- विश्वनाथ प्रसाद
यह कविता मेरे ससुर जी ने अपने बचपन में स्कूल की किताब में पढ़ी थी जो उन्हें याद रह गई। हाल के समय में उनकी ज़बान पर यह चढ़ी हुई थी और उसी दौरान मेरे कहने पर उन्होंने यह मुझे लिख कर भी दी। खास बात यह है कि उन्होंने अपनी मां को कभी नहीं जाना क्योंकि उनके जन्म के कुछ ही दिनों में मां का देहांत हो गया था। फिर भी उनकी प्रिय कविताओं में है यह। - अनुराधा
सब देव देवियां एक ओर
ऐ मां मेरी तू एक ओर
कुछ सलिल मात्र बस है गंगा
पशु मात्र एक बस है गैया
है भूमि मात्र जो मिट्टी की
वह हो सकती किसकी मैया?
पर इन्हें भावना भी तेरी
जो छू देती तो हो जाती
गंगा मैया,जड़ता हरणी
गो माता, मातृ भूमि धरणी
इनमें तुझको ही पूज रहे सब
केंद्र भक्ति में हम विभोर
सब देव-देवियां एक ओर
ऐ मां! मेरी तू एक ओर
Saturday, October 22, 2011
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अनुप्रिया के रेखांकन
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7 comments:
माँसे बढकर कौन हो सकता है।
जी हा ऐसा ही है माँ से बढ़ कर कोई नहीं होता है किन्तु हम में से ज्यादातर उसके साथ होने पर उसकी कीमत जीवन में उसके महत्व को नहीं समझ पाते है |
सब देव-देवियां एक ओर
ऐ मां! मेरी तू एक ओर
सच है !!
आपको दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं
man ko mugdh karnewali kavita......
सब देव देवियां मां में ही तो सिमट आते हैं ।
बेहतरीन प्रस्तुति।
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