विनीत कुमार -
अनामिका, मधु किश्कर, सुकृता पाल कुमार और राजकिशोर इन सबका परिचय देने के क्रम में पूजा प्रसाद ने लोगों की जीवनी पढ़ने के बजाय उनसे जुड़े उन संदर्भों और जानकारियों की चर्चा की जो कि विषय के हिसाब से ठीक बैठते थे। नहीं तो परिचय देने के क्रम में वक्ताओं की पूरी की पूरी जीवनी पढ़ने लग जाते हैं। इधर पढ़नेवाला बेमन से पढ़े जा रहा है,सुननेवाला खत्म होने का इंतजार कर रहा होता है और जिनका परिचय दिया जा रहा होता है, झेंपने की स्थिति में आ जाते हैं। यहां परिचय देने से ये स्पष्ट हो गया कि इन्हीं वक्ताओं को चुनने की क्या वजह रही। अनामिका स्त्री अधिकारों, अस्मिता पर लगातार लिखती रही हैं और स्थापित आलोचक और कवयित्री के रुप में तो नाम है ही। इसके साथ ही स्त्री-भाषा को उसकी मुक्ति और बदलाव का सबसे बड़ा माध्यम मानती है। ब्लॉग के जरिए स्त्री एक ऐसी भाषा गढ़ रही है जिसमें संवादधर्मिता की गुंजाइश ज्यादा है। मधु किश्कर, सीएसडीएस से जुड़ी हैं और मानुषी की संचालिका भी है। एक ऐसा मंच जिसके खड़े किए जाने पर कई तरह के सवाल औऱ अड़चने पैदा की गयीं। सुकृता पाल कुमार आलोचक हैं और लगातार स्त्री-अधिकारों पर लिखती रही है। नए माध्यम के रुप में ब्लॉग के जरिए स्त्री अधिकारों और सवालों को किस हद तक सामने लाया जा सकता है,इस पर बात करना जरुरी है। सुकृता पाल ब्लॉग के जरिए स्त्री-अस्मिता पर बात करना पहले से बिल्कुल अलग मानती है, जिसे जानना दिलचस्प रहेगा। राजकिशोर नियमित लेखों और पत्रकारिता के जरिए स्त्री सवालों को उठाते हैं जो कि श्रृखंला रुप में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि वो स्वयं भी चोखेरबाली से शुरुआती दौर से ही सक्रिय रुप से जुड़े रहे हैं। पोस्टों पर टिप्पणी औऱ प्रतिक्रियाएं देते आए हैं, पोस्ट लिखते आए हैं। राजकिशोर ने ब्लॉग के बदलते मंजर को ब्लॉगिंग करते हुए देखा है। पूजा प्रसाद के द्वारा परिचय देने के बाद तय किया गया कि आर.अनुराधा चोखेरबाली के उपर पावर प्वाइंट प्रजेन्टेशन देगी। लेकिन इधर अनामिका काफी हद तक अपनी बात रख चुकी थीं, इसलिए अनामिका ने अपनी बात पूरी की।
दर असल चोखेरबाली पर जो भी लिखा जाता है , वह भाषा ही है और इस दृष्टि से स्त्री प्रश्नों की भाषा पर बात होनी ही चाहिए थी।अनामिका ने संवादधर्मिता औऱ अनुभव की गठरी बाली बात जारी रखते हुए कहा कि- अभिव्यक्ति के गर्भ में ही व्यक्ति है। जहां अभिव्यक्ति नहीं है, वहां व्यक्ति औऱ व्यक्तित्व का होना संभव नहीं है। पुरुष ने वो भाषा ही नहीं सीखी कि किसी के कंधे पर हाथ रखकर बात कर सके। उसकी भाषा मुच्छड़ भाषा है, किसी मैजेस्ट्रेट की तरह की रैबदार। जबकि स्त्रियों की भाषा बतरस में प्राण पाती है। आप बसों में जाइए- देखिए कि एक स्त्री की आंख से अभी पहली ही बूंद टपकी है कि दूसरी स्त्री उसके कंधे पर हाथ रखकर कारण जानने के लिए बेचैन हो उठती है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो मजदूरिन है और पूछनेवाली टीचर या और कुछ। बिना किसी कॉन्टक्सटुलाइजेशन के बात शुरु हो जाती है। ब्यूटी पार्लर औऱ दुनिया भर के इसी तरह के जो नए स्पेस बन रहे हैं, वहां ये सवाल नहीं किए जाते कि तुम्हारी पीठ पर ये नीले निशान क्यों है, उसे बर्फ से सेंक भर देते हैं। लेकिन भाषा एक उष्मा देती है, जीने का एक नया अर्थ देती है।
