दहेज का रोग एक ऐसा रोग है जिसे समाज ने जब चाहा लड़की के गले में बांध दिया। फिर चाहे वह शादी के पहले हो या बाद में। दहेज के नाम पर लड़कियों को जिन्दा जला देना, उन्हें प्रताड़ित करना, उन पर दुनिया भर के लांछन लगाना, उनके परिवारजनों को अपमानित करना रोजमर्रा की चीजें हो गई हैं। दुर्भाग्यवश इसमें महिलाएं भी उतनी ही भागीदार होती हैं। जिन चीजों को बेटियों के नाम पर वे बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं, वही बहू के मामले में लागू होने लगती हैं। ....... पर समाज में अब नारी प्रताड़ना सहते-सहते थक चुकी है और इन चीजों का जवाब भी देने लगी है। गोरखपुर के बड़हलगंज की रेनू त्रिपाठी के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। दहेज को लेकर शादी के बाद से रेनू को उसके ससुराल वालों ने प्रताड़ित करना आरम्भ कर दिया और उसके ससुर ने उसे उसके पिता के घर पहुँचा दिया। साल भर तक रेनू ने इंतजार किया कि उसके ससुराल वालों को उसकी सुध आयेगी, पर उसका कोई हाल-चाल लेने तक नहीं पहुँचा। रिश्तेदारों की पंचायत भी दहेज लोभी ससुराल वालों को न समझा सकी। मायके में भी सभी लोग हताश हो चुके थे। अखिरकार रेनू ने इस उत्पीड़न के खिलाफ अपनी जंग स्वयं लड़ने की सोची और बकायदा बारात लेकर अपने ससुराल पहुँचने की ठानी। रेनू ने स्वयं इसके लिए बकायदा कार्ड छपवाया। अपने रिश्तेदार, परिचितों और गाँव वालों के अलावा बकायदा पुलिस के अधिकारियों को भी इसकी सूचना दी। यही नहीं रेनू ने सम्भ्रांत लोगों से बारात में शामिल होने की अपील भी की, ताकि वह अपने पति के घर में जगह पा सके। खैर, 17 जनवरी को बकायदा बारात लेकर ढोल-बाजे के साथ रेनू त्रिपाठी अपने ससुराल पहुँची और आत्मविश्वास के साथ ससुराल वालों के साथ रहना आरम्भ कर दिया। ससुराल वाले भौंचक्के हैं कि यह सब कैसे हो गया? इस जज्बे के बाद रेनू त्रिपाठी के साथ तमाम लोग उठ खड़े हुए हैं।........ अब इसे चाहे जज्बा कहें, चाहे नारी द्वारा खुद के हक की लड़ाई पर एक चीज तो तय है कि 21वीं सदी की नारी बदल रही है। अभी तक ऐसे हालात शहरों में सुनाई देते थे पर अब तो यह गूँज दूर तलक गाँवों से सुनाई देती है।
आकांक्षा
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16 comments:
अब इसे चाहे जज्बा कहें, चाहे नारी द्वारा खुद के हक की लड़ाई पर एक चीज तो तय है कि 21वीं सदी की नारी बदल रही है।....Very-Very agree with u madam.
शौर्य जीवन का दूसरा नाम है.. प्रेरणादाया आलेख
....Bahut sahi likha apne.
