लड़की अपनी तरह से जीना चाहती थी .और लोगों ने उसका नाम रख दिया- बदचलन लड़की !
Tuesday, June 23, 2009
बद चलन लड़की
अभी जून के हंस मे पुन्नी सिंह की एक लघुकथा पढ रही थी।पढने के बाद सोचा कि क्यों न इसे चोखेरबाली पर पोस्ट किया जाए।लेकिन टाइप करने को लेकर आलस हो आया।किसी और का लिखा टाइप करना बहुत मुश्किल लगता है। खैर , इसे आलस समझिए या चतुराई मुझे इसका दूसरा तरीका तुरंत मिल गया।शुरुआत की पहली लाइन और आखिरी लाइन टाइप कर देने भर से ही कहानी पूरी हो रही थी मुझे ऐसा प्रतीत हुआ।सो बीच के 60-70 शंब्द हटा देने पर वह कहानी है -
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32 comments:
आपके इस आलस ने एक बहुत ही बढ़िया काम किया है। हर वो लड़की जो ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीती हैं इसमें अपनी कहानी लिख सकती हैं। और, उनमें से एक मैं भी...
.....और फिर लड़की ने कहानी अपनी तरह से पोस्ट कर दी......
लड़की अपनी तरह से जीना चाहती थी .
और लोगों ने उसका नाम रख दिया- बदचलन लड़की
ठीक है अपने ढंग से जीने का अधिकार सभी को है लेकिन समाज की मान्यताओ और परम्पराओ का उन्मूलन करके नहीं
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बिगड़ैल लड़का
लड़के को एक साल की उम्र में चड्ढी पहना दी गयी।
वह कभी पुजारी को देख रहा था कभी शिवलिंग को।
-पुन्नी सिंह (‘हंस’ से साभार)
और इस दो लाइन को पढ़कर किसी ने लड़की को समझाया- कम बोला करो, दो लाइन में अपनी बात किया करो। रामकथा लेकर क्यों बैठ जाती हो। ये अलग बात है कि पुन्नी सिंह ने कम शब्दों में ही बात कहने के लिए लघुकथा जैसी विधा को चुना।..
कभी वाजदा तबस्सुम की कहानी "उतरन "पढिये...शायद हंस के किसी पुराने अंक में मिल जाए या किश्वर नाहिद की "पहला सजदा "..यकीन मानिए .शब्दों की ताकत ओर इन लेखिकाओं के हौसले की आप् दाद देगी ...
itna to jaan gaya ki shabdon kee taakat kise kehte hain......magar main ye nahin maantaa ki apnee sharton par jeene ki prinati ....yahee ho sakti hai...
इस पूरी कहानी को पढना चाहूँगा.. ऐसा ही एक प्रयास मैंने भी अपनी शोर्ट फिल्म छम्मक छल्लो में किया है.. अभी उसकी एडिटिंग बाकी है
बहुत गहरी बात कह दी आपने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मान्यताओ और परम्पराओ का उन्मूलन करके ही स्त्री किसी मनुष्य की तरह जी सकती है `पंडित जी महाराज`
अपने शर्तों पर जीना इस दुनिया में किसी के लिये भी आसान नही होता । लडकियों के लिये तो दुगनी मुश्किल खडी कर दी जाती है ।
ladaki ko apani sharton par jine ki aajaadi de kar yah purush pradhaan samaaj apani warchashwata kam haone ka khatara kyon uthaaye?
कुछ मिलती जुलती से मेरी लघुकथा फरवरी के 'हँस' में छप चुकी है ..देखिएगा
जब लड़की अपनी तरह से जीना चाहती थी तो लोगों की परवाह क्यों।
लघु कथा मुक्कमल है !
मेरी नजरों में दो पंक्तियों में लिखा गया
बेहतरीन उपन्यास !
बीच की पंक्तियाँ पाठक के जहन में
खुद-ब-खुद उभरती हैं !
आज की आवाज
abhi datiya me ek shadi me mulakat
hui to unhone is kahani kii charcha ki thii...shayad pahali baar unhone laghukatha likhii hai...is umra me naya shuru karne ka zazbaa salam karne yogy hai...Agra jaakar bhi unaki urza banii rahe yahi duaa hai.
kahani naii baat to nahii kartii par sahii baat ko duhrana bhi kam mahtvapoorn hai kya?
