मैडम नमस्कार,
आप इतना अच्छा लिखती हैं, पर ये चोखेर बाली क्या चीज है यह नहीं जानता. यदि इस पर थोड़ा सा प्रकाश डालें तो...
प्रगतिशील विचारों वाली हैं आप, फ़िर ये आंखों की किरकिरी वाली बात नहीं समझ में आई.
अरे आगे आइये और सबकी सहायता कीजिये. सभी गिरे हुओं को ऊपर उठाइये. ये दूसरों को चुभने जैसा ब्लॉग का नाम क्यों चुना !
आपकी सोच तो समाज के पुनर्निर्माण में अत्यन्त ही सही और सहायक है फ़िर ये आंखों को कष्ट देने वाला नाम नहीं जंचता.
वैसे आपका ब्लॉग है आप जो चाहे करें पर मेरा मानना है की यह एक नए जागरण और उत्थान का द्योतक है अतः नाम भी कुछ ऐसा ही होना चाहिए था.
बिना मांगे सलाह दे रहा हूँ अतः माफ़ी चाहूंगा पर आपका लंबे समय से पाठक हूँ. अतः पराया नहीं हूँ मैं आपके लिए. अपना समझ कर सलाह दी है पर डर रहा हूँ की कहीं आप इसे अपना विरोध न समझ बैठें. :)
मैंने इतिहास पढ़ा है, शायद कुछ ज्यादा ही गहराई से.
आप का लेखन मुझे ' सम्राट अकबर ' की याद दिलाता है.
जिस प्रकार से उसने अपने काल में विरोधों का सामना कर के हिंदू-मुस्लिम भेद-भाव को दूर करने की कोशिश की थी उसी तरह आप भी स्त्री-पुरूष भेद को घटाने के साथ ही सही सोच को भी दृढ़ता से रख रही हैं. धन्यवाद.
आपके उत्तम लेखन के लिए आप को हार्दिक शुभकामनाएं,
आपका
ई-गुरु राजीव
Blogs Pundit
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chokher bali to rajeev
राजीव जी,
आपका पत्र पाकर अच्छा लगा ।आप चोखेर बाली को निरंतर पढते हैं यह भी हमें उत्साहित करता है ।"सम्राट अकबर" से तुलना ज़्यादा बड़ी बात हो गयी है। अपना समझ सलाह देने का शुक्रिया ! किसी भी अन्य सामुदायिक या व्यक्ति ब्लॉग को इतनी सलाहें नहीं मिलतीं जितनी आज तक चोखेर बाली को मिली हैं । इसे सौभाग्य कहूँ या चोखेर बाली नाम की सार्थकता ! आपने कहा -आप सलाह देते डर रहे हैं । पर डरते डरते भी सलाह देने का लोभ सम्वरण नही कर पा रहे हैं ।कुछ पोस्ट्स आप पुन: पढें और राय दें कि यदि चोखेर बाली का नाम चोखेर बाली की जगह
प्रगतिशील नारी, नयनतारा , गृहशोभा ,सरिता या अनामिका या कुछ भी और होता लेकिन कंटेंट यही रहता तो भी क्या लोगों का रेस्पॉंस यही नही होता?
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/08/blog-post_25.html
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/07/blog-post_17.html
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/07/blog-post_09.html
अब यह भी कि यदि चोखेर बाली का नाम यही रहता और कंटेंट कुछ ऐसा होता
1.पति को रिझाने के 10 टिप्स
2.मुन्ने की सही मालिश के 5 तरीके
3.गर्मियों मे दिन का मेक अप कैसे करें
4.नारी अपने रिश्तों का निर्वाह कैसे करे
5.बॉस को कैसे संतुष करें
6,ऑफिस जाने के परिधान कैसे हों
7.दीवाली की साज-सज्जा ,सफाई कैसे करें
8.होली के पकवान
9स्वेअटर विशेषांक
10. महिलाएँ करियर कैसे चुनें
11.मेहन्दी रंग लाएगी - मेहन्दी के 25 डिज़ाइन
वगैरह ...........
