- श्रुति अग्रवाल
कल रात दस बजे से निगाहें टीवी पर टिकी थीं। इस बार आतंकवादियों ने देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई को, ताज होटल को नहीं बल्कि हमारे देश के मस्तक को निशाना बनाया । देश में लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं राजनैतिक पार्टियाँ और खुद हम सभी नपुंसक बने हैं...दिल्ली के सीपी के बाद फिर एक बार देश के अर्थतंत्र को निशाना बनाया गया। दस बजे के बाद जैसे-जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ रही थी जज्ब़ा डूब रहा था। हर तरफ खून और लाशें दिखाई दें रहीं थी...घृणा और शर्मिंदगी के साथ।
अचानक नजर गई रिपोर्टिंग कर रही एक नई पत्रकार पर। उन्नीस-बीस साल की यह युवती हर तरफ बिखरे खून को देख घबराने की जगह सही खबर पहुँचाने में लगी थी...कभी पुलिस कर्मियों से ताज होटल के कुछ नजदीक जाने की अनुमति माँगते तो कभी लाइव करते हुए सही खबर जनता तक पहुँचाने की जद्दोजहद से दो-चार होती। चैनल बदले...एनडीटीवी हो या आजतक, जी न्यूज हो या सहारा या फिर आईबीएन सेवन हर तरफ कमोबेश यही स्थिति थी...लड़कियाँ, वरिष्ठ पत्रकार महिलाएँ सभी अपनी जगह मोर्चा संभाले देखी जा रही थीं...
और यह सिलसिला जो रात दस बजे शुरू हुआ वह पूरी रात बल्कि भोर के उजाले तक लगातर चलता रहा। कुछ पल के लिए ही सही लेकिन गर्व की एक अनुभूती हुई कि अब मैदान में एक नहीं कई बरखा दत्त हैं। जो अंधाधुंध चलती गोलियों, फिदायी हमलों के बीच अपनी जान की परवाह न करते हुए यहाँ वहाँ बिखरे खून और लाशों से विचलित होने की जगह अपना काम कर रहीं थीं।
आप ही सोचिए क्यों हमें अबला कहा जाएँ? हम लड़कियाँ तो चंड़ी का अवतार बन सकती हैं। मैंने खुद कई आदमियों को मरच्युरी में जाने से बचते देखा है... सड़ी-गली लाशें देखने के बाद उबकाई लेते देखा है। जबकि ये महिला पत्रकार हर विपरीत परिस्थिति में अपनी जिंदगी की परवाह करे बिना घटना कवर करती नजर आईं। उन रूढ़ियों को तोड़ती नजर आईं कि लड़कियाँ तो काकरोच, छिपकली से डर जाती हैं। जरा सी विपरीत परिस्थिति हुई नहीं कि गश खाकर गिर जाती हैं, आदि।
मेरी हर माँ से गुजारिश है कि वें हर मोर्चें पर पुरषों से कंधा मिलाते चलती ही नहीं बल्कि दो कदम आगे बढ़ा रहीं इन ललनाओं को देंखे। अपनी बच्चियों में भी इसी तरह का जोश और जज्ब़ा भरने की कोशिश करें। क्योंकि आतंकवाद और नफरत के बीच से देश और दुनिया को अब सृष्टी की सृजनकर्ताएँ ही बचा सकतीं हैं...
श्रुति अग्रवाल खुद पत्रकार हैं। फिलहाल इंदौर में वॉइस ऑफ इंडिया में मालवा-निमाड़ संभाल रही हैं। इससे पहले भास्कर, सहारा समय, नईदुनिया-वेबदुनिया और बीबीसी लंदन(फ्रीलांस) में काम कर चुकी हैं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनुप्रिया के रेखांकन
स्त्री को सिर्फ बाहर ही नहीं अपने भीतर भी लड़ना पड़ता है- अनुप्रिया के रेखांकन
स्त्री-विमर्श के तमाम सवालों को समेटने की कोशिश में लगे अनुप्रिया के रेखांकन इन दिनों सबसे विशिष्ट हैं। अपने कहन और असर में वे कई तरह से ...

-
चोखेरबाली पर दस साल पहले हमने हाइमेन यानी कौमार्य झिल्ली की मरम्मत करने वाली सर्जरी के अचानक चलन में आने पर वर्जिनिटी / कौमार्य की फ़ालतू...
-
ममता सिंह नवरात्रि आने वाली है देवी मैया के गुणगान और कन्याओं की पूजा शुरु होने वाली है, हालांकि कोरोना के कारण धूमधाम...
-
हिंदी कहानी के इतिहास में उसने कहा था के बाद शेखर जोशी विरचित कोसी का घटवार अपनी तरह की अलग और विशेष प्रेमकहानी है। फौ...
11 comments:
आपका कहना सही है..
