आज अपने एक परिचित से मिलने जाना हुआ, वहाँ दैनिक जागरण कानपुर का 03 मार्च का अंक देखा। एक समाचार देखकर उसे पढ़े बिना नहीं रहा गया। एक महिला की कर्मठता की कहानी है, स्वयं को बहुत अच्छा सा लगा। आपके सामने बिना किसी भूमिका के उस महिला किरन की कहानी रख रहे हैं।
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करीब दो सौ लोगों की आबादी वाले गाँव सुभौली में वर्तमान में प्रधान एक महिला है - किरन। इस महिला की उम्र इस समय 40 वर्ष है और शिक्षा में स्नातक है। परिवार में 80 वर्षीय माँ और 35 वर्ष की भाई है।
किरन की उम्र जब 18 वर्ष की थी तो उसके पिता उसके विवाह के लिए रिश्ता लेकर गये थे। वहाँ पर दहेज की रकम को लेकर कुछ अपमानजनक बातें किरन के पिता को सुननी पड़ीं। इस घटना के बाद किरन ने शादी न करने की कसम खा ली।
किरन के पिता फौज में सैनिक थे और उनके द्वारा दी गई सीख को किरन ने सदा गाँठ बाँध कर रखी। समाज के प्रति भला करने और समाज सेवा के प्रति ईमानदारी बरतने का किरन के पिता का संदेश सदैव किरन के लिए प्रेरणा बना रहा।
सुभौली गाँव किरन की ननिहाल है और उन्होंने यहाँ अपना काम करने का व्रत लिया। किरन ने गाँव के लोगों को नशे और जुए की लत से बाहर निकाला। वर्तमान में सरसौल ब्लाक का सुभौली गाँव नशा-जुआ मुक्त गाँव के रूप में जाना जाता है। अब उनका प्रयास है कि गाँव को मुकदमेबाजी से दूर किया जाये।
किरन के प्रयासों से गाँव में कच्ची शराब बनना और बिकना बन्द हो गई। चोरी छिपे गाँजा, चरस बेचने वाले भी अब इस काम को छोड़ चुके हैं। वर्तमान में किरन मुकदमेंबाजी को कम करने की दुष्टि से गाँव में पंचायत लगाकर लोगों के अपासी मतभेद को दूर करतीं हैं।
उनका कहना है कि आगामी वर्षों में वे अपने गाँव तथा आसपास के गाँवों में नशा-जुआ-शराब मुक्ति का अभियान और जोरों से चलायेंगी।
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दैनिक जागरण, कानपुर दिनांक 03 मार्च 2010 के बुन्देलखण्ड संस्करण में प्रकाशित खबर ‘‘काश! ये ‘किरन’ गाँव-गाँव चमके’’ के आधार पर
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करीब दो सौ लोगों की आबादी वाले गाँव सुभौली में वर्तमान में प्रधान एक महिला है - किरन। इस महिला की उम्र इस समय 40 वर्ष है और शिक्षा में स्नातक है। परिवार में 80 वर्षीय माँ और 35 वर्ष की भाई है।
किरन की उम्र जब 18 वर्ष की थी तो उसके पिता उसके विवाह के लिए रिश्ता लेकर गये थे। वहाँ पर दहेज की रकम को लेकर कुछ अपमानजनक बातें किरन के पिता को सुननी पड़ीं। इस घटना के बाद किरन ने शादी न करने की कसम खा ली।
किरन के पिता फौज में सैनिक थे और उनके द्वारा दी गई सीख को किरन ने सदा गाँठ बाँध कर रखी। समाज के प्रति भला करने और समाज सेवा के प्रति ईमानदारी बरतने का किरन के पिता का संदेश सदैव किरन के लिए प्रेरणा बना रहा।
सुभौली गाँव किरन की ननिहाल है और उन्होंने यहाँ अपना काम करने का व्रत लिया। किरन ने गाँव के लोगों को नशे और जुए की लत से बाहर निकाला। वर्तमान में सरसौल ब्लाक का सुभौली गाँव नशा-जुआ मुक्त गाँव के रूप में जाना जाता है। अब उनका प्रयास है कि गाँव को मुकदमेबाजी से दूर किया जाये।
किरन के प्रयासों से गाँव में कच्ची शराब बनना और बिकना बन्द हो गई। चोरी छिपे गाँजा, चरस बेचने वाले भी अब इस काम को छोड़ चुके हैं। वर्तमान में किरन मुकदमेंबाजी को कम करने की दुष्टि से गाँव में पंचायत लगाकर लोगों के अपासी मतभेद को दूर करतीं हैं।
उनका कहना है कि आगामी वर्षों में वे अपने गाँव तथा आसपास के गाँवों में नशा-जुआ-शराब मुक्ति का अभियान और जोरों से चलायेंगी।
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दैनिक जागरण, कानपुर दिनांक 03 मार्च 2010 के बुन्देलखण्ड संस्करण में प्रकाशित खबर ‘‘काश! ये ‘किरन’ गाँव-गाँव चमके’’ के आधार पर
1 comment:
किरण का कार्य बेहद प्रशंसनीय है. गर्व हुआ किरण पर . ईश्वर उन्हें साहस दें .
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