आज एक खबर पर नजर पड़ी कि ईरान में कुंआरी लड़कियों को फांसी देने से पहले उनके साथ रेप किया जाता है। चूंकि ईरान में कुंआरी लड़कियों को फांसी नहींदी जा सकती इसलिए फांसी की सजा पाई लड़कियों को पहले इस सजा से गुजरना पड़ता है।
इक्कीसवीं सदी में ऐसी खबरों से गुजरना भी किसी प्रताडऩा से कम नहीं हैं. दु:खद यह भी है कि इस खबर को लेकर कुछ मजहब परस्तों का ऐतराज भी आगया. ऐतराज तो ऐसी सजाओं के खिलाफ होना था, खबरों के खिलाफ क्यों? मुंह बंद कर देने से दर्द छुप तो सकता है कम तो नहीं हो जाता. अब तक यही तोहुआ है मुंह बंद करके दर्द को छुपाया गया. कहा गया सब ठीक है. कराहों को मुस्कुराहटों के पीछे धकेल दिया गया और कहा गया सब कुछ ठीक चल रहा है जी.
-प्रतिभा कटियार
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http://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=7/24/2009&editioncode=2&pageno=10
18 comments:
चोखेर बाली ऐसे बहसीपन के खिलाफ आवाज़ उठाये/ मुहीम चलाये तो कुछ न कुछ नतीजा जरूर आएगा. क्योंकि, आवाज़ निकलेगी तो दूर तलक जायेगी..
सच हमेशा नंगा होता है ,
हद से गुजर गई ऐसी खबर पढ़कर ..........सच इतना भी कड़वा हो सकता है ?
औरतों से सम्बद्ध हर सामंती क़ानून में उसकी देह ही केन्द्र में रही…इन वहशियों के लिये क़ानून तो सिर्फ़ उन्हें दबा कर रखने और ना मानने पर नष्ट कर देने का साधन रहा।
विचलित कर देने वाली ख़बर
i m shocked...
disturbing news...
कहां है धर्म के रहनुमा!!!
हद है..
क्या कहूँ...? कैसे कहूँ...?
मन बहुत दु:खी हो गया पढ़कर।
औरतों की देह ही उन्हें दबाने का सबसे बड़ा हथियार रही है पुरुषों के पास,ऐसे में जो पहले से ही आपकी कैद में है तो कितना आसान है, उसकी देह को नोचना।
कुआंरी को फांसी नहीं दी जा सकती इसलिए रेप, यह कानून है या दरिंगदगी।
ऐसे लोगों के लिए वहशीपन की कोई भी हद नहीं है
त्रासद !
इस्लामी कानूनों की थोड़ी भी जानकारी रखने वाले के लिये इसमें हैरत की कोई बात नहीं.
सभ्य संसार के लिये हौलनाक खबर है.
पता नहीं ऐसे मुद्दों पर हमारे धर्मगुरुओं का ध्यान क्यों नहीं जाता,शायद लोगों के खिलाफ फतवे जारी करने से किसी दिन फुर्सत मिले तो वो ऐसा सोच सकें... ऐसे घटनाओं का हल तब निकलेगा जब धर्म से ऊपर उठकर मानवता के नजरिए से देखने की शरुआत की जाए,पर वर्तमान परिपेक्ष्य में फ्लेक्सिबिलिटी की आस लगाना बेकार ही लगता है.....
हमारे यहाँ भारत में कुँआरी कन्या को देवी का दर्जा दिया जाता है। बचपन में कई बार कन्याभोजन के दौरान हम बच्चियों की पूजा की जाती थी....लेकिन नवरात्र गुजरते ही यह कन्याएं लोगों को देवी की जगह बोझ लगने लगती थीं....सरहदें अलग हैं लेकिन दर्द का रिश्ता नहीं.....शायद इरान में भी कुआरी कन्या को पहले-पहल देवी माना गया होगा...लेकिन बर्बर लोगों ने शादी रूपी बालात्कार को हथियार बना लिया......काश स्त्री के शरीर उसकी कमजोरी न होता........