बहुत जोरदार बात कही है।
घुघूती बासूती
किसी बात को संक्षेप में कहना सबसे कठिन काम होता है!पहले पुन्नी सिंह फिर आप बधाई के पात्र हैं !
इसके आगे, डा. अनुराग आर्य से सहमत !
लड़की हो या लड़का, औरत हो या मर्द... सबके जीने के तरीक़े, सामाजिक व्यवस्था ईश्वर ने अपनी किताबों के ज़रिये हमें बतला दियें हैं और.... "अपनी तरह से जीना" की व्याख्या क्या होती है? यह हम सब जानते है...
यह ईश्वर अब बहुत बूढा और झक्की हो गया है…बुलाईये इसे मैं बहस करना चाहता हूं।
apne tarah se jina , desh ki har ladki ko seekhna chahiye......
अशोक जी, ईश्वर का इंतेजार करते-करते कई लोग बूढ़े हो गए पर वह नहीं आया। बहस का नाम सुनकर पिछले दरवाजे से खिसक तो नहीं लिया !
बा-अदब ... बा-मुलाहिजा होशियार
ईश्वर चल चूका है ....
ईश्वर आ रहा है .....
अभी ट्रैफिक में फंसा है !!!
नादान लोग नहीं समझते कि आस्थाओं और मान्यताओं के सन्दर्भ में तर्क की मनाही है !
प्रकाश जी, यह बामुलाहिज़ा......वगैरह मैं 1609 से सुनता आ रहा हूं। कृप्या ईश्वर को बताएं कि दिल्ली में अब मेट्रो चलने लगी है। अबने पुराने वाहन को रास्ते में छोड़ें और मेट्रो ग्रहण करें। 13-14 रु से ज्यादा कहीं के नहीं हैं। वैसे तो प्रभु सर्वशक्तिमान...वगैरह हैं फिर भी टिकट के पैसे न हों तो पेनाल्टी मैं स्टेशन पर रिसीव करते समय भर दूंगा। 4000 साल हो गए प्रभु, और ज्यादा वक्त अब मेरे पास नहीं है। कानून महाराज ने क्लोनिंग पर पाबंदी लगा दी है नही ंता आपकी खातिर अपना क्लोन छोड़ जाता।
खुदा करे कि कयामत हो और तू (ईश्वर) आए...
(पिछले कमेंट के वक्त लाइट चली गयी थी। यूपीएस टटपूंजिया निकला।)
माफ कीजिएगा, विमर्श बदचलन लड़की से ईश्वर तक जा निकला...
ये शनिवार इतवार में सारे टिप्पणिए/ब्लागर कहां चले जाते हैं !? सारे ही अपने दफ्तरॉ के नेट-कनेक्शनों का मिसयूज़ करते हैं का ? हे ईश्वर इन्हें माफ करना ।
विमर्श क भटकने केलिये क्षमा
पर इश्वर के ना होने पर अनन्य आस्था है
वैसे ही जैसे हर जाति लिंग और धर्म के लोगों के अपनी मनमर्ज़ी से जीने के अधिकार पर
चलिए भाई थोडा विमर्श भी कर लेते हैं !
यह एक पंक्ति की लघु कथा कैसी है आप लोग बताईये :-
"वो चाहता था हर स्त्री अपनी तरह .. अपनी मर्जी से जिए .. मेरी घर की स्त्रियों को छोड़कर !"
आज की आवाज
अच्छी है। पर मेरे ऊपर है या आपके ऊपर.....या पाण्डेयजी पर !? क्योंकि चैथे तो फिर राजेंद्र यादव ही बचते हैं। बाकी तो स्त्री-विमर्श के आस-पास सब ईश्वर ही ईश्वर काबिज़ हैं।
संजयजी, अपनी कहिए। बाकियों की बाकियों पर ही छोड़िए न। इतने उतावले क्यों हैं, सीधे निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए?
आपसे ज्यादा उतावला तो नही ही हूं।
अगर मुझ पर ठहरी है बात तो भाई घर और जीवन दोनो ख़ुला है…जहां से चाहिये देखिये…स्वागत है।
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