मेरी पसन्दीदा पाकिस्तानी कवयित्री किश्वर नाहिद की कविता
ये हम गुनहगार औरतें हैं
जो मानती नहीं रौब चोगाधारियों की
शान का
जो बेचती नहीं अपने जिस्म
जो झुकाती नहीं अपने सिर
जो जोड़ती नहीं अपने हाथ।
ये हम गुनहगार औरतें हैं
जबकि हमारे जिस्मों की फसल बेचने वाले
करते हैं आनंद
हो जाते हैं लब्ध-प्रतिष्ठ
बन जाते हैं राजकुमार इस दुनिया के।
ये हम गुनहगार औरतें हैं
जो निकलती हैं सत्य का झंडा उठाए
राजमार्गों पर झूठों के अवरोधों के खिलाफ
जिन्हें मिलती हैं अत्याचार की कहानियाँ हरेक दहलीज पर
ढेर की ढेर
जो देखती हैं कि सत्य बोलने वाली ज़बानें
दी गयीं हैं काट
ये हम गुनहगार औरतें हैं
अब,चाहे रात भी करे पीछा
ये आंखें बुझेंगी नहीं
क्योंकि जो दीवार ढाह दी गयी है
मत करो ज़िद दोबारा खड़ा करने की उसे ।
ये हम गुनहगार औरतें हैं
जो मानती नहीं रौब चोगाधारियों की
शान का
जो बेचती नहीं अपने जिस्म
जो झुकाती नहीं अपने सिर
जो जोड़ती नहीं अपने हाथ।
अनुवाद : माइकेल मोजेज़
पुस्तक: कहती है औरतें - सम्पादन -अनामिका
साहित्य उपक्रम
इतिहास बोध प्रकाशन ,इलाहाबाद
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7 comments:
sujata, padhkar achha laga. kai baar auraton se judee kavitao ke naam pare aisi kavitayen bhee de dee jaatee hain jo asal mein purushon kee hotee hain...
bahut khoob, visfotak, aur dhamaka kartee kavitaa, magar afsos ke ye purushwaadee maansiktaa ko nahin tod paatee, khair kab tak. waise aaj dilli mein ladkiyon par tezaab fenkne kee ghatnaa ne stabdh kar rakhaa hai.aap likhtee rahein.
सुंदर कविता।
"बेहतरीन पोस्ट के लिए आदर सहित आभार बधाइयां "
वाह!!!खूब!!!
bahut badhiya kavita..
गुनाहगार वह हैं जो औरतों को गुनाहगार कहते हैं.
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