(राष्ट्रीय बालिका दिवस : २४ जनवरी पर विशेष)
मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
मै माँस-मज्जा का पिण्ड नहीं
दुर्गा, लक्ष्मी औ‘ भवानी हूँ
भावों के पुंज से रची
नित्य रचती सृजन कहानी हूँ
लड़की होना किसी पाप की
निशानी तो नहीं
फिर
मैं तो अभी अजन्मी हूँ
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
माद्दा रखती हूँ
श्मशान घाट में भी अग्नि देने का
बस विनती मेरी है
मुझे दुनिया में आने तो दो !!
आकांक्षा
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29 comments:
बस विनती मेरी है
मुझे दुनिया में आने तो दो !!"
करुण नहीं, हाहाकारी पंक्ति है यह.
धन्यवाद.
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आकांक्षा जी की इस भावपूर्ण कविता के लिए बधाई. कम शब्दों में आकांक्षा जी ने बहुत कुछ कह दिया .
लड़की होना किसी पाप की
निशानी तो नहीं
फिर
मैं तो अभी अजन्मी हूँ
....समाज की मानसिकता पर चोट करती अद्भुत कविता.
मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
....लाजवाब है राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आकांक्षा जी की यह प्रस्तुति.
कविता के बहाने यह रचना उस सच को बयां करती है, जिसे जानते हुए भी तथाकथित सभ्य समाज नजरें चुराता है. आकांक्षा जी की लेखनी की धार नित तेज होती जा रही है...साधुवाद स्वीकारें !!
इस कविता को पढ़कर मैं इतना भाव-विव्हल हो गया हूँ कि शब्दों में बयां नहीं कर सकता.
'राष्ट्रीय बालिका दिवस' पर आकांक्षा जी की इस ''मैं अजन्मी'' कविता के मर्म को समझते हुए यदि कोई एक व्यक्ति भी वास्तव में आपने में परिवर्तन ला सका तो इसकी सार्थकता होगी.
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
.....बहुत कुछ कह जाती हैं ये पंक्तियाँ. इनमें मारक क्षमता है.
आकांक्षा ,
जेन्डरिंग की प्रक्रिया गर्भ मे भ्रूण के स्थित होते ही शुरु हो जाती है यह हमारे समाज का एक बड़ा सच है और दुखद है।यह और भी दुखद है कि राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की हमे ज़रूरत पड़ती है।इस ओर ध्यान दिलाने का आभार !
सर्वप्रथम तो अपने इस ज्ञान में इजाफे के लिए आकांक्षा जी का आभार कि आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है. अभी तक आपकी कई रचनाओं-विचारों से इस ब्लॉग पर रूबरू हुआ हूँ, पर आज प्रस्तुत आपकी यह कविता तो बेजोड़ है. इसमें कातरता है, बेचारगी है, उलाहना है, ललकार है, शिक्षा है....काश कि लड़कियों की भ्रूण-हत्या करने वाले दरिन्दे इस कविता को पढ़ते और कुछ सीख लेते.
दुर्गा, लक्ष्मी औ‘ भवानी हूँ
आकांक्षा
सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि पितृसत्तात्मक समाज लड़कियों को दुर्गा, लक्ष्मी और भवानी तो फिर भी मान लेता है जबकि एक लड़की को हाड़- मांस का जीव जिनके भीतर कुछ इच्छाएं होती है,जिंदगी को लेकर दो-चार सपने होते हैं औऱ फैसले लेने की ताकत, इस बात को मानने से इन्कार कर देता है। लड़की को उपमान नहीं चाहिए, उसे उसकी सही जगह चाहिए और वो उसे हाड-मांस की होकर ही हासिल करना होगा
विनीत की बात से सहमत हूँ ।
बहुत ही मर्मस्पर्शी! पर स्त्री को देवी नहीं मानवी बनने के लिये संघर्ष करना है।
कविता के भाव में दुर्गा, लक्ष्मी औ‘ भवानी शक्ति की प्रतीक हैं, न की दैवीय विधान की प्रतीक. नारी सिर्फ माँस-मज्जा का पिण्ड नहीं बल्कि शक्ति, निहित क्षमताओं, विचारों और भावनाओं का समग्र पुंज है.सीधे शब्दों में कहूं तो नारी का अस्तित्व सिर्फ देह तक नहीं है, बल्कि उससे परे भी है. नारी कोई गुड़िया या fashionable आइटम नहीं है, जिसे जब जहाँ चाहा बिठा दिया और मन भर जाने पर फेंक दिया. .....कविता में शब्दों की बजाय शब्दों की अर्थवत्ता पर ध्यान दिया जाय तो ज्यादा सुगम होगा !!
