उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री का जन्मदिन और शीलू की जेल से रिहाई, कहीं कोई संयोग नहीं सिवाय इसके कि दोनों महिलाएं हैं। इसके अलावा कोई और संयोग हमें दिखाई नहीं दिया परन्तु इसे संयोग कतई नहीं कहा जा सकता कि शीलू को मायावती के जन्मदिन पर ही रिहा किया गया। शीलू को अब तक तो आप सभी जान ही गये होंगे। उत्तर प्रदेश के बांदा के छोटे से गांव की लड़की एकाएक ही समूचे भारतीय परिदृश्य पर छा गई।
शीलू के इस तरह से छा जाने के पीछे उसकी कोई सफलता की कहानी नहीं वरन् इसके पीछे उसके साथ घटित हुई दर्दनाक घटनाएं हैं। सत्ता की हनक में कई बार लोगों को आतंक का शिकार होना पड़ा है और इस बार का शिकार एक लड़की का हो गया। शीलू आरोपी है अथवा उसके द्वारा विधायक पर आरोप लगाया जा रहा है यह एक दूसरी बात है। प्रथमतः तो समाज को अब यह तय करना होगा कि महिलाओं के साथ, लड़कियों के साथ, छोटी-छोटी बच्चियों के साथ होते आ रहे शारीरिक दुष्कर्म को कैसे रोका जायेगा?
शीलू के केस में उसके द्वारा शारीरिक शोषण का आरोप विधायक और उसके साथियों पर लगाया गया किन्तु जेल में रहना पड़ा शीलू को ही। इसके पीछे कारण था कि सत्ता की हनक ने शीलू को ही आरोपी बनाकर समाज के सामने खड़ा करने की कोशिश की गई। ताकत ने काम किया और शीलू को अत्याचार सहने के बाद भी आरोपी मानकर जेल में डाल दिया गया। इस एक शीलू की कहानी को जैसे ही समाज के अन्य लोगों द्वारा देखा-सुना गया वैसे ही उसे अपने पक्ष में करने के प्रयास भी किये जाने लगे। राजनीतिज्ञों ने, समाजसेवियों ने, छोटे-बड़े दलों ने शीलू के पक्ष में खड़े होकर हुंकार भरनी शुरू कर दी।
तमाम सारे सवाल इन्हीं हुंकारों के पीछे से खड़े होते दिखते हैं। शीलू के पूर्व में क्या किसी महिला के साथ शारीरिक अत्याचार नहीं हुए? क्या शीलू के बाद किसी महिला को शारीरिक अत्याचारों का सामना नहीं करना पड़ेगा? समाज क्या बस इसी तरह से आवाज उठाकर शान्त होने को अपना कर्तव्य मान लेगा? हम आये दिन देखते हैं-और अब तो यह रोज की ही बात हो गई है कि किसी न किसी महिला के साथ, लड़की के साथ, बच्ची के साथ बलात्कार होता है-कि महिलाओं को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। इस प्रताड़ना को रोकने का उपाय खोजे बिना हम बस नाम मात्र को आन्दोलन सा कर देते हैं और फिर शान्त होकर किसी दूसरी घटना का इन्तजार सा करने लगते हैं।
देखा जाये तो अब समाज में कुछ कर दिखाने का समय आ गया है। मात्र नारेबाजी से, बयानबाजी से, गोष्ठी आदि से काम नहीं चलने वाला है। हमें अपने घर की महिलाओं को समझाना और सिखाना होगा कि कैसे वे अपने दुश्मनों को पहचानें और कैसे उनका मुकाबला करें। हमें अपनी लड़कियों के अन्दर से डर की भावना का मिटाकर उनके भीतर लड़ने का जज्बा पैदा करना होगा ताकि वे अपने साथ होने वाले अत्याचार का मुंहतोड़ जवाब दे सकें। हमें बच्चियों को बताना होगा कि कौन उनका दोस्त है औ कौन दुश्मन जिससे वे अपने को ठगा सा महसूस न करें।
वर्तमान की आधुनिकता की दौड़ ने मानव को दानव बना दिया है किन्तु हमें यह नहीं भूलना होगा कि इसी समाज में अभी भी मानवता का वास है। इसी मानवता के कारण ही समाज की अवधारणा अभी तक कायम है। इसी अवधारणा का विकास हमें करना और करवाना है। हम जिस दिन सशक्तता के साथ खड़े हो गये और समाज में महिलाओं के प्रति फैला रहे दुराचार को रोक पाने में सफल हो गये उसी दिन हम अपनी शीलूओं को, दिव्याओं को, आरुषियों को, मधुमिताओं को, जेसिकाओं को मौत के मुंह में जाने से रोक सकेंगे, इनका शारीरिक शोषण होने से रोक सकेंगे।
शीलू के इस तरह से छा जाने के पीछे उसकी कोई सफलता की कहानी नहीं वरन् इसके पीछे उसके साथ घटित हुई दर्दनाक घटनाएं हैं। सत्ता की हनक में कई बार लोगों को आतंक का शिकार होना पड़ा है और इस बार का शिकार एक लड़की का हो गया। शीलू आरोपी है अथवा उसके द्वारा विधायक पर आरोप लगाया जा रहा है यह एक दूसरी बात है। प्रथमतः तो समाज को अब यह तय करना होगा कि महिलाओं के साथ, लड़कियों के साथ, छोटी-छोटी बच्चियों के साथ होते आ रहे शारीरिक दुष्कर्म को कैसे रोका जायेगा?
