
ओढ़नी
मैट्रिक के इम्तिहान के बाद
सीखी थी दुल्हन ने फुलकारी !
दहेज की चादरों पर
मां ने कढ़वाये थे
तरह तरह के बेल बूटे,
तकिए के खोलों पर ÷गुडलक' कढ़वाया था!
कौन मां नहीं जानती, जी, जरूरत
दुनिया में ÷गुडलक' की !
और उसके बाद?
एक था राजा, एक थी रानी
और एक थी ओढ़नी
लाल ओढ़नी फूलदार!और उसके बाद?
एक था राजा, एक थी रानी
और एक खतम कहानी !
दुल्हन की कटी फटी पेशानी
और ओढ़नी खूनमखून !
अपने वजूद की माटी से
धोती थी रोज इसे दुल्हन
और गोदी में बिछा कर सुखाती थी
सोचती सी यह चुपचाप
तार तार इस ओढ़नी से
क्या वह कभी पोंछ पायेगी
खूंखार चेहरों की खूंखारिता
और मैल दिलों का?
घर का न घाट का
उसका दुपट्टा
लहराता था आसमानों पर
÷गगन में गैब निसान उडै+' की धुन पर
आहिस्ता आहिस्ता !कविता: अनामिका कीप्रेषिका : लावण्या
6 comments:
एक था राजा, एक थी रानी
और एक खतम कहानी !
ह्रिदय को छू लेने वाली कविता है. आभार.
मर्मस्पर्शी!
अति भावपूर्ण रचना.
वाह ! अतिसुन्दर भावपूर्ण यथार्थ चित्रित करती मर्मस्पर्शी रचना...
संवेदनशील कविता....
शुक्रिया ...
waah......!!!!
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