लड़की जो बड़ी हो गई है
घबरा कर खींच दिया उसने
खिड़की का परदा,
गली से गुजरते एक लड़के ने
बजाई थी सीटी
उसे देख कर।
बचा कर माँ की नजर
उसने चुपके से देखा आईना
और संवार लिए अपने बाल।
* * *
लड़की जो बड़ी हो गई है,
डाल दी है उसने
दूध की सारी मलाई
अपने भाई के ग्लास में
और रख दी है
अपने हिस्से की सारी गुझिया
उसके लिए।
कुछ दिन और
माँ निश्चिंत रहेगी
भाई के नाश्ते की फ़िक्र से।
* * *
लड़की जो बड़ी हो गई है,
सिलवा लिया है उसने
माँ की साड़ी का लहंगा
इस बार के त्यौहार में,
ले आई है
अपने कपड़ों के पैसों से
पिता के जूते और
भाई की एक जींस
और पोंछ कर हथेलियों से
माँ की आंखों में
उतर आए आंसुओं को
मुस्कुरा रही है
उसके गले में बाहें डाल कर।
* * *
लड़की जो बड़ी हो गई है
देखने लगी है सपने
बादलों के पार बने एक महल का
महल के दरवाजे पर खड़े
एक सजीले राजकुमार का,
और अनजाने में ही
अपने होठों पर उतर आई
मुस्कराहट से चौंक कर
देखने लगती है चारों ओर,
और देख कर
माँ के चहरे पर
चिंता की लकीरों को
सहम जाती है अन्दर से।
* * *
लड़की जो बड़ी हो गई है
पढ़ ली है उसने
पिता के चहरे पर छाई
विवशता की लकीरें,
देखी है
माँ की आंखों की कातरता,
निकाल कर अपनी किताब से
एक सूखे गुलाब को,
फेंक नहीं पायी है,
रख दिया है उसे
किताबों की आलमारी में
पीछे कहीं छुपा कर।
पहन कर साड़ी
उठा ली है हाथों में
चाय की ट्रे
और मन-मन भर के पाँव रखती
जा रही है
बाहर वाले कमरे की तरफ़।
लड़की जो बड़ी हो गई है!
23 comments:
bahut hi sahaj our gahara hai bhaaw aapaki rachacnao ka .........bikul satya hai kaha aapane ......ek madhay wargiya ladaki ka iatan hi sach hota hai.......umda
bahut hi sahaj our gahara hai bhaaw aapaki rachacnao ka .........bikul satya hai kaha aapane ......ek madhay wargiya ladaki ka iatan hi sach hota hai.......umda
रचना के भाव का निशाना ठीक जगह लगता दिखाई दे रहा है। अच्छी प्रस्तुति अर्चना जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
एक कविता जो कभी बचपन में पढ़ी थी याद आ गयी....
"ओर फिर
बिन बताये ,बिन पूछे ही ब्याह जाती थी
मेरे मोहल्ले की लड़की....."
बहुत हि सुन्दर रचना , अच्छे भाव व्यक्त किये है आपने।।
inke bog par inki anya kavitayeN bhi achchhi haiN.
मैं तो कहूँगा की उसकी जिंदगी दिखा दी 'लड़की जो बड़ी हो गई'
मार्मिक!
sundar, lekin marmik sach!
mansparshi!
likhte rahiye...padhte rahiye.
schhai se rachi ak sachhi ladki ki sachhi kavita .
abhar
लड़की जो बड़ी हो गयी है
पहले हर बात पर लगाती थी ठहाके
अब बस धीरे से ओंठ हिला देती है
समाज की स्त्रियां समझाती है,
अपने पैसे बचाकर भाई के लिए
जींस लाने पर समझाती है
क्यों तेरे बदन को नहीं चाहिए कपड़े
लड़की जो बड़ी हो गयी है
अपने हिस्से की आइसक्रीम खिला आती है
दरवाजे पर बैठी बूढ़ी रधकी काकी को
समझाती है उसकी मां क्या तुझे मुंह नहीं खाने के
लड़की हौले से मुस्कराती है
बस इतना ही कहती है,
जाने दो न मां
मैं लड़की हूं न।...
Pak Karamu reading your blog
ओह!!! कह नहीं सकती इस कविता के हर वाक्य, हर तथ्य-कथ्य ने कहां-कहां छुआ, कहां कितने घाव उघाड़ दिए और फिर उन पर फाहे भी रख दिए! आखिर किसी ने वह सब कहा तो!
उस उम्र की हर लड़की की शायद यही कहानी होती रही है। बात को कह देना उसे आगे बढ़ाने की पहली कोशिश है। उम्मीद है हमारे आगे की पीढ़ियां इसमें अपने आयाम जोड़ रही हैं।
लड़की बड़ी हो जाती है
उम्र से पहले
सच से जल्दी
सोचती है बड़ा बड़ा
"डाल दी है उसने
दूध की सारी मलाई
अपने भाई के ग्लास में"
20 वर्ष पहले की दीदी की याद आ गई
प्रणाम स्वीकार करें
लडकी जो बडी हो गई है क्या क्या त्याग रही है अपनों के लिये, अपने सपने तक बेच रही है वह एक अच्छी जिम्मेदार बेटी कहलाने के लिये ।
बहुत अच्छी कविता, और सच में बेटियाँ बड़ी समझदार होती है, बेटे तो निहायत नालायक होते है !
बहुत मार्मिक रचना. साधुवाद.
sach to yah hai ki ladki kishor hone ke pahle javaan...aur javaan hone ke pahle hi budhi ho jaa rahi hai....aur jeene se pahle mar jaa rahi hai...!!
ladki jo bari ho gayee,behad sunder kavita hai.all the best .
amazing poem ... main to nishabd hoon ji , kya kahun .. itne gahre bhaav , itne sahaz shbdo me ....
mera salaam kabul karen..
aabhar
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
बहुत अधिक भावुक कविता ...गहरे भावों से सजी ....
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