सपना चमड़िया
दसवाँ भाग
सपना की डायरी
मै रोज़ उगते सूरज से होड़ करती हूँ ,रोज़ उसका पीछा करती हूँ और यह लड़ाई भी शुरु हो जाती है कि कौन अपना काम पहले खत्म कर लेता है।सूरज आराम आराम से आसमान मे चढता है , मै भागते भागते अपना घर सम्भाल रही होती हूँ।लेकिन सूरज मन्द मन्द चाल से दुनिया भर घूम आता है म मै इस छोटे से गोले मे घूमती रह जाती हूँ।हर दिन सूरज मुझ से जीतकर नियत समय पर घर लौट जाता है और मै कभी कहीं नही लौट पाती,जो छूटता है मुझसे वह हमेशा के लिए छूट जाता है।यूँ सूरज और मेरा मेल ही क्या? उसकी इच्छा हो निकले , इच्छा न हो न निकले,सर्दी -बारिश मे कई कई दिन जाने कहाँ पर भी पड़ा सुस्ताता रहे।मै भी किसी लम्बी छुट्टी पर जाना चाहती हूँ,लेकिन औरत हुए बिना।जहाँ कोई मेरी सुरक्षा न करे,जहाँ मै किसी की देख रेख ,सेवा न करूँ।मै अपने औरतपने से मुक्त होना चाहती हूँ।लेकिन यह औरत है कि रात-दिन मेरे साथ लगी रहती है।मेरे कहीं पहुँचने से पहले ही पहुँच जाती है और फटफट सारे काम सम्भाल कर गौरवांवित महसूस करती है।और जो मै सचमुच हूँ , वह हमेशा देर से पहुँचती है और ठगी सी खड़ी रह जाती है कि उसके लिए कहीं कोई जगह ही नही बचती।
सुख में,दुख में,प्रेम में,क्रोध में,अच्छे और बुरे मौसम मे,इस युग मे उस युग मेंगाँव में कस्बों में,शहर मे महानगर में....मै "औरत" हूँ।यहाँ तक कि यूरोप मे ,एशिया में।अंतरिक्ष मे कहीं जीवन होगा तो क्या वहाँ भी यही फर्क मौजूद होगा?
बात गर्मियों से,सूरज से शुरु हुई थी और अब बारिश होने वाली है।गर्मियों से बारिश का मौसम आते आते चार महीने लगते हैं लेकिन मुझे एक पेज से दूसरे पेज तक पहुँचने मे जैसे सदियाँ।एक एक दिन अधिक अपमान भरी कड़क दोपहरी स और उसके बीच पल भर की भी सुख की बारिश नही।मुझे लिखना बन्द करना होगा,इसलिए नही कि मै बारिश मे भीगने जा रही हूँ, सूखे हुए कपड़े उठाने जा रही हूँ।फिर तार बान्ध कर उन्हें घर के अन्दर डालूंगी।फिर जब अपनी छोटी सी टेबल तक पहुँचूंगी तो भूल चुकी हूंगी कि क्या लिख रही थी।और यह भी कौन जाने कि इस टेबल तक अगली बात कब आऊंगी-आज ही या कल या परसों या अगली गर्मियों में या कभी नही......
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2 comments:
है।मेरे कहीं पहुँचने से पहले ही पहुँच जाती है और फटफट सारे काम सम्भाल कर गौरवांवित महसूस करती है
bahut sahi chintan
दिलचस्प अंदाज है .पर आने वाले दुःख का डर है
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