आज के द हिंदू अखबार में एक खबर है, जिस पर ध्यान जाना चाहिए।
अलीगढ़ की महिला कॉलेज की अंडर ग्रैजुएट छात्राओं को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मौलाना आजाद पुस्तकालय में जाने का हक नहीं है। यह पक्षपात लड़कियों के खिलाफ है। लड़कों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। और तुर्रा यह कि अधिकारियों का कहना है कि लड़कियों को वहां जाने की जरूरत नहीं है, और वे सुरक्षित रहें, इसलिए उन्हें नहीं जाने दिया जाता। सवाल उठाया जाता है कि कॉलेज की लाइब्रेरी में सारी किताबें हैं, फिर लड़कियों को यूनिवर्सिटी की लाइबेरेरी में जाने की जरूरत क्या है!
यह मूलतः लड़कियों के ज्ञान पाने के मौलिक अधिकार का हनन है। कोई और कैसे तय कर सकता है कि लड़कियां क्या और कहां पढ़ें और क्या और कहां नहीं?
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अनुप्रिया के रेखांकन
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5 comments:
ye to galat hai
We should fight against the system.. it is totally wrong.
get united and start movement, I would love to support for the noble cause.
आवाज़ उठाने के लिए.. शुक्रिया!
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आपने सही मुद्दा उठाया । अगर लडके जा सकते हैं तो लडकियां क्यूं नही ।
कुछ तो परिस्थितिया रही होंगी , जिसके वजह से प्रशासन को यह कदम उठाने पड़े होंगे !
लड़कियों के प्रति यह भेदभाव शर्मनाक है. समाज अपनी कमज़ोरियां और बरज़ोरियां छिपाने को लड़कियों को ही छिपा देना चाहता है और निन्दनीय यह भी है कि कुछ लोग प्रकारांतर से इसे सही भी ठहरा रहे हैं यह कह कर कि "कुछ तो मजबूरियां रही होंगी... "उन पाबन्दी लगाने वालों पर लानत से ज़रूरी इस प्रकार की सोच रखने वालों की सोच मे बदलाव की कोशिश है.
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