जिस तरह से पुराने स्वेटर को खोलने से फिर से स्वेटर बुनने की गुंजाइश बनी रहती है, उन के लच्छेदार मुड़ जाने पर भी गर्माहट बनी रहती है, उसी तरह से नए माध्यमों में भाषा की गर्माहट बनी रहनी चाहिए। सबसे जरुरी है स्त्रियां मिल-जुलकर एक भाषा गढ़े। स्त्री आंदोलन अहिंसक आंदोलन है। स्त्री आंदोलन ने बदलाव का जो रास्ता चुना है उसमें किसी भी तरह की तोड़-फोड़ और तबाही की बात नहीं है, बल्कि निरंतर कुछ न कुछ रचने की ललक है। स्त्रियां बिना दीवार के जिस घर को बनाने की कल्पना करती है वह इसी स्त्री-भाषा से संभव है। एक ऐसी भाषा जिसमें एक स्त्री को कोई शट-अप या गेट आउट नहीं कर सकता। आजकल भाषा और संस्कृति के नाम पर प्लुरलिज्म का जोर बढ़ रहा है। केन्द्र और परिधि का फासला तेजी से बदल रहा है। ऐसे में स्त्री-भाषा बदलाव के नए रुप रच सकती है।खिचड़ी भाषा के बीच ही, इस अनुभव की गठरी के खोलते रहने से ही स्त्री-भाषा के रुप में उस भाषा का विकास संभव हो सकेगा, जो कि पुरुषों के मालिकाना रवैये को खत्म करेगा। इस नयी भाषा के गढ़ने के लिहाज से ब्लॉग एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
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6 comments:
"जिस तरह से पुराने स्वेटर को खोलने से फिर से स्वेटर बुनने की गुंजाइश बनी रहती है, उन के लच्छेदार मुड़ जाने पर भी गर्माहट बनी रहती है, उसी तरह से नए माध्यमों में भाषा की गर्माहट बनी रहनी चाहिए।"
बहुत अनोखी मगर समझ में आने वाली महत्वपूर्ण बात कही अनामिका जी ने...
गोष्ठी का हाल जारी रहे...
सहमत हूं मै आपके विचार से ...चोखेर वाली ने स्त्री विमशॆ को बड़े ही सुन्दर तरीके से उठाया है । उसका यह प्रयास सराहनीय है धन्यवाद
nice discussion...u have raised good points.. thanks for the same.
by the way would like to share that, i was searching for Hindi typing tool and found 'quillpad'.do u use the same..?
एक लड़का
न जाने कितनी बार
टूटा है वो टुकड़ों-टुकड़ों में
हर किसी को देखता टुकुर-टुकुर
जैसे भाव दिल में लिए
‘कभी न कभी कही न कहीं कोई न कोई तो आएगाा’
एक बार तो अपनाओ कोई
कोई कोर-कसर नहीं छोड़ूंगा
तुम्हे सहारा देने में
पर सब बेकार
कोई पूछता तुम्हारे पास कार है या नहीं
कोई उसकी बांहों की मछलियां नापता
कोई कहता तुममें वो कमीनापन तो है ही नही
जो आजकल कमाने-खाने के लिए चाहिए
कोई नहीं देखता उसकी आँखों से
भल-भलकर गिरती मासूमियत
कोई नहीं देखता उसकी आँखों
से लपझप टपकती सरलता
जहाँ आत्म-विश्वास है, फक्कड़पन है,
dhanyawad! aapke blog ki wajah se meri bhasha shudhar rahi hai.
बलात्कार नाच रहा हैं
शहर और गावों की गलियों में
नेता अफसर मना रहे रंगरेलिया
कांच की हवेलियों में
तुम कौनसे कम हो
बंद दरवाजो से
तमाशा देखते हो खिडकियों से
तब भी मन नहीं भरता तो
मजा लेते खबरों और सुर्खियों से
- सुरेन्द्र जिन्सी
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