सरिता ने शोषित होने का चुनाव किया था , इसलिए अगर वह अपनी जान खो बैठी है तो हमें उससे सहानुभूति तो होनी ही नही चाहिए और न ही इस स्थिति से कोई सवाल खड़ा होना चाहिए , न ही आक्रोश पैदा होना चाहिए।आखिर हम सब जो चुनते है वही तो हम पाते हैं। है न!
पिछली पोस्ट पर गार्गी दीक्षित ने ऐसा ही कमेंट किया कि मुझे सरिता से सहानुभूति नही है क्योंकि उसने शोषित होना ही अपने लिए चुना था।इसी तरह की बातें पहले भी बहुत बार यहाँ बहुत से लोगों ने कहीं हैं।
मेरी सारी की सारी परेशानी केवल इतनी है कि मै समझने मे असमर्थ हूँ कि सीमोन की यह उक्ति कि - स्त्री बनाई जाती है पैदा नही होती का मतलब समझते हुए , लड़कियों की हमारे समाज मे की जाने वाली सोशल ट्रेनिंग और स्थिति को देखते हुए भी हम उनके सन्दर्भ मे "चुनाव" के हक की बात ऐसे करते हैं जैसे हमारे देश मे सभी स्त्रियाँ अनिवार्यत: शिक्षित होती हैं,वे आत्मनिर्भर होती हैं{आर्थिक भावनात्मक सभी तरह},वे सड़क,गली,मोहल्ले,ऑफिस,घर तक मे सभी जगह स्वतंत्र व सुरक्षित होती हैं,उनपर घर की इज़्ज़त का टोकरा नही लदा रहता,उनपर शादी कर अभिभावकों को मुक्ति देने और पुत्र रत्न को जन्म कर सास ससुर को मुक्त करने का ठीकरा भी नही है।
क्या मैं आँकड़े गिनाऊँ कि हमारे देश मे कितनी लड़कियाँ स्कूल का मुँह तक नही देख पातीं, कितनी केवल कुछ कक्षाएँ पढ कर ड्रापॉउट की गिनती बढाती हैं और अपने छोटे भाई बहनो को सम्भालने के लिए घर पर ही रुकती हैं ,कितनी अच्छी पढाई लिखाई से इसलिए वंचित हैं कि माता-पिता गरीब हैं और अपने बुढापे के सहारे को ऊंची शिक्षा दिलाने मे ही अपने सारे सोर्स खर्च करना चाहते हैं, कितनी ऐसी है जो अच्छा पढ लिख कर कमाते हुए भी घर परिवार समाज के जड़ संस्कारों से मुक्त नही हो पायीं क्योंकि वे जानती ही नहीं कि वे दर असल एक षडयंत्र के तहत पाली पोसी गयी हैं और अब भी उसी ट्रेनिंग को आगे की पीढियों तक पहुँचा रही हैं। वे अब भी पूरी निष्ठा से अपनी गुलामी के प्रतीक त्योहारों को जोशोखरोश से मनाती हैं और अपनी बेटियों से मनवाती हैं।
अब अगर मैं "चुनाव" वाला फार्मूला अन्य शोषित तबकों पर लागू करके देखूँ तो मुझे लगता है
"पर्सनल चॉयस " के समर्थक सहमत होंगे कि -
1. गरीबों ने गरीब होना चुना है{आखिर सबके पास कमाने के समान अवसर हैं}
2.मजदूर ने ठेकेदार और मालिक की लात सहना चुना है {विद्रोह कर दो,चाहे पुलिस ठेकेदारों से मिली हो और आस पास के ठेकेदार काम देना बन्द कर दें और बच्चे जो रोज़ सत्तू खा लेते हैं वह भी न मिले , और हाँ कमा नही सकते थे तो बच्चे पैदा ही क्यों किए , तुम्हारी चॉयस थी , अब मरो , हमें सहानुभूति नही}
3. कर्ज़ न दे पाने के कारण किसानो ने आत्महत्या करना चुना है
{किसने कहा था कर्ज़ लो, खेती बस की नही थी न करते शहर आकर पियन बन जाते,अब मरो , हमें क्या}
