एक दिलचस्प खबर का फॉलोअप देखना और भी दिलचस्प है।
खबर ये है कि दिल्ली में विपक्ष के नेता जयकृष्ण शर्मा ने चंद दिनों पहले मेयर आरती मेहरा की जैकेट पर टिप्पणी की और फिर किसी और मुद्दे पर उन्हें 'औरत के नाम पर धब्बा' बताया।
इस पर आरती मेहरा ने कई जगहों, मंचों पर इस मुद्दे को उठाया है। राष्ट्रीय महिला आयोग को भी इसकी शिकायत भेजी। जवाब में उनसे 48 घंटे के अंदर जवाब मांगा गया है।
इतना सब होने के बाद जयकृष्ण शर्मा जी ने इस गैर-इरादतन गलती के लिए आरती जी से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है और कहा है कि वे उनकी बहन हैं।
लेकिन आरती जी ने तत्काल जवाब दिया कि वे 'ऐसे व्यक्ति की बहन नहीं बनना चाहतीं जिसने शराफत की हदें पार कर ली हों।'
अब शर्माजी को कल, शुक्रवार 7 नवंबर को दोपहर तीन बजे राष्ट्रीय महिला आयोग के समक्ष पेश होना है।
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अनुप्रिया के रेखांकन
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8 comments:
"महिला" होने की आड़ में राजनीति की जा रही है, अपने ऊपर लगे फ़िजूलखर्ची और तानाशाही के आरोपों पर तो उन्होंने कुछ कहा नहीं, बस महिला की आन-बान को "भुनाने" के लिये मैदान में कूद पड़ीं, आखिर विपक्ष के व्यक्ति को दबाने का इतना आसान मौका वे कैसे जाने देतीं? धन्य "महिला" हैं वे…
@Suresh Chiplunkar
"महिला" होने की आड़ में राजनीति की जा रही है,
सुरेश जी ये तो पक्षपात हुआ आपकी तरफ़ से , महिला होने की याद तो एक पुरूष जयकृष्ण शर्मा ने दिलाई आरती को ,
क्या आप को उनका रवैया सही लगा . आरती के राजनीति जीवन मे उसका महिला होना इतना इम्पोर्तंत क्यों हैं ?? महिला का शरीर , महिला के कपडे किसी भी संघर्ष मे महिला के विपक्ष मे क्यों जाते हैं ???
सदियों से यही हो रहा हैं . कुछ नहीं कर सकते तो निर्वस्त्र तो कर ही सकते हो . कब तक ???
अब आरती इसको कैसे भुनाए राजनीति मे ये उसकी मर्ज़ी हैं . और राजनीति मे सब भुनाते ही हैं .
अब चाहे कोई पुरूष राजनीती करते हुये किसी महिला को यह कहे कि वो महिला के नाम पर धब्बा है या फिर कोई महिला किसी पुरूष को यही बात कहे कि वो पुरूष के नाम पर धब्बा है और आप महिला होने के कारण इमोशनल होकर उस राजनीती का हिस्सा बेवजह हो जायें तो कम से कम मुझ जैसे इस ब्लौग के अच्छे पाठकों के लिये तो अच्छा नहीं ही है..
यहां अच्छी बातों पर चर्चा होती रही है और आप लोग अच्छा काम कर रही हैं.. इस राजनीती के फेर में ना ही परें तो अच्छा होगा..
यह महिलाओं का मंच है । महिला के खिलाफ कोई महज इस बात को लेकर कि वह महिला है इसलिये कुछ भी कहा जा सकता है यह सोचेगा , तो मुद्दा तो उठाया ही जायेगा । अगर पुरुष यह कहे कि वह महिला के नाम पर धब्बा है तो यह गलत है हाँ उनके गलत कामों को लेकर उन्हें कुछ कहा जाता तो वह ठीक रहता ।
फ़िजूलख़र्ची,तानाशाही या ऐसे ही अन्य अवगुण हों भी तो उनका महिला होने से क्या लेना-देना है? बात सही हो तो भी ग़लत तरीके से कहने का लाइसेंस थोड़े ही मिल जाता है।
डॉ अमर ज्योति से सहमत हूँ। स्त्री के खिलाफ बात करते हुए वैचारिक हमलों से ज़्यादा शारीरिक और चारित्रिक हमले होते हैं जो कि एक गलत मानसिकता का हिस्सा हैं ।
पी डी से भी यही कहूंगी कि आरती जी तो मेयर हैं लेकिन अन्य क्षेत्रों मे भी यही नही होता क्या ? भुनभुनाए पुरुष अक्सर स्त्री के हाथ मे पॉवर देख कर फिज़िकल कमेंट्स देने लगते हैं।
ऐसी बातों को ज़रूर उठाया जाना चाहिये ताकि सभी इसे ध्यान रखें कि सामने वाले व्यक्ति से आपका विरोध या बहस का मुद्दा क्या है और उसी पर टिकें। ध्यान रखना चाहिये कि आपकी बहस तानाशाही या फिज़ूल खर्ची या ऐसे किसी मुद्दे को लेक्र है या जैकेट और चलने उठने के तौर तरीकों पर ।
Bahut hi sateek bato ko apne is manch mai samne laya hai.
आरती मेहरा मेयर हैं, अगर इस नाते उन के काम में कोई कमी या अव्यवस्था है तो विपक्ष के नाते शर्मा जी उस पर अपना ऐतराज दर्ज कर सकते हैं. पर एक महिला होने के कारण उन के बारे में अभद्रता से भरी टिपण्णी की जाय यह तो बहुत ही ग़लत बात है. वह पहले भी ऐसा कर चुके हैं. उन्हें इस बार दंड मिलना ही चाहिए.
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