इतना त्रासद नहीं है
तमाम उम्र ढूढ़ते रहना
सपने के उस पुरूष को
जिसे तराशा था आपने तब
जब आपने सपने देखने की
शुरुआत की थी।
त्रासद यह भी नहीं
कि उम्र के एक मोड़ पर आकर
वह आपको दिखे तो जरूर
पर आपको देख न पाये।
त्रासद यह भी नहीं है
कि सपनों का वह पुरूष
दौपदी की चाहत की तरह
अलग-अलग पुरुषों में मिले।
त्रासद तो ये है
कि जिसे आपने कभी चाहा ही नहीं
उससे यह कहते हुए तमाम उम्र गुजारना
कि तुम ही तो थे मेरे सपनों में।
अर्चना की कविता ऊब और दूब से साभार
Wednesday, November 26, 2008
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5 comments:
त्रासद तो ये है
कि जिसे आपने कभी चाहा ही नहीं
उससे यह कहते हुए तमाम उम्र गुजारना
कि तुम ही तो थे मेरे सपनों में।
kyaa baat haen sach bhi aur sunder bhi
padhvaane kae liyae thanks
वाह! बहुत बढिया रचना है।चंद पंक्तियों मे बहुत गहरी बात कह दी।
त्रासद तो ये है
कि जिसे आपने कभी चाहा ही नहीं
उससे यह कहते हुए तमाम उम्र गुजारना
कि तुम ही तो थे मेरे सपनों में।
मर्म को छूने वाली कविता है. चंद शब्दों में अनकही त्रासदी बयान हो गई. तारीफ क्या करूं, त्रासदी की भी कहीं तारीफ की जाती है?
स्त्रियों का त्रासद को कितने आसान शब्दों में पर बड़ी गहराई से बांधा है...
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