Saturday, September 24, 2011

24 Sep.2011- Girl Child Day



24 Sep.2011- Girl Child Day was celebrated by U M A dehradun with great zeal . Children in colourful dresses participated in fancy dress competetion. Light was thrown on child marriage, female foietcide, declining sex ratio( 925:1000) , girls'education and child abuse etc.

Thursday, September 22, 2011

विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में लड़कियों को जाने की मनाही

आज के द हिंदू अखबार में एक खबर है, जिस पर ध्यान जाना चाहिए।

अलीगढ़ की महिला कॉलेज की अंडर ग्रैजुएट छात्राओं को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मौलाना आजाद पुस्तकालय में जाने का हक नहीं है। यह पक्षपात लड़कियों के खिलाफ है। लड़कों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। और तुर्रा यह कि अधिकारियों का कहना है कि लड़कियों को वहां जाने की जरूरत नहीं है, और वे सुरक्षित रहें, इसलिए उन्हें नहीं जाने दिया जाता। सवाल उठाया जाता है कि कॉलेज की लाइब्रेरी में सारी किताबें हैं, फिर लड़कियों को यूनिवर्सिटी की लाइबेरेरी में जाने की जरूरत क्या है!

यह मूलतः लड़कियों के ज्ञान पाने के मौलिक अधिकार का हनन है। कोई और कैसे तय कर सकता है कि लड़कियां क्या और कहां पढ़ें और क्या और कहां नहीं?

Saturday, September 17, 2011

बेटियों के प्रति अभी भी निर्दयता व्याप्त है

आज समाचार-पत्र में समाचार पढ़ने को मिला कि बुन्देलखण्ड के जनपद जालौन के एट रेलवे स्टेशन पर दो नन्हीं बच्चियां मिली। दोनों बच्चियों की उम्र क्रमशः 1 वर्ष तथा 2 वर्ष की है। समाचार से ज्ञात हुआ कि दोनों बच्चियां भूख बिलखती हालत में मिलीं। इन दोनों की उम्र इतनी है कि ये बोल कर कुछ बता पा रहीं हैं और तो और इनके पास ऐसा कुछ भी साथ नहीं मिला जो इनके माता-पिता की जानकारी दे सके।

इस घटना को देखकर यह तो एहसास हुआ कि ये दोनों बच्चियां भूलवश नहीं छूटी हैं बल्कि ये जानबूझ कर छोड़ी गईं हैं। यदि यह सही है तो बहुत ही दुखद स्थिति है क्योंकि यह समाज में लड़कियों के प्रति सोच को दर्शाता है। हमारे समाज में बेटियों के प्रति सोच क्या है यह तो किसी से भी छिपा नहीं है इस कारण इस बात पर यहां कुछ भी कहने के बजाय हमारा मन कह रहा है कि

काश! ये दोनों बच्चियां भूलवश रेलवे स्टेशन पर रह गईं हों। काश!

इनके माता-पिता को सद्बुद्धि आ जाये और वापस आकर अपनी बच्चियों को ले जायें।

ऐसा ही हो जाये कि इन बच्चियों के माता-पिता किसी जहरखुरानी गिरोह के चलते बेहोशी की हालत में कहीं और चले गये हों और पुनः होश में आने पर इन्हें लेने आ जायें।

काश! ऐसा हो जाये कि कोई इन बच्चियों के माता-पिता का पता-ठिकाना बता दे जिससे ये दोनों अपने घर सुरक्षित जा सकें।

समाज पता नहीं कब अपनी ही संतानों के प्रति, अपनी बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ेगा? पता नहीं कब तक समाज के कुछ स्वार्थी तत्वों के कारण सभी को सवालों के घेरे में आना पड़ेगा?

अनुप्रिया के रेखांकन

स्त्री को सिर्फ बाहर ही नहीं अपने भीतर भी लड़ना पड़ता है- अनुप्रिया के रेखांकन

स्त्री-विमर्श के तमाम सवालों को समेटने की कोशिश में लगे अनुप्रिया के रेखांकन इन दिनों सबसे विशिष्ट हैं। अपने कहन और असर में वे कई तरह से ...