रहे हैं{कम या ज़्यादा या केवल फंड्स ले रही हैं
,दूसरी बात ,
आपका दिया गया लिंक नही खुल पा रहा ,यदि सम्भव हो तो इसे सही कर दें।
# देश में किसी को भी क्या हक है कि वह किसी के घर में खिड़की से झांक कर देखे? और ताज्जुब है कि उस अनैतिक व्यक्ति को इस बात पर झिड़कने की बजाए हमारा नैतिकता का ठेकेदार, तथाकथित जिम्मेदार समाज उसकी बात पर भरोसा करता है और फिर खुद भी उसी अनैतिकता का परिचय देते हुए कानून को अपने हाथ में लेता है। क्या उस इलाके में देश का संविधान-कानून नहीं चलता, सिर्फ सरपंच ही सारे मामलों का न्यायाधीश है? किसने उसे हक दिया कोई भी, ऐसा फैसला करने का?
# एक एनआरआई और उसकी बीवी यह सोच रहे थे कि ‘अपने’ देश में वे और उनका परिवार सुरक्षित हैं। क्या हमारा देश अपने नागरिकों को ऐसी सुरक्षा देता है?
# इस घटना का कारण सिर्फ यह है कि कोई सहज महिला हमारे यहां के पुरुषों को फूटी आंख नही सुहाती। उसे हमेशा झुक कर रहना है। और उस पर वह एक अमीर आदमी की बीवी हो जो परदेस गया है, तब तो समझिए उसे चरणों की दासी बनाने को हर बाहि-बली, धन-बली लालायित रहता है और इसे अपना हक भी मानता है। बिना पति की मौजूदगी के किसी भी महिला की सामाजिक स्थिति कमजोर मानी जाती है। और जब वह सहज महिला अपने सहज हक की रक्षा के लिए जरा भी सचेत होती है तो फिर उसकी खैर नहीं। यह पूरी व्यवस्था शर्मनाक है। इस व्यवस्था में ऐसी शर्मनाक घटनाएं लगातार हो रही हैं।
# इस घटना के बाद स्थानीय कानून-तंत्र को सक्रिय होकर सबसे पहले तो उस सरपंच लखबीर कुमार को पद-च्युत कर देना चाहिए। उसे इस जिम्मेदार पद पर बने रहने का कोई हक नहीं रहता।
# सरपंच जो गांव का मुखिया, नेता, आदर्श होता है, ऐसा उदाहरण पेश करे तो ऐसे अपराध के लिए उसे आम-जन से ज्यादा कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए।
हम आज भी उसी बर्बर समाज में रहते हैं जहां जंगल का कानून चलता है, यानी जिसकी लाठी, उसकी भैंस। इससे उबरने के लिए एकमात्र रास्ता है, जुड़ना, संगठित होना और अपनी सामूहिक आवाज इतनी बुलंद करना कि ऐसा घृणित कार्य करने वाले के अलावा ऐसा सोचने वाले की भी रूह कांप जाए।
आजकल यह बहुत हो रहा है की हम संस्कृति के नाम पर ढकोसले कर के अपने को बहुत ऊंचा दिखने की कोशिश करते हैं. में आर अनुराधा से पूरी तरह सहमत हूँ.
अलग-अलग आक्रोश व्यक्त करने से नहीं बल्कि संगठित,सुनियोजित संघर्ष से ही समाधान की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।
is sharmnaak gatna per mere comment yehan darj hain
Sujataji,
abhi hamne link khol kar dekha to khul raha ha, shayad us samay kuch net ki problem hogi.
hame to yeh lagta ha ki ham sangathit ho kar agar koi sanstha banaye jo peedit mahilaaon ko suraksha de sakey to bahut accha hoga.
nissandeh khud majboot banana hi hal ha, par woh sab ke liye sambhav nahi hota.
nahi to aksar aisa kuch hota ha khabar aati ha, kuch tippadi hoti ha aur baat khatam
यह काम उस स्त्री को सताने को ही नहीं बल्कि प्रत्येक स्त्री को यह सिखाने को किया गया कि डर कर रहो । जब तक समाज के कर्ता धर्ता स्त्री को यह महत्वपूर्ण पाठ नहीं पढ़ा लेते उन्हें अपना जीवन बेकार लगता है।
घुघूती बासूती
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