इस बार के राष्ट्रमंडल खेलों में क्या खास रहा- भारत में होने और भ्रष्टाचार तथा अव्यवस्था-असुविधा का बोलबाला होने के अलावा?
इस बार भारतीय महिला खिलाड़ियों ने यहां झंडे गाड़ दिए। सानिया-सायना से परे कुश्ती, दौड़, डिस्कस थ्रो, तीरंदाजी...हर खेल में भारतीय महिलाओं का प्रदर्शन सराहनीय रहा। और सबसे दिलचस्प बात यह रही कि ये खिलाड़ी कोई महानगरों के नहीं थे, बल्कि देश भर के छोटे शहरों-कस्बों से आए थे। उनमें कई शादीशुदा, बाल-बच्चेदार भी थीं, जिनके पतियों-परिवारों ने भी प्रोत्साहन दिया।
क्या इसे समाज की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव की निशानी न माना जाए!!
CWG 2010: Indian woman rule the show
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अनुप्रिया के रेखांकन
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6 comments:
हाँ ये सकारात्मक बदलाव हैं।खेल में ही नहीं और क्षेत्रों में भी वे आगे आ रही हैं ।घरवाले अब उनकी प्रतिभा को पहचानने लगे है और शादी कर अगले घर भेजने की जल्दी में नहीँ रहते ।आज आम भारतीय परिवारों में बेटियाँ ही ज्यादा लाडली होती हैं वो भी घर के पुरूष सदस्यों की।परन्तु अभी और बदलाव आना बाकी हैँ।
हरियाणा जैसे राज्य, जहाँ लिंगानुपात सबसे कम है, जब अपनी बेटियों को इतने आगे बढाते हैं, तो अच्छा लगता है. लेकिन राजन की बात सही है. अभी और भी बहुत कुछ बदलना है.
abhi badalav jaroori hai, isa vishay men rajan jee sahi kah rahe hain.
यूं तो चोखेर बाली पर कमेंट करना बंद सा था पर इतने दिन से कोई पोस्ट न आना खल रहा था। छोटी-मोटी असहमतियां अपनी जगह हैं पर एक अच्छा ब्लॉग बंद हो जाए, यह ख़्याल ही बुरा लगता है। कई दिन से सोच रहा था, सुजाता जी को मेल करके कारण पूछूं, पर हिचकिचा गया।
कृपया जारी रखिए।
समान अवसर और सुविधायें मिलें तो महिला और पुरुष में कोई भेद नहीं रह जाता। यही तथ्य एक बार फिर उजागर हुआ है इन परिणामों से।
समान अवसर और सुविधायें मिलें तो महिला और पुरुष में कोई भेद नहीं रह जाता।
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