भारतीय महिला सांसद अपने पुरुष सहकर्मियों की तुलना में अधिक शिक्षित है और उनके चुनाव में विजयी होने की संभावना भी पुरुषों से अधिक है। एक नए अध्ययन के अनुसार पुरुषों की तुलना अधिक महिला सांसद परास्नातक डिग्रीधारी है।
संसदीय शोध को समर्पित एक गैर लाभकारी संस्था 'पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च' के अध्ययन के अनुसार 15वीं लोकसभा की 59 महिला सांसदों में 32 प्रतिशत परास्नातक और शोध डिग्रीधारी है, जबकि पुरुष सांसदों में यह प्रतिशत 30 है। चुनाव में उम्मीदवार बनी 10 प्रतिशत महिलाएं विजयी हुई, वहीं केवल छह प्रतिशत पुरुष प्रत्याशी ही जीतने में सफल हुए।
अध्ययन के अनुसार, इस बार लोकसभा में सबसे अधिक महिलाएं है और 545 सदस्यों में उनका प्रतिशत 11 है। राज्यसभा में 10 प्रतिशत और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या सात प्रतिशत है।
सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 29 प्रतिशत महिला सांसदों की संख्या 40 वर्ष के कम है। यह प्रतिशत पिछली लोकसभा से काफी बेहतर है, जिसमें 17 प्रतिशत महिला सांसद 40 वर्ष से कम उम्र की थीं। सभी 59 महिला सांसदों की औसत उम्र 47 वर्ष है, जो पुरुष सांसदों की औसत आयु 54 वर्ष से काफी कम है। किसी भी महिला सांसद की उम्र 70 वर्ष से अधिक नहीं है, जबकि सात पुरुष सांसद 70 साल से अधिक उम्र के है।
पीआरएस के अनुसार 40 से 60 वर्ष के आयु समूह के बीच की महिला सांसदों का प्रतिशत इस बार काफी कम हुआ है। वर्ष 2004 में इस समूह की महिला सांसदों का प्रतिशत 73 था जो इस बार घटकर केवल 57 प्रतिशत रह गया। परंतु जहां 14 वीं लोकसभा में 60 वर्ष से अधिक की महिला सांसदों का प्रतिशत 9.8 था वहीं इस बार यह बढ़कर 13.8 प्रतिशत हो गया है। (साभार: जागरण)
आकांक्षा यादव
http://www.shabdshikhar.blogspot.com/
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15 comments:
बधाई हो .
एक और बात ...एक सर्वेक्षण के अनुसार आम लोग पुरुष राजनीतिज्ञों से ज्यादा महिला राजनीतिज्ञों को भरोसेमंद समझते हैं..मैं भी उनमें से एक हूँ.....अच्छा है कहते हैं न माँ शिक्षित हो तो परिवार संस्कारवान बनता है...शायद संसद कुछ सुधर जाए...
इतनी अच्छी जानकारी का आभार ।
ओके!
Zara is LINK pae jaayie to !
http://www.deshkaal.com/Details.aspx?nid=66200981036127
"भारतीय महिला सांसद अपने पुरुष सहकर्मियों की तुलना में अधिक शिक्षित है और उनके चुनाव में विजयी होने की संभावना भी पुरुषों से अधिक है। "
"29 प्रतिशत महिला सांसदों की संख्या 40 वर्ष के कम है।"....
इन तथ्यों का थोड़ा-बहुत समाजशास्त्रीय विश्लेषण होना चाहिए।
एक बात जो समझ में आती है कि अब राजनीति युवाओं के लिए अछूत नहीं रही। और उनका रुझान इस ओर बढ़ रहा है, जो कि अच्छा है। इसीलिए महिलाएं, युवतियां ज्यादा संख्या में भागीदारी कर रही हैं।
दूसरे, जो कि हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है, महिलाओं को जो पढ़ने, बढ़ने, कुछ करने के मौके मिलने लगे हैं, जो कि अब तक पुरुषों का ही विशेषाधिकार था, तो वे इसका पूरा फायदा उठा रही हैं और अपनी काबिलियत दिखाने की पूरी कोशिश कर रही हैं।
तीसरे, सदियों से पिछड़ी रही समाज की इस आधी कौम को अब भी हर जगह कुछ साबित करने, कहीं सफल होने के लिए उसी स्तर के पुरुषों के मुकाबले ज्यादा सक्षम, काबिल और मजबूत होना पड़ता है, प्रतियोगिता में उन्हें ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करना पड़ता है, अपने को साबित करने के लिए।
main pahli bar aapke blog per aaya. title aur punch line kafi aakarshak lage. dhool jab udne lade......andhi ban jaye to aankh ki kirkiree to banegi hi. lekin kab tak. andhiyan chalti hain, tabahi machati hain, kuch purane khokhale tano ko jameerond kar jati hain, lekin kabhi na kabhi to ye andhi rukegi hi, aur tab fir se naveen aadharon ka, naveen dhachon ka, naveen sambandhon ka nirman hoga. kyon ki prakiti nirman me dono tatva barabar aawashyak hain. filhaal chokherbali ke liye badhai.
अनुराधा की बात को आगे बढाते हुए मुझे लगता है की इस ख़बर का नही पर ऐसी तमाम खबरों का, और ऐसे शीर्षकों का भी सामाजिक मूल्यांकन ज़रूरी है। पिचले दो-तीन दशको से लगातार हाईस्चूल और इंटर की बोर्ड परीक्षाओं के परिणामो को लेकर भी इसी तरह के समाचार आते रहे है। और हम खुश होते रहे की लड़किया आगे बढ़ी है और पुरुषो से आगे बढ़ी है। जब कि सच ये है कि टोपर लड़कियों की ७०% से ज्यादा जमात घर बैठी चुल्हा झौक रही है और पुरूष चाहे तीसरी क्षेणी के भी हो अपनी रोजी रोटी कमा रहे है। यही हाल इन नयी यूवा महिला सांसदों का भी है, १०%-१५% की भागीदारी कोई खुशी मनाने की बात नही है। डूब मरने की बात है। और इनमे से भी कोन है जो पारिवारिक पृष्ठभूमी के बिना वहा पहुंचा है? इन सब मे से कोन है जिसे एक आम पृष्ठभूमी की महिला अपना रोल मॉडल चुन सकती है?
And on top of that we have to prove that women can only sustain in any field if they perform better than men.
On one hand women lack support system and on the other we ask for better performance than the privileged men.
We have to see where are the roots of these concepts?
chaliye ham bhi khush ho jate hain.
uske bap-dadaon ki kahani bhi likhen, tab bat poori hoti hai. varna indiraji bahut, bahut pahle aapke bharat ki pm ho chuki. in nakli khushi ko der tak n ghoyen.
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