ये दहेज का दानव तो द्फ़न ही होना चाहिए।
"अखिरकार रेनू ने इस उत्पीड़न के खिलाफ अपनी जंग स्वयं लड़ने की सोची"
बिल्कुल सही कहा आपने . जब तक नारी अपनी लड़ाई नहीं लडेगी अपने आप तब तक उस की जिंदगी मे सुधार सम्भव हैं ही नहीं . सबको जिंदगी मे "चुनाव " का एक अवसर मिलता हैं और ये उस पर निर्भर करता हैं की वो उस अवसर का कितना फायदा उठाए . बनी बनाई लकीर पीटने से अच्छा हैं की अपने लिये और औरो के लिये नया रास्ता बनाया जाए . आम आदमी / औरत ही ऐसा कर सकते हैं . प्रेरणादायक आलेख पिछले तीन आलेखों के विपरीत धारा मे जाता हुआ . थैंक्स इसको यहाँ देने के लिये
समाज को बदलना होगा। पर कैसे? जरा सोचें इस पर।
रेणु की तारीफ की जानी चाहिए.....समाज को भी ऐसी युवतियों का साथ देना चाहिए।
रेनू ने एक हिम्मती और मौके के मुताबिक सही कदम उठाया। जब तक उसे विश्वास है और ससुराल वालों को डर है कि समाज भी अब रेनू के साथ है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि उसे दोबारा वैसे व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ेगा।
वृहत्तर समाज (संदर्भ: "रिश्तेदारों की पंचायत भी दहेज लोभी ससुराल वालों को न समझा सकी।") अब ऐसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ सक्रिय होने लगा है। अपने आप भले कुछ न करे, पर किसी की अपील पर समर्थन तो देने ही लगा है। और रेनू के इस विश्वास को सभी जरूरतमंद, पीड़ित महिलाओं तक पहुंचाना होगा कि परिवार के दायरे बाहर समाज का बडा दायरा है, जो समर्थन के लिए परिवार या छोटे समुदाय/पंचायत का मुंह नहीं जोहता। इसे समज की सोच में बदलाव की तरह देखा जाए। इस सोच में और भी कई स्तरों, मसलों पर बदलाव लाने की मुहिम को चोखेर... और आगे बढ़ाए।
आकांक्षा जी ने लम्बे समय बाद कोई पोस्ट की, पर अद्भुत पोस्ट. दहेज़ न सिर्फ सामाजिक बुराई है बल्कि मानवता के नाम पर यह कलंक है. रेनू जैसी नारियां समाज को नई रह दिखा रही हैं, उनकी जीवटता को सलाम !!
दहेजासुरों के साथ अब तो यही होना चाहिए.अभी ऐसी घटना जौनपुर में भी हुयी थी...आज की नारी जाग चुकी है.
हम तो मूल रूप से गोरखपुर के ही हैं. गोरखपुर की एक नारी का यह अद्भुत साहस पढ़कर काफी प्रस्सन्नता हुयी. आकांक्षा जी को ऐसी लाजवाब प्रस्तुति के लिए ढेरों बधाई.
पहली बार इस तरह की घटना सुनी पर यह बदलते दौर की दास्ताँ है. आकांक्षा जी यूँ ही देश-दुनिया से बा-खबर करते रहें, बहुत-बहुत धन्यवाद.
बहुत ही उत्साहबर्धक और प्रेरणादायक पोस्ट के लिए धन्यवाद...
main aisa sochta hoon ki ye jimmedari ladkon ki hai ki ve is samajik kuriti ka ghor virodh karen aur pran karen ki bina dahej liye hi shadi karenge. good article .badhai
दहेज एक अभिशाप है यह जानकारी सभी को है । सभी को यह भी मालूम है कि महिलाओं को समाज में जो मान्यता मिलनी चाहिए आज तक नही मिला है । उसके लिए महिलाए कम जिम्मेदार नही है । आज महिला भारत में सबसे ताकतवर पायदान पर है । प्रतिभा पाटिल और सोनिया गांधी से ताकतवर लोग अभी इस देश में नही है फिर महिलाओं की इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है । खुद महिलाए या महिला नेतागण । शक्तिशाली होने के बाबजूद इन महिलाओं ने आज तक महिलाओं के लिए क्या किया है खुद महिला को सोचना चाहिए । शुक्रिया
अच्छा लगा आकांक्षा जी पढ़कर.
प्रेरणादायक आलेख.और बिल्कुल सही बात है की आज की नारिजाग रही है,आख़िर कबतक सोती रहेगी......
अलोक सिंह "साहिल"
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