आज हालोवीन है, विच हंटिंग के विरोध का भी एक सिम्बोलिक दिन. अरुंधती राय ने कश्मीर के सवाल को पब्लिक डोमेन में लाने की जो कोशिश की है, पता नहीं कश्मीर को लेकर संजीदा संवेदनशीलता कितनो में जागी है, पर अरुंधती कि विच हंटिंग जबरदस्त तरीके से शुरू हो गयी है. अरुंधती को गोली मारने से लेकर, उनके बलात्कार तक की कामना लोग अपनी टिप्पणियों में बेहद बेशर्मी से छोड़ रहे है. सार्वजानिक जीवन में, विरोध की असहमति की कितनी जगह है?शोमा चौधरी का एक ये लेख है, लंबा है, पर उम्मीद है कि आप में से कुछ लोग इसे पढ़ लेंगे. दूसरा अरुंधती का इंटरव्यू है, उन सब सवालों को लेकर, जिनसे कई लोगो के मन बेचैन है. अरुंधती के बारे में सही राय बनाने से पहले इससे भी कुछ मदद मिलेगी.
मेरी अरुंधती से कई मामलों में असहमति के बावजूद, उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्ष में ही मेरी राय है.
कश्मीर का मुद्दा सिर्फ इतने तक सीमित नहीं है कि लोगो को आज़ादी का हक होना चाहिए, अलहदा होने के लिए, या कोई बड़ी मुसलमान आबादी पड़ोसी देश में मिल जाय. फिर खुश रहेगी या फिर सैनिक शासन में खुश रहेगी. उसके बहु आयाम है, और सिर्फ हिन्दुस्तान पाकिस्तान ही नहीं है, ग्लोबल राजनीती के बड़े तार भी होंगे, और आतंकवाद के भी है. सामरिक दृष्टी से भी भारत के लिए कश्मीर का महत्तव है. और इन सबके मद्दे नज़र संजीदा तरीके से लोगो के लिए कोई पालिसी होनी चाहिए, मुख्यधारा में उनके मिलने के प्रयास होने चाहिए. ये जो देश है इसका विकास इस तरह का है कि सभी सीमावर्ती राज्य, दूर दराज़ के देहात, और सबसे गरीब लोग इसकी परिधि के बाहर है, और जनतंत्र के पास उन्हें देने के लिए सैनिक शासन से बेहतर कुछ होना चाहिए.
कश्मीर के अलगाव का मुद्ददा जटिल है, पर उसका सही हल राजनितिक ही होना चाहिए, या उसकी जमीन बनने के संजीदा प्रयास होने चाहिए. अरुंधती से असहमति के बाद भी, उनकी आवाज़ , विरोध और असहमति की आवाज, एक स्वस्थ जनतंत्र के लिए ज़रूरी है. अरुंधती की जुमलेबाजी भी अगर लोगों को 60 साल की लम्बी चुप्पी के बाद कश्मीर के राजनैतिक समाधान की तरफ सक्रिय करती है तो ये पोजिटिव बात होगी. इतना तो निश्चित है कि पुराने जोड़तोड़ के फैसले, राजनैतिक अवसरवाद, और सैनिक शासन का फोर्मुला बर्बादी और आतंकवाद ही लाया है. संजीदे पन से जब हिन्दुस्तान के नागरिक सोचेंगे, तभी जो सरकार है, नीती नियंता है, किसी संजीदा दिशा में जायेंगे. रास्ट्रवाद की छतरी के नीचे अरुंधती की बैशिंग से समाधान नहीं निकलने वाले है.
Sunday, October 31, 2010
Wednesday, October 20, 2010
खेल में भी अब हिंदुस्तानी महिलाओं की बारी
इस बार के राष्ट्रमंडल खेलों में क्या खास रहा- भारत में होने और भ्रष्टाचार तथा अव्यवस्था-असुविधा का बोलबाला होने के अलावा?
