दहेज लेने के किस्से समाज में आम हैं। इस कुप्रथा के चलते न जाने कितनी लड़कियों के हाथ पीले होने से रह गये। प्रगतिशील समाज में अब तमाम ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहाँ लड़कियों ने दहेज लोभियों को बारात लेकर वापस लौटने पर मजबूर किया या बिना दहेज की शादी के लिए प्रेरित किया। इन सब के बीच केरल का एक गांँव पूरे देश के लिए आदर्श बन कर सामने आया है। मालाखुरम जिले के नीलंबर गाँव के लगभग 15,000 युवक-युवतियों ने प्रण किया है कि इस गाँव में न तो दहेज लिया जाएगा और न ही किसी से दहेज मांगा जाएगा। यह प्रण अचानक ही नहीं लिया गया बल्कि इसके पीछे एक सर्वेक्षण के नतीजे थे। इस सर्वेक्षण के दौरान पता चला कि गाँव में लगभग 25 प्रतिशत लोग बेघर थे और बेघर होने की एकमात्र वजह दहेज थी। ग्रामीणों को अपनी बेटियों की शादी के लिए अपना घर बेचना पड़ा था। हर शादी पर तीन-चार लाख खर्च होते हंै और इसकी वजह से लोगों को अपना मकान व जमीन बेचनी पड़ती है और अन्ततः वे कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं। इससे मुक्ति हेतु गांव को दहेजमुक्त बनाने का यह अनूठा अभियान आरम्भ किया गया है। फिलहाल इस पहल के पीछे कारण कुछ भी हो पर इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए और आशा की जानी चाहिए कि अन्य युवक-युवतियां भी इससे सीख लेंगे।
आकांक्षा
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8 comments:
Bahut sundar prayas.Iski jitni bhi tarif ki jay kam hogi.
वाह क्या बात है ! चलिए किसी भी वजह से सही, बात समझ में तो आयी।
वाह क्या बात है!!
इस खबर का प्रचार और प्रसार अधिक होना चाहिए था !!
पर अफ़सोस!!
आभार इस जानकारी के लिए!!!!
तथाकथित "सभ्य" लोगों मे जो हिम्मत नही होती वह अक्सर एक बेहद आम , गवँई व्यक्ति मे मिल जाती है।बहुत खूब ! हमे पहल करने मे कितना वक़्त लगेगा ? यहाँ शहरों मे तो शादियाँ नए नए आडम्बर सामने ला रही हैं
और हम सोचते थे कि केरल ही एक मात्र मातृसत्ताक राज्य है ! पर यह उपक्रम स्तुत्य ही नही अनुकरणीय है ।
bhut hi anukarneey kam kiya hai ganv valo ne .
aksar ham ganv valo ko asbhy thhrate hai aur snkuchit mansikta kki upadhi de dete hai kinu ganv ke log admbar nhi karte .
कृपया एक अत्यंत-आवश्यक समसामयिक व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें। मेरा पता है:-
www.samwaadghar.blogspot.com
शुभकामनाओं सहित
संजय ग्रोवर
samvadoffbeat@yahoo.co.in
is sach ko prasaarit karne ke liye badhai
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