
हो सकता है कि चित्र में दिया गया समाचार स्पष्ट रूप से पढ़ने में न आ रहा हो किन्तु उसका शीर्षक तो स्पष्ट है। हो सकता है कि बहुतों के लिए यह आश्चर्य का भी विषय हो किन्तु यह सत्य है। होना भी चाहिए क्योंकि....कारण सभी को स्पष्ट हैं।
यह पोस्ट बस यह बताने के लिए आज के इस दौर में जहाँ एक पुत्र के लिए कई कई बेटियों की बलि गर्भ में या फिर जिन्दा में दे दी जाती हो वहाँ इस तरह की बिरादरी भी है जो बेटी के जन्म पर उत्सव मनाते हैं और पुत्र के होने पर समूची बस्ती में चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
खास बात यह भी है कि लड़की का हाथ माँगने के लिए लड़के वाले अच्छी खासी रकम ही नहीं देते वरन बिरादरी के खानपान का भी खर्चा उठाते हैं।
महिलायें घर का काम करने के साथ साथ परिवार के भरण पोषण के लिए धन का इंतजाम करना होता है। यह समुदाय भीख माँग कर अपना गुजारा करता है। इस समुदाय के पुरूष बच्चों को, मवेशियों को सँभलने का काम करते हैं।
फैजाबाद जनपद में इस समुदाय के लोगों की संख्या चार हजार के आसपास है। अनुसूचित जाति समुदाय के ये लोग बेटी को लक्ष्मी मान कर उसके जन्म पर प्रसन्न होते हैं पर सरकारी योजनाओं को इन पर प्रसन्न होने की फुर्सत नहीं। ये लोग अभी भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
बहरहाल इस समुदाय के लोग पुत्री के जन्म पर खुशियाँ मना कर आज के तथाकथित आधुनिक समाज के मुँह पर एक तमाचा ही जड़ते हैं। क्या हमारे समाज के पुत्र मोह में फँसे लोग इस ओर ध्यान देंगे?
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विशेष --- यह समाचार अमर उजाला दिनांक 25 अगस्त 2009 के अंक में प्रकाशित किया गया है।
7 comments:
काश!! इस ओर ध्यान जाये!
यह खबर हम तक पहुँचाने के लिए आभार !
जिस दिन इसे खबर नहीं कहा जायेगा.. तब ज्यादा ख़ुशी होगी..
WELL SAID KUSH
क्या ये ज़रूरी है की हम कभी इस टांग पर खड़े रहे और और कभी दूसरी पर। बीच मे बेलेंस की कोई गुंजाईश नही है?
बेटा और बेटी दोनों बच्चे खुशी का सबब बन सकते है, एक को गरिया कर दूसरे को किसी भी वजह से उठाना ग़लत है। माता-पिता की जिम्मेदारी उन्हें स्वस्थ और अच्छा नागरिक बनाने की होनी चाहिए।
ये कोई हार-जीत का मसला नहीं है कि कौन किस पर भारी है। बात सिर्फ यह है कि सोच संतुलित और पक्षपात से रहित हो। क्या संतान जन्म अपने आप में खुशी की बात नहीं है, लड़का हो या लड़की?
हां, हमारे देश में आबादी को बोझ बताया जाता है, इस नजरिए पर भी सोचने की जरूरत है। आबादी की बेलगाम बढ़त रोकने के लिए कोशिश की जाए। पर अब जो आबाद आ गई है उसे कूड़ा समझने की बजाए मानव संसाधन भी तो बनाया जा सकता है। सिर्फ सोच बदलने और इच्छा शक्ति की जरूरत है।
aisha bhi hota hai........india ki hi khabar hai na boss.......
chaliye khusi hoti hai...ki aisha bhi hota hai....
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