4. आदिवासियों ने शहरी सुविधाओं और तेज़ चाल से अछूता रहना चुना है{हम तो उन्हें आधुनिक बनान चाहते हैं वे ही अपनी जंगल ज़मीन के मोह से बन्धे हुए हैं और हमारे कोयले ,तेल सभी के खदान इस आदिवासियों की ज़मीन के नीचे दबे हैं क्या हम इनके लिए अपना विकास रोक दें}
5. जिसके घर चोरी हुई उसने चोरी करवाना चुना था{अलर्ट सिस्टम क्यों नही लगवाया घर मे , चोरी तो होगी ही, गार्ड रखना चाहिए थी , अब सोसायटी क्या करे , आप ही लापरवाह हो}
6. किसी ने ब्लू लाइन मे बस मे रोज़ाना का पीड़ादायक सफर करना चुना है{गाड़ी लो या ऑटो से जाओ वर्ना सड़ो ब्लू लाइन मे}
7.किसी ने छोटी छोटी ख्वाहिशों को रोज़ जज़्ब करना चुना है{बड़ी ख्वाहिश करो , बड़ा पाने के लिए कुछ भी करो}
8.किसी क्षीण काय ने बलवान आदमी से पिटना चुना है {आपकी गलती, कम क्यों खाया, भरपेट खाओ, दूध पियो , मेवे खाओ फिर देखो कैसे कोई थप्पड़ भी मारता है}
9.किसी ने लाइन मे सबसे पीछे खड़ा होना चुना है{आपकी गलती घर से जल्दी क्यों नही निकले, कोई तो आखिरी होगा ही , वही लूज़र है }
10.बलत्कृत होती युवती ने बलात्कृत होना चुना है {शीला दीक्षित जी के अनुसार भी-
रात को अकेली घूमोगी तो यही होगा}
यह बिलकुल वैसा ही तर्क है जैसा
नोयडा बलात्कार केस मे बलात्कारी युवकों के गाँव के मुखिया ने कहा कि - हमारे बच्चे निर्दोष हैं उन्होने ने ही उकसाया होगा। या कोई कह उठा कि लड़की के माँ बाप ने इतनी रात गए उसे बाहर रहने ही क्यों दिया था, यह तो होगा ही।
11. आदिम मनुष्य कच्चा माँस खाता था,शिकार करता था,नग्न रहता था तो यह उसकी चॉयस थी उसे किसने रोका था आग का आविष्कार करने से,कपड़ा पहनने से...
तो सिद्ध हुआ कि सारी बातें चूंकि पर्सनल चॉयस से घट रही हैं सो समाज मे कोई दोषी नही , किसी कानून व्यवस्था की ज़रूरत नही ,जो घट रहा है वह सब जायज़ है क्योंकि सभी कुछ सभी के चुनाव के हिसाब से उन्हें मिल रहा है।
इसलिए यह माना जाए कि , चोखेर बाली क्या चीज़ है ..किसी न्याय प्रणाली , सरकार , एन जी ओ , संस्था की हमें कोई ज़रूरत नही है। ZOO के जानवरों ने अपना प्राकृतिक घर छोड़ ताउम्र इस कैद मे तमाशा बन कर रहना खुद चुना है क्योंकि जानवर होना उन्होंने चुना है और इंसान होना हमनें।
मनुष्य अपने इतिहास से निर्मित हुआ है, इस प्रकार के तर्क वही व्यक्ति दे सकता है जो मनुष्य के वजूद मे से उसका सारा मानव इतिहास और सामाजिक विकास प्रक्रिया को काट कर अलग रख देता है।
क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि चॉयस या पसन्द या चुनाव हमेशा सक्षम, बलवान,समर्थ ,प्रतिष्ठित के सन्दर्भ मे ही अर्थवान होती है। जब आपकी जेब मे 1000 रु. हों तभी आपको चुनाव का हक है कि आपको सिनेमा मे सबसे पीछे की सीट लेनी है, कोने की लेनी है या बीच की।
जब जेब मे सिर्फ 100 रु की औकात हो तो चॉयस कोई मायने नही रखती।