इस बार भारतीय महिला खिलाड़ियों ने यहां झंडे गाड़ दिए। सानिया-सायना से परे कुश्ती, दौड़, डिस्कस थ्रो, तीरंदाजी...हर खेल में भारतीय महिलाओं का प्रदर्शन सराहनीय रहा। और सबसे दिलचस्प बात यह रही कि ये खिलाड़ी कोई महानगरों के नहीं थे, बल्कि देश भर के छोटे शहरों-कस्बों से आए थे। उनमें कई शादीशुदा, बाल-बच्चेदार भी थीं, जिनके पतियों-परिवारों ने भी प्रोत्साहन दिया।
क्या इसे समाज की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव की निशानी न माना जाए!!
CWG 2010: Indian woman rule the show
इस बार भारतीय महिला खिलाड़ियों ने यहां झंडे गाड़ दिए। सानिया-सायना से परे कुश्ती, दौड़, डिस्कस थ्रो, तीरंदाजी...हर खेल में भारतीय महिलाओं का प्रदर्शन सराहनीय रहा। और सबसे दिलचस्प बात यह रही कि ये खिलाड़ी कोई महानगरों के नहीं थे, बल्कि देश भर के छोटे शहरों-कस्बों से आए थे। उनमें कई शादीशुदा, बाल-बच्चेदार भी थीं, जिनके पतियों-परिवारों ने भी प्रोत्साहन दिया।
क्या इसे समाज की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव की निशानी न माना जाए!!
CWG 2010: Indian woman rule the show
छात्राओं को निःशुल्क कराटे प्रशिक्षण
तेनशनकान स्कूल कराटे डू एसोसिएशन ने "लड़कियों जागो" अभियान के अंतर्गत निःशुल्क कराटे प्रशिक्षण का आयोजन किया है. शिवाजी नगर के शिवाजी भवन में आयोजित प्रशिक्षण शिविर में सैकड़ों छात्राओं और महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. संस्था के सचिव विजय कुमार के मुताबिक राह चलती छात्राओं और महिलाओं के आत्म रक्षार्थ इस शिविर का आयोजन किया गया है और इसमें मोबाईल फ़ोन पर आने वाली ब्लैंक काल डायवर्ट और रिकार्डिंग सिस्टम की भी जानकारी दी गयी है. संस्था इस शिविर को हर रविवार ३० दिसंबर तक लगाएगी.
ये कानपुर के दैनिक जागरण की एक खबर मात्र है लेकिन ये सिर्फ पीछे के प्रष्ट पर दी गयी छोटी सी खबर नहीं बल्कि एक रोशनी की किरण है, जो मशाल बन कर उभरनी चाहिए. आज सिर्फ नारी जाति के नाम से जन्म लेने वाली हर बच्ची , किशोरी, युवा और महिलाएं सभी कुछ लोगों की विकृत मानसिकता का शिकार बन रही हैं. छेड़छाड़ से लेकर आगे अस्मिता के सवाल तक कुछ भी शेष नहीं रह गया है. इसमें कोई उम्र का बंधन नहीं और न इसके लिए शिक्षा और व्यवसाय कोई मायने रखता है. चाहे शिक्षक , डॉक्टर , मैनेजर, रिक्शाचालक, वैन चालाक कोई भी हो सकता है. अब लड़कियों को अपने स्तर पर अपनी सुरक्षा का इंतजाम खुद ही करना पड़ेगा. ये सिर्फ एक संस्था द्वारा नहीं बल्कि ऐसे अभियान में मार्शल आर्ट को शामिल करके स्कूलों में अनिवार्य किया जाना चाहिए. इस नारी जाती को अपनी सुरक्षा खुद ही करनी होगी . ये शिक्षा उसको सिर्फ शोहदों से ही बचने के लिए नहीं बल्कि उनकी इज्जत और दहेज़ हत्या जैसे मामलों में अपनी सुरक्षा करने सक्षम बना सकती हैं . कम से कम वह लड़कर अपनी रक्षा तो कर ही सकती है.
