मै उकता गयी हूँ यह सुन सुन कर ।एक ऐसे ज़बरदस्त इमेज मे स्त्री जाति कैद हो गयी है कि मै अकेली निकला चाह कर भी निकल नही पाती।एक छात्रा ने अपना दुख बांटा - कि बचपन से ही , घर से ही कभी हमे न बोलना नही सिखाया जाता , इसलिए जब कालेज मे आप बहस के लिए उकसाती हैं तो भी हम लडकियाँ ज़बान नही खोल पातीं।"न" कहना उनकी ट्रेनिंग का हिस्सा नही है, समाज उनकी न को न सम्मान देता है न स्वीकृति , बल्कि हतोत्साहित ही करता है।'अच्छी' की छवि मे जबरन कैद की जाने वाली लडकी के लिए अबोधता , नादानी , नासमझी कैसे महत्वपूर्ण मूल्य हैं यह बताने की ज़रूरत नही।हमेशा उदाहरण देती आई हूँ - आप अपने लड़के की शादी के लिए लड़की देखने जाएंगे तो यह वाक्य कभी सुनना पसन्द नही करेंगे कि -हमारी लडकी बहुत समझदार है । हाँ , गऊ ,सीधी ,सादी , भोली ....यह सुन कर आप धन्य हो जाएंगे !
तो कुल मिलाकर अपनी बात कहने की आज़ादी नही है , ऐसे बात कहने की आज़ादी नही है जिससे अच्छी की इमेज आहत होती है ,स्त्री 'गुलाम' वंश से है । गुलाम का ख्वाहिशें रखना समाज को मंजूर नही ,इसलिए स्त्री की भाषा में ऐसी परतें आ गयीं , ऐसे घुमाव और रहस्य आ गए । वह जब जब 'हाँ' कहना चाहती थी तब भी उसे ना कहना पडा और जब 'ना' कहना चाहती थी तब भी उसे हाँ कहना पडा । अब ऐसे मे बॉलीवुड वाले जब ऐसा गाना बनाएंगे जिसमे काजोल कहेगी - जान लो ऐ जाने जाँ मेरी ना में भी है हाँ .......(शायद यह सलमान के साथ आयी काजोल की एक फिल्म का गीत है , नाम मै याद नही कर पा रही) तो बच्चियाँ इसे आत्मसात कैसे न करेंगी ।
मुझे हार्दिक खुशी होगी कि 'ना' कहना लडकियाँ सीख पाएँ !यह आसान नहीं । अब तक ना मे हाँ वाली मानसिकता को अपने जी पर पत्थर रखने होंगे , कलेजा मज़बूत करना होगा। फिलहाल मै बलपूर्वक कहना चाहती हूँ कि -मेरी ना का मतलब ना है और मेरी चुप्पी मेरी स्वीकारोक्ति नही है ।
9 comments:
बहुत ही दिल को छू लेने वाली पोस्ट है. फिर आपकी ना पक्की है ना.
bilkul sahi. na matlab NA...
अच्छा पोस्ट है जी ! हवे अ गुड डे ! मेरे ब्लॉग पर जरुर आना !
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अब इतना साहस आने लगा है लेकिन फिर भी उसकी चुप्पी बहुत अनर्थ करवा देती है. उसका चुप रहकर अत्याचार सहना, उसका चुप रहकर सबकी बात स्वीकार करना और उसकी चुप से उसको मौत के मुँह तक जाने की सजा दे दी जाती है. अपनी बात के लिए बोलोगी नहीं तो फिर तुम्हारी जुबान से दूसरे बोलेंगे और सेहरा तुम्हारा सर. इस लिए अपने अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न मत लगाने दो. मुँह खोलो और बोलो.
अक्सर अपनी लाडली को समझाता हूँ कि कितना ही प्यारा क्यों न हो अगर तुम्हे पसंद नहीं है तो उसे ना कहना सीख लो ...अन्यथा लम्बे कष्टों के लिए तैयार रहना होगा !
आभार इस लेख के लिए !
स्त्री 'गुलाम' वंश से है । गुलाम का ख्वाहिशें रखना समाज को मंजूर नही
says everything but slowly new generation will change it.
girls are capable.
कभी ना न कह सकना बहुत तकलीफ़ों को न्यौतता है, चाहे स्त्री हो या पुरुष।
ना का मतलब ना ही होना चाहिये । पुरुषों को किसने अधिकार दिया हमारी बात का विपरीत ्र्थ निकालने का ?
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
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