
मीडिया खबर नाम की एक वेबसाइट है जो मीडिया के भीतर की, मीडिया के लोगों की खबर देती है। उसकी खबरें कैसी हैं, उसका प्रेजेंटेशन कैसा है, यह तो हर कोई खुद तय करे, पर उसकी एक ताजा खबर बेहद सटीक मुद्दे को उठाती है। वह है- टीवी चैनलों की ऐंकर न्यूज ऐंकर हैं या फैशन मॉडल। न्यूज़ ऐंकर या न्यूज़ मॉडल
इस खबर की आखिरी कुछ पंक्तियां हैं- "दरअसल विरोध बदलाव का नहीं. मॉडर्न और वेस्टर्न ड्रेस का भी कोई विरोध नहीं. टेलीविजन न्यूज़ विजुअल माध्यम है. इसलिए स्क्रीन प्रेजेंस भी बेहतर होना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि न्यूज़ एंकर खूबसूरत दिखे . लेकिन खूबसूरती के पीछे एक पत्रकार का दिमाग भी जरूर हो. महज छोटे कपड़े पहनाकर कुछ पलों के लिए दर्शकों को अपने यहाँ रोकने की प्रवृति पत्रकारिता, महिला सशक्तिकरण और खुद न्यूज़ इंडस्ट्री के लिए खतरनाक सिद्ध होगा.
न्यूज़ चैनल देखने के लिए दर्शक न्यूज़ चैनल पर आता है. इसलिए दर्शक को यह एहसास होना चाहिए कि वह न्यूज़ चैनल ही देख रहा है. लेकिन कई बार न्यूज़ चैनल देखते हुए महसूस होता है कि हम न्यूज़ चैनल नहीं एमटीवी या चैनल - V देख रहे हैं. ऐसे में मन में यह सवाल कौंधता हैं कि यह न्यूज़ एंकर हैं या न्यूज़ मॉडल ?"
इस बहस को यहां आगे बढ़ाया जा सकता है। इसे पढ़ कर आपके दिमाग में कौनसे विचार कौंधे? आप इस स्थिति का खुलासा कैसे करती/करते हैं?
अपनी टिप्पणी जरूर दें।
11 comments:
दिमाग पर चेहरे को तरजीह देना तो गलत है.चेहरा बस ठीक ठाक होना चाहिए और कपडे सादगीपूर्ण चाहे महिला हो या पुरुष.हमेशा साडी में नजर आने वाली दूरदर्शन की नीलम शर्मा अपनी वाकपटुता के लिए प्रसिद्ध है ओर 'चर्चा में' जैसे कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाने में उनकी प्रवाहमयी एंकरिंग का ही हाथ है.बीच बीच में कुछ एपिसोडों में चैनल की दूसरी खूबसूरत एंकर भी आती रहती है लेकिन वो बात कभी नहीं आ पाती.ऋचा अनिरुद्द(जिंदगी लाइव),बरखा दत्त या अनुराधा प्रासाद(आमने सामने) अपने साधारण चेहरे मोहरे के बावजूद लोकप्रियता के मामले में किसी से कम नहीं है.और यदि न्यूज चैनलों पे लोग केवल खूबसूरत चेहरे ही देखना चाहते तो दीपक चौरसिया रवीश कुमार विनोद दुआ अभिज्ञान आदि को लोग इतना पसंद न करते.जब पुरुष एंकर साँवले,नाटे,मोटे,सफेद बालों वाले ,चश्मे वाले हो सकते है तो महिलाओं को केवल खूबसूरत न होने के कारण इस क्षेत्र से दूर रखना सही नहीं है.न्यूज चैनलों पर हम खबर और उनके गंभीर विश्लेषण के लिये जाते है नहीं तो खूबसूरत लडकियों को ही देखना है तो और बहुत से चैनल है.इस हिसाब से तो फिर सास बहू वाले कार्यक्रम पुरुषों में अधिक लोकप्रिय होने चाहिये थे लेकिन ऐसा है नही.पर हमारे चैनल प्रबंधकों की सोच ही ऐसी है.अगर ये ऑपेरा विनफ्रे शो की थीम पर कोई प्रोग्राम बनाते है तो उसमें भी किसी खूबसूरत लडकी को ही लेंगे.
कहने का अर्थ ये बिल्कुर नहीं है कि सुंदर लडकियों में प्रतिभा नहीं होती या उन्हें लिया नहीं जाना चाहिये लेकिन प्राथमिकता समझदार को ही दी जानी चाहिये.ऐसा नहीं कि केवल चेहरा देखकर ही ऐसी महिला को रख लिया जाए जिसकी भाषा पर भी अच्छी पकड न हो.कई एंकर तो ऐसी है जिन्हें हिन्दी बोलने में बहुत परेशानी होती है.