इसके लिए किसी संस्था और सरकार का मुँह क्यों देखे? अगर हम सक्षम हैं तो उनको उसी जगह अपनी सक्षमता से अवगत करा कर उत्तर देना चाहिए. इसके लिए पहल स्कूल स्तर पर हो तो अधिक अच्छा है क्योंकि हर बाला स्कूल तो जरूर ही जाती है. जो नहीं जाती हैं , उनके लिए कुछ और सोचा जा सकता है. ऐसे ही स्वयंसेवी संस्थाएं उनको थोड़े समय का प्रशिक्षण देने का शिविर लगा सकती हैं .
तेनशनकान स्कूल कराटे डू एसोसिएशन ने "लड़कियों जागो" अभियान के अंतर्गत निःशुल्क कराटे प्रशिक्षण का आयोजन किया है. शिवाजी नगर के शिवाजी भवन में आयोजित प्रशिक्षण शिविर में सैकड़ों छात्राओं और महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. संस्था के सचिव विजय कुमार के मुताबिक राह चलती छात्राओं और महिलाओं के आत्म रक्षार्थ इस शिविर का आयोजन किया गया है और इसमें मोबाईल फ़ोन पर आने वाली ब्लैंक काल डायवर्ट और रिकार्डिंग सिस्टम की भी जानकारी दी गयी है. संस्था इस शिविर को हर रविवार ३० दिसंबर तक लगाएगी.
ये कानपुर के दैनिक जागरण की एक खबर मात्र है लेकिन ये सिर्फ पीछे के प्रष्ट पर दी गयी छोटी सी खबर नहीं बल्कि एक रोशनी की किरण है, जो मशाल बन कर उभरनी चाहिए. आज सिर्फ नारी जाति के नाम से जन्म लेने वाली हर बच्ची , किशोरी, युवा और महिलाएं सभी कुछ लोगों की विकृत मानसिकता का शिकार बन रही हैं. छेड़छाड़ से लेकर आगे अस्मिता के सवाल तक कुछ भी शेष नहीं रह गया है. इसमें कोई उम्र का बंधन नहीं और न इसके लिए शिक्षा और व्यवसाय कोई मायने रखता है. चाहे शिक्षक , डॉक्टर , मैनेजर, रिक्शाचालक, वैन चालाक कोई भी हो सकता है. अब लड़कियों को अपने स्तर पर अपनी सुरक्षा का इंतजाम खुद ही करना पड़ेगा. ये सिर्फ एक संस्था द्वारा नहीं बल्कि ऐसे अभियान में मार्शल आर्ट को शामिल करके स्कूलों में अनिवार्य किया जाना चाहिए. इस नारी जाती को अपनी सुरक्षा खुद ही करनी होगी . ये शिक्षा उसको सिर्फ शोहदों से ही बचने के लिए नहीं बल्कि उनकी इज्जत और दहेज़ हत्या जैसे मामलों में अपनी सुरक्षा करने सक्षम बना सकती हैं . कम से कम वह लड़कर अपनी रक्षा तो कर ही सकती है.
इसके लिए किसी संस्था और सरकार का मुँह क्यों देखे? अगर हम सक्षम हैं तो उनको उसी जगह अपनी सक्षमता से अवगत करा कर उत्तर देना चाहिए. इसके लिए पहल स्कूल स्तर पर हो तो अधिक अच्छा है क्योंकि हर बाला स्कूल तो जरूर ही जाती है. जो नहीं जाती हैं , उनके लिए कुछ और सोचा जा सकता है. ऐसे ही स्वयंसेवी संस्थाएं उनको थोड़े समय का प्रशिक्षण देने का शिविर लगा सकती हैं .
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क्या चोखेर बाली ब्लॉग बंद कर दिया गया है. अगर नहीं तो हम इसके प्रति इतनी उपेक्षा क्यों बरत रहे हैं? इसमें मैं भी शामिल हूँ. लेकिन अब नहीं रहूंगी. अगर ये पोस्ट गयी तो फिर लिखती हूँ. क्योंकि पिछले दिन एक पोस्ट प्रकाशित दिखी लेकिन चोखेर बाली पर नहीं थी.
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अनुप्रिया के रेखांकन
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