श्रुति ने कहा- "......काश स्त्री का शरीर उसकी कमजोरी न होता........ "
क्यों न आगे की बातचीत इस बिंदु से शुरू करें, क्योंकि बलात्कार जैसे कृत्य शारीरिक से ज्यादा मानसिक शोषण/ अत्याचार के तरीके हैं। तो ऐसा कैसे हो कि यह सिर्फ शारीरिक अत्याचार ही रह जाए, जैसे कि फिल्मों में दिखाया जाने वाला 'थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट' आदि (जो वास्तविक जीवन में भी होता ही होगा, पर मुझे इसका कोई इल्म नहीं) । ताकि ऐसे तरीकों से औरत को औरत होने की सजा देने वालों के इरादे वहीं खत्म हो जाएं और औरतें ठेंगा दिखा कर कह सकें कि तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते/ सके।
वैसे, मेरी ऊपर की टिप्पणी से पहले ऐसी अमानुषिक हरकतों के लिए मेरा जबर्दस्त विरोध भी दर्ज कर लिया जाए।
इस्लाम दुशमनों सुनलो इस्लाम में बलात्कार की सजा संगसार अर्थात उस आदमी को गर्दन तक जमीन में गाडकर सर पर तब तक पत्थर मारे जाये जब तक वह मर ना जाये, अरे इसलाम में तो हम किसी की तरफ देखने की अनुमति नहीं, जानो कुरआन में किया लिखा है
‘‘हे नबी! ईमान रखने वालों (मुसलमानों) से कहो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों की रक्षा करें। यह उनके लिए ज़्यादा पाकीज़ा तरीका है, जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उससे बाख़बर रहता है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 24:30)
ऐसी हरकत किसी भी धर्म का अनुयायी कर सकता है, ऐसे लोगों का इस्लाम से लेना देना नहीं वह केवल नाम का मुसलमान हो सकता है,
इस्लाम को बदनाम करने वालो तुम किसी भी धर्म से हो किया बता सकते हो तुम्हारे धर्म में नारी की किया हैसियत है, इसलाम धर्म में जान लो इस पुस्तक द्वारा नारी की हैसियत
'इस्लाम में पर्दा और नारी की हैसियत'
http://www.4shared.com/file/90291628/8eb1ab43/hindi-islam-men-parda-aur-nari-ki-hesiyat-hindi.html
अल्लाह के चैलेंज
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कल्कि व अंतिम अवतार मुहम्मद सल्ल.
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बेशक प्रतिभा जी ,
यह अमानुषिक है ,मौत भी सम्मानपूर्ण नही ?
इसका कारण मुझे यही दीख पड़ता है कि राज्य से ज़्यादा ताकत धर्म के हाथ मे है।राज्य और धर्म दोनो ही यूँ तो दमन की नीति चलाते हैं।लेकिन निश्चित रूप से धर्म और राज्य के बीच राज्य को ही महत्व देना उचित है।धर्म किसी स्त्री का भला नही कर सकता।शायद राज्य यह कर सकता है।
सो सवाल एक दो व्यक्ति के स्तर पर हल होने वाला नही।
दूसरा,
आर अनुराधा ने जो कहा- सज़ा देने वाले के इरादे ही खत्म हो जाएँ ...
इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि कौमार्यता या वर्जिनिटी पर से प्रीमियम खत्म हो !स्त्री के खुद के लिए और समाज के लिए भी यह शब्द ही शब्द कोश से हट जाए।यह जितना बायलोजिकल है उससे कहीं ज़्यादा यह समाज सन्दर्भित है।
स्त्री की लड़ाई एक लेवल पर नही है।यह भाषा, धर्म, राज्य, परिवार , समाज जैसी ताकतवर संस्थाओं से पूरी तरह टकराए बिना नही बढ सकती।
लम्बी लड़ाई है....
हम न थके हैं , न हारे हैं..
इन सबके लिए कहीं न कहीं मुसलिम इंटैलेक्चुअल तबका भी जिम्मेदार है, जो तमाम मामलों मे चुप्पी साध जाता है। इनके पास कुछ रटे-रटाए जुमले हैं जो वे बुद्धिजीवी कहलाने के नाम पर उछालते रहते हैं।
इस हौलनाक खबर ने जैसे सोचने की शक्ति ही नही रहने दी.किस शब्द मे इसकी भर्त्सना की जाये, समझ मे नही आ रहा.
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