
मुंबई को दिल्ली वाले महिलाओं की सुरक्षा के लिहाजसे बहुत बेहतर मानते हैं। पर वहां रहने वालों के अनुभव कुछ और हैं। वहां हर महिला को छेड़-छाड़ का सामना करना पड़ता है। इसीलिए कुछ छात्रों ने चप्पल मारूंगी कैंपेन शुरू किया है, वहां आए दिन होने वाली छेड़-छाड़ की समस्या का सामना करने के लिए। इसका अर्थ पुरुषों के खिलाफ हिंसक होना नहीं है, बल्कि महिलाओं को हिम्मत दिलाना है कि ऐसे मौकों पर वे चुप न रह जाएं बल्कि हिम्मतसे खड़ी हों औरशोर मचाएं। इतना कि परेशान करने वाला, इज्जत पर हाथ डालने वाला खुद इतना बेइज्जत हो जाए कि अगली बार ऐसी गलती करने में घबराए।
एक वीडियो यहां देखें और यहां भी।
19 comments:
lo bolo
ham to 2007 sae is blog jagat me yae halaa machaaye haen !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/12/blog-post_9101.html?showComment=1230615300000#c8705120305433842562
vishvaas naa ho to yae link daekh lo !!!!!!
महिलाओ और लड़कियों का हौसला बढ़ाने वाले ऐसे सभी आन्दोलन निरंतर चलने चाहिए ना की कुछ दिन बाद बंद हो जाये इससे कोई फायदा नहीं होगा |
...तभी तो कहा गया है "लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं"......बस यह अभियान रुके नहीं ...
बढ़िया सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार
पोस्ट अच्छा लगा । अभियान जारी रहे । सटीक पोस्ट । धन्यवद।
अनुराधा जी, आपने अच्छा किया जो यह शेयर किया। ऐसे कैंपेन मुंबई से निकल कर दिल्ली और अन्य शहरों में भी होने चाहिए। महिलाओं (और पुरुषों) को जगाने वाले हर छोटे से छोटे बड़े से बड़े मामूली से मामूली और नामालूम से लगने वाले हर कदम की गूंज बहुत दूर तक और बहुत तीखी होगी तभी बात बनेगी..।
पूजा प्रसाद
अच्छी पहल है.वैसे 'पुरुष के प्रति हिंसक होना नहीं है' जैसे स्पष्टीकरण की जरूरत तो नहीं होनी चाहिये.अंशुमाला जी से सहमत हूँ ये प्रयास निरंतर होने चाहिये तभी इनका कुछ फायदा है.
और ये मुंबई के बारे में मैंने भी बहुत सुना है बल्कि खुद महिलाएँ ही कहती है कि वहाँ देर रात कोई भी महिला कहीं भी आ जा सकती है.मेट्रो या फिर बाजारो,सिनामाघरों में कोई छेडछाड नहीं होती.ऐसी घटनाएँ वहाँ अपवाद है.यदि ऐसी बात है तो मुंबई वास्तव में दूसरे शहरों से बेहतर है.जबकि इस मामले में देश का सबसे गया गुजरा शहर दिल्ली है.
achchi pahal..
jai hind jai bharat
जागरुक मित्रों,
तथ्यात्मक गलतियों की तरफ ध्यान तो दिला दिया करो.या आप लोगों की जुबान पर भी आजकल ट्रेनों की जगह मेट्रो ही आता है.
@ राजन, दिल्ली गई गुज़री तो है,लेकिन यह कैंपेन मुंबई में सुरू किया गया है और वहां हर महिला को भी यह सब झेलना पड़ता है।
वैसे येतथ्यात्मक गलती का क्या मसला है?
@ रचना, जरूर, यह काम नारी और चोखेर बाली दोनों गलातार कर रहे हैं। उसी की अगली कड़ी येकैंपेन और उससे जुड़ी पोस्ट है। नेक काम जारी रहे। वैसे रचना, एक बार हमने चर्चाकी थी कि लिखना तो एक बात है, पर ऐक्शन में भी कुछ होना चाहिए। तोचलो,कुछ कियाजाए।
अनुराधा जी तथ्यात्मक गलती इसलिए क्योंकि मैंने कमेंट में मुंबई की लोकल ट्रेनों की जगह मेट्रो लिख दिया था.
Achha hai....manchalo ko savdhan ho jana chahiye..
Post achha laga
जय हो। हर छेड़खानी करने वाले के लिए कम से कम एक चप्पल तो तय हो।
साहसी होना अच्छा तो है किन्तु उसका मूल्य भी चुकाना पड़ सकता है.हाल में ही मुंबई में ही छेड़छाड़ का विरोध करने पर युवक वापिस बाइक पर आए और ब्लैड या किसी धारदार चीज से लड़की पर वार कर गए.यदि अधिकतर स्त्रियाँ , लड़कियाँ विरोध करें तो शायद कुछ अंतर पड़ेगा ही.
घुघूतीबासूती
ऐसे लोग उत्साह वर्धन करें नारियों का साथ भी दें ..तब कुछ बात बने ..नहीं तो जो नारी आगे बढ़ी कल कुछ घटनाएँ दिल को डरा जाती हैं ..सब को सोचना होगा ...एक जुट हो उनका साथ देना होगा ...सुन्दर
भ्रमर ५
यह कैंपेन समस्या का समाधान कतई नहीं है, पर टुकड़ों में किए गए कई-कई उपाय मिलकर कुछ तो असर डालते हैं और समस्या के किसी पहलू को उभारते और उसके बारे में लोगों को जागरूक भी बनाते हैं।
nice photo
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