मगर हंसी में एक बात कहना चाहूंगा.. मेरी सबसे अच्छे मित्रों में से है वो.. नाम गार्गी.. रफ एन टफ इतना कि अच्छे अच्छों को पानी पिला दे.. किसी भी घटना से प्रभावित हुये बिना उससे जूझ परना उसके खून में है.. मगर काक्रोच को देखते ही ऐसे चिल्लाती है कि मत पूछिये.. :)
उन्होंने जंग में भारत को हरा दिया है.
अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी....
इन ललनाओं को हम भी सलाम बजाते हैं जी। इन्हें मेरा यह सन्देश प्रसारित करने की हिम्मत दे दीजिए तो जानूँ।
अब तो हद ही हो गयी। कुछ क्रान्तिकारी कदम उठाना चाहिए। कुछ भी...।
अब समय आ गया है कि देश का प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को, राष्ट्रपति लालकृ्ष्ण आडवाणी को, रक्षामन्त्री कर्नल पुरोहित को, और गृहमन्त्री साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बना दिया जाय। सोनिया,मनमोहन,शिवराज पाटिल,और प्रतिभा पाटिल को अफजल गुरू व बम्बई में पकड़े गये आतंकवादियों के साथ एक ही बैरक में तिहाड़ की कालकोठरी में बन्द कर देना चाहिए। अच्छी दोस्ती निभेगी इनकी।
इनपर रासुका भी लगा दे तो कम ही है।
जब मैं खुद टीवी पर उन्हें देख रहा था तो वही असर मुझ पर भी हुआ जो आप ने अभिव्यक्त किया है। वे अपनी ड्यूटी पर हैं हम अपनी निभाएँ।
ॐ शान्तिः।
कोई शब्द नहीं हैं...।
बस...।
ऐसे मीडिया और ऐसे रिपोर्टरों को क्यों सलाम करें? जब आतंकी अन्दर खून-बारूद का खेल खेल रहे थे, तब ये उन्हें और पाकिस्तानी केम्पों में बैठे उनके आकाओं को बहार की स्थिति और रणनीति की लाइव जानकारी दे रहे/रहीं थीं. होटल के बाहर से संवाददाता लाइव बता रहे थे की आतंकियों का एक मोबाइल मिल गया है और उसमे कई अंतर्राष्ट्रीय काल आ रहे है.
ये बेवकूफ रिपोर्टर कैमरे और माइक लेकर पूरी दुनिया में पुलिस/सेना/एनएसजी की ग्राउंड स्ट्रेटेजी साडी दुनिया के सामने लाइव करते रहे, यह तक दिखा दिया की करकरे किस तरह की बुलट प्रूफ जेकेट और हेलमेट पहन रहा है और कहाँ के अभियान का नेतृत्व कर रहा है, यह टीवी पर लाइव दिखाया गया और करकरे को सीने या सर में गोली न मारकर एक ही शॉटमें गर्दन पर गोली मारकर ढेर कर दिया गया. और आप इन मूर्खों को इसीलिए सलाम कर रहीं हैं की ये उस वक्त वहां लाइव दिखने खड़ी थीं, और की वे महिला थीं. वाह आप और आपकी इन ललनाओं का मीडिया! इन संवाददाताओं में ही थोडी अक्ल होती तो ओपरेशन कुछ पहले ही ख़त्म हो गया होता, और आर्मी/नेवी/पुलिस के कमांडरों की जान न जाती. कई विदेशी मेहमानों और सिविलियंस की जानें भी बच सकती थीं.
पूरे कुँए में भंग पड़ी है, कोई क्यों समझेगा? आइना दिखाया जाएगा तो आइना ही तोड़ने की कोशिश करोगे.
ललनाओ के शक्ति साहस एवं जज्बे को सलाम
" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"
समीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर
शोक करना ,अशोक के इस देश में पुराना शगल रहा है. अशोक नें अहिंसा का वरण किया, वह स्वर्णिम युग था.
मगर आज चाहिये कृष्ण सा सारथी इस देश को.
we are left dazed by the incident. Women in general have been blessed by the God with patience and understanding/calmness.
But Many of the reporters were berefit of calm. Barkha -dutt/Rajdeep and some of the folks were over the top and completely out of place.
Read up more on http://ckunte.com (shoddy journalism) and mine - http://govindkanshi.wordpress.com (media related entry of yesterday)
श्रुति मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं। मानती हूं कि आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं....बल्कि कई मायनो में तो वो पुरुषों से भी आगे हैं...यानी चाहे वो घर की चार दीवारी हो या उस दहलीज़ से बाहर की दुनिया...आज कहीं न कहीं ये सब उसकी मुट्ठी में कैद है...वो जब चाहे तब सक्षम है जूझने में भावनात्मक स्तर पर और व्यावसायिक स्तर पर ...आपने सच कहा कि आज इस देश में एक नहीं,सैकड़ों बरखा दत्त मौज़ूद हैं....
श्रुति जी में भी एक पत्रकार हूं और वॉयस ऑफ इंडिया दिल्ली में ....
Post a Comment