शीलू के केस में उसके द्वारा शारीरिक शोषण का आरोप विधायक और उसके साथियों पर लगाया गया किन्तु जेल में रहना पड़ा शीलू को ही। इसके पीछे कारण था कि सत्ता की हनक ने शीलू को ही आरोपी बनाकर समाज के सामने खड़ा करने की कोशिश की गई। ताकत ने काम किया और शीलू को अत्याचार सहने के बाद भी आरोपी मानकर जेल में डाल दिया गया। इस एक शीलू की कहानी को जैसे ही समाज के अन्य लोगों द्वारा देखा-सुना गया वैसे ही उसे अपने पक्ष में करने के प्रयास भी किये जाने लगे। राजनीतिज्ञों ने, समाजसेवियों ने, छोटे-बड़े दलों ने शीलू के पक्ष में खड़े होकर हुंकार भरनी शुरू कर दी।
तमाम सारे सवाल इन्हीं हुंकारों के पीछे से खड़े होते दिखते हैं। शीलू के पूर्व में क्या किसी महिला के साथ शारीरिक अत्याचार नहीं हुए? क्या शीलू के बाद किसी महिला को शारीरिक अत्याचारों का सामना नहीं करना पड़ेगा? समाज क्या बस इसी तरह से आवाज उठाकर शान्त होने को अपना कर्तव्य मान लेगा? हम आये दिन देखते हैं-और अब तो यह रोज की ही बात हो गई है कि किसी न किसी महिला के साथ, लड़की के साथ, बच्ची के साथ बलात्कार होता है-कि महिलाओं को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। इस प्रताड़ना को रोकने का उपाय खोजे बिना हम बस नाम मात्र को आन्दोलन सा कर देते हैं और फिर शान्त होकर किसी दूसरी घटना का इन्तजार सा करने लगते हैं।
देखा जाये तो अब समाज में कुछ कर दिखाने का समय आ गया है। मात्र नारेबाजी से, बयानबाजी से, गोष्ठी आदि से काम नहीं चलने वाला है। हमें अपने घर की महिलाओं को समझाना और सिखाना होगा कि कैसे वे अपने दुश्मनों को पहचानें और कैसे उनका मुकाबला करें। हमें अपनी लड़कियों के अन्दर से डर की भावना का मिटाकर उनके भीतर लड़ने का जज्बा पैदा करना होगा ताकि वे अपने साथ होने वाले अत्याचार का मुंहतोड़ जवाब दे सकें। हमें बच्चियों को बताना होगा कि कौन उनका दोस्त है औ कौन दुश्मन जिससे वे अपने को ठगा सा महसूस न करें।
वर्तमान की आधुनिकता की दौड़ ने मानव को दानव बना दिया है किन्तु हमें यह नहीं भूलना होगा कि इसी समाज में अभी भी मानवता का वास है। इसी मानवता के कारण ही समाज की अवधारणा अभी तक कायम है। इसी अवधारणा का विकास हमें करना और करवाना है। हम जिस दिन सशक्तता के साथ खड़े हो गये और समाज में महिलाओं के प्रति फैला रहे दुराचार को रोक पाने में सफल हो गये उसी दिन हम अपनी शीलूओं को, दिव्याओं को, आरुषियों को, मधुमिताओं को, जेसिकाओं को मौत के मुंह में जाने से रोक सकेंगे, इनका शारीरिक शोषण होने से रोक सकेंगे।
7 comments:
सशक्त आलेख .... सहमत हूँ आपकी बात से....
पूर्ण सहमति।
महिला अधिकारों का एक सशक्त माध्यम है आपका ब्लॉग.
अच्छा आलेख | जहा तक इस केस का सवाल है तो लड़की पूरी पिपली के नत्था बनाती जा रही है जहा उसे इंसाफ दिलाने की जगह सब अपनी राजनीति कर रहे है | दूसरे शहरों में या आम अपराधियों से तो फिर भी हम महिलाओ को बचाने के उपाय सिखा सकते है पर इन बाहुबली और पहुँच वालो का क्या जो पीड़ित को ही जेल में डलवा दे वो भी कानून के खिलाफ सोचिये एक नाबालिग को महीने भर तक जेल में रख गया कोर्ट में भी उसकी पेशी हुई थी क्या किसी का ध्यान इस पर नहीं गया की उसे जेल में नहीं रखा जा सकता है चाहे उसने अपराध किया हो या नहीं | इस तरह के मामलों से बचाने का क्या उपाय सिखाया जाये खास कर कमजोर वर्ग को जिनको इनका सामना करना पड़ता है |
well written
Just want to add First High court ordered then State Govt saw there is no option so they have to act and they acted
so credit goes to High court not government.
अत्याचार किसी भी जीव के विरुद्ध हो वह स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. रही बात महिलाओ और बच्चियों के विरुद्ध शोषण की तो ये तो सदियों से होता आ रहा है और इनके हित के लिए तभी से ही कुछ न कुछ किये जाने की बात होती आ रही है. पर लगता नहीं की कोई सुधार हुआ हो. हालाँकि बहुत बड़े स्तर पर कई लोग ऐसे है जो इनके शोषण के विरुद्ध चुपचाप काम कर रहे है. इस प्रकार के अत्याचारों को लगाम लगाने के लिए महिला को शक्तिशाली बनाना ही एक उपाय हो सकता है
डाक्टर सुपुत्र
आशीर्वाद
आपका लेख पढ़ा
जागरूकता का सन्देश हैं
उठो बेटिओं बनो बनो दुर्गा
साथ दूँगी
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