तो आपका रेस्पॉंस क्या होता ? उपरोक्त बातें पितृसत्ता को चुनौती नहीं देतीं ,है न! और तब शायद तब चोखेर बाली सहज स्वीकार्य भी होता और स्तुत्य भी ,अपनी बहन- बेटी को इसे बांचने की सलाहें दी जातीं ।
खैर ,
चोखेर बाली नाम से आपकी आपत्ति हमारे लिए नई बात नही है,पहले दिन से इसे सुनते आ रहे हैं और चोखेर बाली की शुरुआत में जो सवाल चोखेर बाली के एजेंडा और वैचारिक आधार व प्रयोजन को लेकर उठे थे वे अब लगभग सभी को स्पष्ट हो चुके होंगे ऐसा मुझे प्रतीत होता है।
स्त्री का समाज मे जो स्थान और स्थिति है ,बहुत विचित्र है कि उसमे केवल सामाजिक-पारिवारिक अपेक्षाओं और वर्जनाओं के लिए स्थान है,अस्मिता और स्वतंत्र पहचान के लिए नहीं ...लीक से अलग हट कर चल सकने की तो बिलकुल नही । स्त्री को हमेशा बान्धने ,संजोने की भूमिकाएँ मिली और बिना एक आज़ाद चेतन इंसान हुए उन्हें निभाते चले जाने की सीख भी बचपन से ट्रेनिंग की तरह मिली। "न" शब्द स्त्री के शब्दकोश मे कभी डाला ही नही गया ।
इस लिए जब भी स्त्री ने "न" कहने का साहस किया , लीक से हटने की कोशिश की,स्वयम को एक स्वतंत्र -चिंतनशील प्राणी के रूप मे पहचानने और स्थापित करने का प्रयास किया समाज के पितृसत्ता-पोषकों ,चरित्र के ठेकेदारों ,धर्म के रखवालों {इनमे पुरुष और साथ ही पितृसतात्मक मानसिकता और संरचना मे ढली स्त्रियाँ भी हैं} को यह नागवार गुज़रा और बहकी स्त्रियों को तरह तरह से राह पर लाने और दण्डित किये जाने के लिए तरह तरह के उपाय किये जाने लगे ।वे स्त्रियाँ समाज की आँखों को खटकने लगीं ,उन्हें जल्द खत्म करने ,दबाने का प्रयास होने लगा वर्ना अपनी बहू बेटियों के बिगड़ने का डर था ।अपनी बहू बेटी का चिंतंशील होना माने अपने पैरों कुल्हाड़ी मारना । वे जवाब देतीं , आपके अन्याय व्यभिचार के खिलाफ आवाज़ बुलन्द करतीं ,अपनी इच्छा से शादी करतीं या ना करतीं ,आपकी सेवा न करतीं , पति को परमेश्वर न मानतीं ,परिवार व्यवस्था ढह जाती ,....और बहुत से भय ।इसलिए पूजा चौहान जब अर्द्ध्नग्नावस्था मे सड़कों पर उतर आयी अन्याय के खिलाफ तो शरीफ बहू बेटियाँ अन्दर कर दी गयीं और सड़कों पर पूजा के आजू बाजू केवल और केवल सभ्रांत मर्द ही दिखाई दे रहे थे।
तो यह जो आँख की किरकिरी हैं यह वो बदमज़ा औरतें है जो सड़ी गली व्यवस्था का पोषण करने के खिलाफ मानस तैयार करना चाहती है ,जो पितृसत्ता के सामने पितृसत्ता के खिलाफ लिखती है और यहाँ वहाँ कमेंट में .उपहास से ".......वालियाँ "कहीं जाती हैं। यह जो बदलाव की बात है यह आतंक की तरह छाई है ।आपने कमेंट्स मे लिखा देखा होगा सभ्य जनों से ----मार्कस्वाद को परिवार से दूर रखो ....परिवार को बचाओ ....घर से बाहर कदम निकालने वाली महिला का घर अस्त व्यस्त हो जाता है .....नौकरी करने वाली स्त्री नौकरानी है न किसी की माँ न किसी की पत्नी.. ।
सो चोखेर बाली ही वह नाम हो सकता था जो स्त्री मुद्दों से जुड़े हमारे -आपके -सबके विचारों को एक साथ वहन करने की क्षमता रखता है॥
सादर ,
सुजाता
और हाँ , केवल नाम ही चुभने जैसा होता तो कोई समस्या नही थी , दर असल बड़ी बात यह है कि चोखेर बाली का कथ्य भी चुभता हुआ ही है। क्या कीजियेगा , जब बात कड़वी है तो कड़वी लगेगी , उसे चासनी मे भिगो कर कैसे दे भला !
आपकी शुभकामनाएँ साथ हैं तो भविष्य के लिए आश्वस्त होने का एक कारण मिल सकता है !
सादर ,
सुजाता
17 comments:
मेरी शुभकामनाएं फ़िर से एक बार और. समाज में आ गई बुराइयां दूर होनी चाहिए. अगर आँख की किरकिरी बन कर अपेक्षित परिणाम मिलते हैं तो यह एक सार्थक प्रयास है. इस का लाभ अशिक्षित नारी को भी मिले तो सार्थकता पूर्ण हो जायेगी.
पिछले तक़रीबन एक महीने से एक ब्लॉगर e guru के नाम से नारी आधारित विषयों पर अपनी राय बढ़ जढ़ कर लिख रहें हैं ।
चोखेर बाली ही बनी रहिये। सामंती-पूँजीवादी सोच की नींद ऐसे ही टूटेगी। और कोई रास्ता है ही नहीं।
यह हमने भी महसूस किया है कि महिला ब्लॉग सहज ही 'सलाह प्रोन' क्षेत्र होते हैं।
किसी अन्य घोषणा की तुलना में आज की पोस्ट से चोखेरबाली दर्शन अधिक स्पष्ट हुआ है। इसलिए राजीव को धन्यवाद दिया जाना चाहिए
ईश्वर करे यह मिशन निरन्तर सफलता के पथ पर अग्रसर हो। आसमान की ऊँचाइयां छूकर भी नारी स्तुत्य बने, आँख की किरकिरी न रह जाय बल्कि आँख का काजल बने। ईश्वर सबको ऐसी सद्बुद्धि दे।
सुजाता जी की पूरी टीम को शुभकामनाएं।
बहुत अच्छा लेख है, पूरी तरह से सहमत हूँ , आज के समय में अगर नारी को आगे बढ़ना है तो क्रम संख्या १-११ आदि ...विषयों को रद्दी की टोकरी में डालना ही होगा नही तो भारतीय लड़कियां विश्व में कहीं नहीं ठहर पाएंगी !
शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर और सटिक जवाब दिया है आपने, सुजाता जी, राजीव जी के सवाल के जवाब ने और लोगो के मन में उठ रहे प्रश्नो का भी स्पष्टिकरण कर दिया होगा...
arre kuch nahi faltoo hai yeh choker bali.. kamm dhanda hai nahi kuch faltoo yaha dimak kharab karti hai yeh log aur kuch nahi.. kuch din baad dimand na kar de ki hum bacha paida nahi karegi.. yeh kaam mardo ko karna chhaiye
@Anonymous said... kuch din baad dimand na kar de ki hum bacha paida nahi karegi.. yeh kaam mardo ko karna chhaiye
naa koi bhi chokher bali yae nahi kahaegii , samjhdaar hogii to kahegii
"beta tum peda karkae dikha do , ham to bas beti hee ab peda karegae , beti yani ek aur chokher bali "
:) ye smily last 2 comments ke liye..
vaise aaj ka post achchha laga.. Thanks..
हमने यह इच्छा जाहिर की थी कि इस पात्र को ऑफलाइन ही रखा जाता, बस यूँ ही शांत मन से आप की सराहना करना चाहता था. कोई दिखावा नहीं चाहता था. अब जब आप ने छाप ही दिया है तो चलिए यह भी उत्तम है.
राजीव आपकी इस इच्छा को आपने दूसरे पत्र मे ज़ाहिर किया था जिसे हमने प्रकाशित नही किया ।
पहला पत्र भी इस उद्देश्य प्रकाशित किया था कि वह अन्य कई लोगों के सवालों का जवाब देने का सबब था ,आपसे व्यक्तिगत तौर पर कोई द्वेष या मनमुटाव जैसी बात नही ।
यहाँ आता जाता रहता हूँ....पढता हूँ...महसूस करता हूँ....कमेन्ट नहीं दे पाता.....क्या लिखूं कि जो इन आलेखों के परिप्रेक्ष्य में आंदोलित होता हुआ-सा लगे...क्या करूँ कि आदमी जात...वर्ग...लिंग...धरम...और अन्य विसंगतियों से उबर सके...और इन सब से ऊपर उठ कर एक सुंदर-सा जीवन जी सके....अपने-आप की तो गारंटी लेता हूँ.....मगर जो भी लोग उपरोक्त चीजों...(विसंगतियों) के कारण सबका जीना हराम किए देते हैं....उन्हें किन शब्दों में और क्या तो समझाएं कि सबका जीवन पानी की तरह बह सके...आधी दुनिया का दर्द दूर हो सके....और बाकि की आधी दुनिया ये महसूस कर सके कि इस आधी दुनिया के बगैर उनका गुजारा सम्भव नहीं.....एक दूसरे को सम्मान देने में किसी का क्या "फटता" है...ये मैं ३८ वर्षों में भी नहीं समझ पाया....कब समझूंगा...सो भी पता नहीं....
wah wah
chokhor bali naam kiyo na ho....bhai...kai cheezo se agree nahi hota...shyad sanskaar ke karan..per chintan jarooti hai..chinta nahi ...chintan yaa vimrash kahe....meri liye ek hi baat hai....
chokhor bali naam ke liye badiaiiiiii
कुछ दिन पूर्व ही ब्लोगर पर चोखेरबाली से मुलाकात हुई .बहुत अच्छा लगा. चोखेरबाली के मायने पढ़ कर अपनी कुछ वर्ष पूर्व लिखी रचना का स्मरण हो आया .आप के साथ भी बाँटना चाहूंगी -
तुम्हे क्या लगता है?
नारी वास्तव में स्वतन्त्र है !
बंदी नहीं?
सच कहो
क्या आज भी
उस की सोच पे पाबन्दी नहीं?
आज भी
कहाँ उकेर पाती है
वह मन के उद्गार.
छीन लेते है वहीँ
उसकी तूलिका, उसकी लेखनी
उस के अपने मन के संस्कार.
और कभी स्व से संघर्ष कर निरंतर
वह अगर जीत भी जाती है,
तो इस तथाकथित प्रबुद्ध
और सुसभ्य समाज को
वह आँख की किरकिरी सी नज़र आती है.
समाज का पुरुषवादी अहम
उसकी यह परिवर्तित चेतना
नहीं कर पाता है स्वीकार
इसीलिए शायद इसीलिए
स्वयं से जीत कर भी
नारी अस्मिता जाती है हार
बार-बार.
Me, also more kind of Chokhor Bali.... so not dear to many... but blessed to have people around me in different forms to support my thinking about social differences and place of women.
fighting...
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