सुनने में अजीब लगता ही, पर भारत में अभी भी लड़कियां खरीदी-बेची जा रही हैं. बिहार के मोतिहारी जिले के पूर्वी चंपारण के बंजरिया प्रखंड में गोखुला गांव में तो यह आम बात है.महादलितों की इस बस्ती में शादी के नाम पर खरीदी या बेची जाने वाली लड़कियों की कीमत आमतौर पर दस से पंद्रह हजार होती है। यहां 10-12 वर्ष से कम उम्र वाली विवाहिताओं की लंबी सूची है। उन्हें न तो शादी का उद्देश्य पता है और न ही सिंदूर का मतलब। अब तक इस कार्य में उन्हें कोई सामाजिक अड़चन नहीं आयी। सदियों से चली आ रही यह परंपरा कायम है।
इससे भी दुखद पहलू यह है कि कई विवाहिता ऐसी भी है जो ससुराल में समान उम्र के लड़कों में यह फर्क नहीं कर पाती कि कौन उनका पति है। वे हर रोज मांग में पति के नाम का सिंदूर भरती है। सुहागन की तरह सजती और संवरती है, लेकिन उसने पति को झलक भर भी नहीं देखा है। ससुराल वाले यदाकदा उनके घर आते हैं और कुशलक्षेम पूछकर चले जाते हैं. कारण पूछने पर गांव के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं, 'मेरी दादी भी खरीदकर लाई गई थी, मां भी और अब बहुएं भी खरीदकर ही आती हैं। हम इसे नहीं रोक सकते, क्योंकि यह हमारी परंपरा है।' फ़िलहाल इस परंपरा को गाँव से ही चुनौती मिलने लगी है और कुछ महिलाएं मानती हैं कि परंपरा के नाम पर ऐसा नहीं होना चाहिए। इनका कहना है कि अपनी बेटियों को बालिग होने पर ही ससुराल विदा करेंगे।....पर यह बड़ा शर्मसार करने वाला पहलू है कि स्वतंत्र भारत में ऐसी घटनाएँ हो रही हैं और हमारे पहरुए आँखों पर पट्टी बांध कर पड़े हुए हैं.
आकांक्षा यादव
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8 comments:
bahut dukhad hai yah toh !
ये दुखद है, पर जैसे दहेज़ के लिए लड़के को बेचना गलत है वैसे ही लडकी खरीदकर शादी करना गलत है. दिक्कत ये है कि दुनिया एक बड़ा बाज़ार बन गयी है और इसे खरीदार चला रहे है.
वाकई यह तो बहुत दुखद है इस परम्परा को खत्म करने के लिए सभ्य समाज और सरकार को भी कोई सार्थक कदम उठाने चाहिए ।
यह तो बड़ी शर्मनाक बात है. आखिरकार नारी-सशक्तिकरण का नारा बुलंद करने वाली संस्थाएं कहाँ हैं ??
यह तो बड़ी शर्मनाक बात है. आखिरकार नारी-सशक्तिकरण का नारा बुलंद करने वाली संस्थाएं कहाँ हैं ??
Sabhyata ke nam par kalank.
अच्छी पोस्ट लिखी है।
यह निश्चित ही दुःखद और शोचनीय बात है. परन्तु इस विषय में सरकार के करने से ही सबकुछ नहीं होगा. ज़रूरत है शिक्षा के प्रचारे-प्रसार की, लोगों को जागरुक करने की, जिससे लोग औरतों को एक वस्तु और बच्चा पैदा करने वाली मशीन न समझकर इन्सान समझें.
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