1928 मे जब रॉबर्ट ई पार्क का लेख 'मार्जिनल मैन ' अमेरिकन जर्नल मे छपा था तब मार्जिन टर्म लगभग नयी ही थी। आज मुख्यधारा और हाशिया जैसी टर्मेनॉलजी से हम सभी परिचित हैं।वह लेख समाज के हाशिए पर जीने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थितियों पर शोध था जो कहता था कि आम तौर पर एक हाशियाई अस्मिता के जीवन मे तीन चरण आते हैं।पहला, जब वह अपनी स्थिति से अनभिज्ञ होता है , माने हम लाख कहें कि तुम समाज के हाशिए पर हो वह नही मानेगा ,उदाहरण अगर दूँ तो एक पत्नी जो पति परमेश्वर के मूल्य को आत्मसात किए है वह पिट कर भी पति की ही तरफदारी करेगी।
दूसरी स्थिति , जब उसके जीवन मे अक्समात कोई ऐसी घटना हो जाती है जब उसके भ्रम टूटते हैं , वह अपने हीन समझे जाने को , समाज के हाशिए पर होने को महसूस करता है।तीसरी स्थिति , अब वह या तो इन स्थितियों से समंजन करता है या विद्रोह ,आवाज़ बुलन्द करता है या फिर चुपचाप श हादत की मुद्रा मे घुटने टेक देता है।
मुझे यह सब याद आया जब सुधा ओम जी ने अपनी यह कविता मुख्तारा माई के बारे मे चोखेरबाली के लिए लिख भेजी।और मुख्तारन बीबी के मुख्तारन माई बन जाने के दर्द और हिम्मत को यहाँ शब्दों मे समेटा।मीरवाला ,पाकिस्तान मे जन्मी मुख्तार बीबी को ग्लैमर मैगेज़ीन का वर्ष 2005 का वुमेन ऑफ द यिअर अवार्ड भी प्राप्त है।
रिश्तों से बगावत क्यूँ ?
सुधा ओम ढींगरा
पिछले दिनों मुझे पाकिस्तान की मुख्तारां माई से ( जिनका गैंग रेप हुआ था )मिलने का अवसर मिला मैंने अपने स्तम्भ के लिए उनका इंटरव्यू लिया था. उनसे बातचीत कर यह महसूस हुआ कि इस त्रासदी को उन्होंने अपनी कमज़ोरी नहीं ताकत बना लिया है. अपराधियों के विरुद्ध वे लड़ीं और केस जीतीं . अब अपने इलाके में उन्होंने लड़कियों का स्कूल खोला है जहाँ लड़कियां पढ़तीं हैं . बलात्कृत महिलाओं को मुख्तारां माई सहारा देतीं हैं , उनके केस लड़तीं हैं व उन्हें कमज़ोर नहीं होने देतीं . एक लड़की के साथ तो माँ- बाप की मर्ज़ी से रिश्तेज़ाद भाईओं ने रेप किया. रिपोर्ट की तो जिस शर्मिंदगी से उसे गुज़रना पड़ा किस्से ऐसे थे कि रौंगटे खड़े हो गए. सगे रिश्तों ने लूटा, पीटा और ज़लील कर घर से निकाल दिया. दैनिक जागरण में भी एक ख़बर पढ़ी कि माँ की मौत के बाद दो बहनों का पिता और चाचा ने बलात्कार किया. इन सभी से प्रेरित जो रचना उत्पन्न हुई वह प्रस्तुत है---
रिश्तों से बगावत क्यूँ ?
जब पूछा उनसे
रिश्तों से बगावत क्यूँ ?
रिश्ते तो
भले
चंगे
सुख देने वाले होतें हैं .
भराए गले
गालों तक
लुढ़क आए
आंसुओं को समेटते वें बोलीं--
रिश्तों ने
समाज सम्मुख
बलात्कार कर
नंगे बदन
गाँव में घुमाया था.
माँ ने टांगे पकड़
बच्चा गिरवाया था
दूसरे कबीले
के लड़के से प्यार कर
ब्याह जो बनाया था.
मिलीभगत थी
पुलिस की भी
डराया था
धमकाया था
माँ बाप को तंग करेंगें
षड्यंत्र रचाया था
अपराधियों के खिलाफ
रपट वापिस लेने का
दबाब डलवाया था.
डटी रहीं थीं वें
रिश्तों से मुंह मोड़
समाज और इसके
ठेकेदारों से लड़
स्वाभिमान बचाया था.
औरतों के
अधिकारों का तमाशा बना
पुरूष
उसे अपने
उस साम्राज्य में
ले जाना है चाहता
जो सदियों के प्रयत्नों से
औरत को कमज़ोर बना
उसने बनाया था.
परिवार से दुत्कारी
रिश्तों से नक्कारी
पीड़ित , प्रताड़ित
ये वीरांगनाएँ
एक दूजे का साथ देतीं
न्याय को पुकारतीं
अधिकारों को गुहारतीं
बार -बार बदन ढकतीं
जो पुरुषों के
अनर्गल ,
बेवजह प्रश्नों से
उधड़-उधड़ जाता है.
सिर पर आँचल ओढ़ती
सब की सब कह उठीं --
क्या अब भी पूछना है
रिश्तों से बगावत क्यूँ ?
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7 comments:
जब आप ने सब रामकहानी बोल दी तो क्या पूछा..रिश्तों से बगावत क्यों...हमने सोचा था चुप रहेंगे. किसी को कुछ न कहेंगे..तीर बन चढ़े जब वो कमान पर...तब हर दर्द आ गया जुबान पर
कुछ परिवारों में ऐसे रिश्तों को रिश्तों का नाम नही दे सकते, इस प्रकार के नारकीय परिवारों या समाजों में जो रीतियाँ निभाई जाती हैं, भारतीय समाज के सन्दर्भ में,और हमारे परिवेश में सिर्फ़ उबकाई आ सकती है ! ऐसे रिश्ते मानव समाज पर कलंक हैं, दुःख है कि ऐसे परिवार सच्चाई हैं !
हम सब को मुख्तारा माई से सीख लेना चाहिये कि लटें और एकजुट होकर लडें । पर लडें किसलिये - समाज मे अपनी जगह वनाने के लिये अपने स्व की रक्षा के लिये, पढाई के लिये , अधिकारों के लिये, असंगठित महिलाओं के लिये ।
इस साइट पर पहली बार आई । कई पोस्ट पढ़े । अच्छा लगा कि इतने सारे लोग इतने सारे प्रश्नों पर एक जुट हो कर सोच रहे हैं । दिनकर की कविता याद आती है :
औरतों के औरतानेपन
और मर्दों के मर्दानेपन ने
सारा खेल खराब कर दिया
जरूरत है इस बात की
कि हर औरत जरा मर्द
और हर मर्द जरा नारी हो !
( स्मृति से लिखी हैं , यदि पंक्तियों में कुछ इधर-उधर हो तो क्षमा चाहूँगी)
सुधा जी की कविता एक सांस में पढ़ गई। जब कहीं कुछ टूटता है , तभी हम नया रचते हैं । रिश्ते बनाने , बनाए रखने का काम औरत ही करती आई है तो सड़े गले रिश्तों को नकारने का भी उसे पूरा हक है!
इला
शब्द नहीं हैं... मौन हूँ.
Yaar kuchh keh nagi sakte, kabil logo ne ek naya term eezaad kiya tha "honour killing", Shayad ab honour rape ke bare me suna jaayega.
ander tak hil gai .sochti rahi kya khoobi se likha hai aap ne
saader
rachana
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