वस्त्र छोटे हों या बड़े महिला एंकर ज़्यादा समझदार होती हैं।
कथादेश के मीडिया अंक में (साल याद नहीं ) इस पर दिलचस्प लेख लिखा था .वैसे .मुझे मालूम नहीं ये ड्रेस कोड कौन तय करता है पर दूरदर्शन की कुछ प्रज़ेन्टर अब भी दिमाग रखते हुए पहनावे से ज्यादा अपील करती है जैसे शनिवारी चर्चा की एंकर नीलम जी या लोकसभा चैनल पर म्रनाल पांडे जी ...
न्यूज चैनल बचे ही कहां है, सब मसाला चैनल बन गये हैं, इसीलिये न्यूज रीडर की जगह मौड्ल को लेकर आते हैं,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जमाने की बलिहारी यहाँ भी दिख रही है, न तो न्यूज़ चैनल बचे हैं और न ही न्यूज़ एंकर क्योंकि आप खुद देखिये कि ज्यादातर तो ख़बरें सीरियल्स की होती हैं. रही बात कपड़ों की तो इस पर कोई टिप्पणी यदि सार्थक रूप से ली जाये तब तो सही है अन्यथा की स्थिति में वही रटा-रटाया वाक्य "महिलाएं क्या पहने क्या नहीं ये अधिकार सिर्फ महिलाओं को है"
बहरहाल हाल तो ख़राब है ही, ये सभी जानते हैं चाहे वो पुरुष हो अथवा महिला पर इसका विरोध करने का साहस कम लोग जुटा पाते हैं. ख़बरों की गंभीरता अब मुद्दा है ही नहीं, न्यूज़ एंकर के कपडे, उसके बोलने, खड़े होने का ढंग मायने रख रहा है.
इसके बाद भी यदि इस पर विचार करने जैसी स्थितियां बन रही हैं तो उनका स्वागत होना चाहिए क्योंकि कोई एक स्थिति समाज में बहुत दिनों तक स्वीकार्य भी नहीं होती है.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
एक नारा हाल ही में कहीं देखा, और अपने प्रोफाइल पर भी चेपा था कि - 'My dress has nothing to do with you'
किसी कार्यक्रम के लिए एंकर और उनके कपड़ों का चयन कौन सा मानक करता है ?? महिला एंकरों के लिए छोटे कपड़े और पुरुष एंकरों के लिए गले में गांठ, कोट-पतलून दोनों समान तौर पर असहज स्थिति है. हाल ही में आईबीएन 7 ने अपने रिपोर्टर्स के लिए भी टाई बांधना ज़रूरी कर दिया है. बेचारे पसीने-पसीने होते रिपोर्टर्स. सुविधाजनक कपड़े पहनने की भी आज़ादी नहीं.इस प्रवृति के लिए सभी पूर्व और मौजूदा संपादक भी बराबर के दोषी हैं.
यह तो स्थापित हो गया है कि न्यूज़ चैनल एक व्यापार है। टी.आर.पी. के लिए सभी प्रकार के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। देह व्यापार की खबरों को कत्ल से भी ज्यादा समय तक दिखाया जाता है। भड़काऊ भाषा, एनिमेशन, नाट्यरूपांतरण जैसे सभी प्रकार के टोटके चालू हैं। तो न्यूज़ मॉडल को लेकर इतनी हायतौबा क्यों? आने दीजिए मॉडल। पहनने दीजिए लो नेक के कपड़े। इनके लिए काम तो दिए गए आलेख को कैमरे के आगे मुस्कुराकर पढ़ना भर है। समाचार छांटने और बनाने के लिए दिमागदार लोग कैमरे के पीछे मौजूद रहेंगे ही।
समस्या यह है कि हिप्पोक्रेसी इतनी बढ़ गई है कि हम लोग सच को खुलकर मानना नहीं चाहते। आइए, इसे स्वीकारें और इस परंपरा का स्वागत करें। इससे फायदा ही होगा। लोग M,V,F टीवी के बजाए समाचार चैनलों में ज्यादा समय बिताएंगे। सुंदरियों के बहाने देश समाज से जुड़ेंगे।
यदि कुछ सुधार की जरूरत है तो वह गुणवत्ता के स्तर पर है। लेकिन यह मुश्किल काम है, इसे कोई करेगा नहीं।
- आनंद
टी वी पर है तो सुंदर स्मार्ट दिखना तो जरूरी है । एम टी वी पर क्या होता है यह मै नही जानती क्यूं कि देखती नही ।
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