आकांक्षा जी! आपने बहुत सही कहा और कविता की भी सार्थक व्याख्या कर दी. मैं आपसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ .
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की ...आभार....सभी बाकिाओं को उनके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं ।
mt sahana mere liye klesh
mt sahejana mere liye dahej
main dikha dungi
ki ladakon se nahin kamatar
--ladakon se apani tulana kar ke hi apane astitw ki raksha kr payega ladaki. kitana dukhad haiye.
बचीं तो कल्पना* बन कर उड़ेंगी
अजन्मी बेटियाँ भी अम्बरों तक
*कल्पना चावला
बहुत सार्थक रचना
सादर
द्विजेन्द्र द्विज
वाह जी वाह बेहतरीन कविता लिखी है
काफी पहले भी मैंने लिखी थी एक कभी समय लगे तो देखना
http://mohankaman.blogspot.com/2008/05/blog-post_7893.html
ये लिंक है
...Ajanmi bachhi ke vyathit shabd sunkar bhala kiska dil na pighal jaye...very nice Poem !!
ati uttam...behtareen rachna
गणतँत्र दिवस सभी भारतियोँ के लिये नई उर्जा लेकर आये ..
और दुनिया के सारे बदलावोँ से सीख लेकर हम सदा आगे बढते जायेँ
बदलाव के लिये व नये विचारोँ मेँ से,
सही का चुनाव करने की क्षमता भी जरुरी है ..
जिसमेँ से एक है कन्या/ नारी को सन्मान व समानता तथा
सत्कार मिले -
baalikaa divas per ek ajanmee bachhee ke bhaav hame bachchiyo ke baare mai sakaaraatmak soch ko badhaavaa dene ko prerit karte hai vaha bachchiyo ke atma gaurav ka isharaa bhee karte hain. chokher bali per aise hee sakaraatmak lekh badhe to samaaj kaa jyadaa bhalaa hogaa.
Very Powerful poem.
आकांक्षा की बात सही है और उनके कमेंट से उभर कर आयी है लेकिन विनीत का इशारा भाषा के उस प्रयोग की ओर है जिसे पितृसत्ता ने अपना औजार बनाया स्त्री के ब्रेन वॉश के लिए।आखिर यह सोचने वाली बात है कि जब समाज को पुरुष ने अपने मुताबिक बनाया वैसे ही भाषा को भी अपने मुताबिक ही गढा , इसलिए जब तक स्त्री अपनी भाषा खुद नही गढेगी, अपने प्रतीक खुद नही गढेगी तब तक वह "अपनी" अभिव्यक्तियों को नही कह पाएगी और बनी बनाई भाषा मे उसकी बात भी पितृसत्ता द्वारा एप्रोप्रिएट कर ली जाएगी।
आकांक्षा की मंशाओं से विनीत के कमेंट का कोई विरोध् नही है , बल्कि दोनो ही एक बात ही कर रहे हैं ।
60 वें गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें !!
अर्चना said...
--ladakon se apani tulana kar ke hi apane astitw ki raksha kr payega ladaki. kitana dukhad hai ye.
Qabil-e-gaur inki baat bhi hai.
SHAAYAD MUJHE NIKAAL KE PACHHTAA RAHE HAIn AAP/
MEHFIL MEn IS KHYAAL SE FIR AA GAYAA HUn MAIn.//
काफी उम्दा सोच का प्रतीक है ये ब्लॉग.
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