यह इत्तेफाक ही रहा कि माधवी (भीष्म साहनी का नाटक) जिस दिन पढा उसी के अगले दिन DIRTY PICTURE देखने का मौका मिला जिसका मुझे बहुत दिनों से इंतेज़ार था। यह इत्तेफाक कोई आम बात ही थी पर शायद मेरे लिए नही।दो साल से जिसने कलम नही उठाई वह इस इत्तेफाक के कारण लिखने पर मजबूर हो जाए तो इसे सामान्य घटना नही माना जा सकता।राजकुमारी माधवी कष्ट उठाकर कईं कठोर बलिदान करके ऋषिपुत्र गालव का विश्वामित्र को दिया गुरुदक्षिणा का वचनपूरा करने का माध्यम बनती है।तीन बच्चे खोती है खूबसूरती और जवानी खोती है पर अंत मे उसे गुमनामी ,दर्द और अकेलेपन केअलावा कुछ नही मिलता। गालव उसे अंत मे इसलिए अपनाने से इनकार कर देता है कि वह अनुष्ठान करके चिरकौमार्य के वरदान का इस्तेमाल पुन: नही करना चाह्ती और जिस रूप मे है उसी रूप मे आज गालव उसे अपनाए यह चाहती है।वह गालव के साथ कहीं भाग जाना चाहती थी लेकिन दीक्षांत समारोह के दिन वह अपनी यह इच्छा अकेले ही भाग कर पूरी करती है ....वह कहाँ भाग गयी ?.......क्यों भाग गयी ?......उसका क्या हुआ ? .....
माधवी के पिता ययाति जिन्होने माधवी को दान मे गालव को दे दिया इसलिए कि उनका दानवीर होने के यश को क्षति न पहुँचे ...।वे महान दानवीर हैं .. विश्वामित्र अपने शिष्य गालव की ऐसी परीक्षा ली वह महान है .....गालव सच्चा साधक है ,होनहार है .......माधवी की चर्चा कहीं नही है .....!माधवी अंत मे कटाक्ष करती है -“गालव तुम ज़रूर एक दिन ऋषि गालव बनोगे !”
गन्दी पिक्चर की गन्दी,घटिया वैम्प सिल्क को सिल्क बनाने वाली फिल्म इंडस्ट्री को यह बरदाश्त नहे होता कि हीरो-प्रधान दुनिया मे एक वैम्प के एक गाने के सहारे ठंडे डिब्बे मे बन्द फिल्में भी चल रही हैं।गन्दगी बनाने वाले कोई और देखने वाले कोई और लेकिन वे सब भले हैं केवल सिल्क बुरी है।पत्रकार नायला सब जानती है और मानती है कि आदमी को भला दिखाने के लिए स्त्री को बुरा बनाना ही पड़ता है।वह अपनी समीक्षाओं मे हमेशा सिल्क को बुरा गन्दा और घटिया कहती है।
सिल्क अपने ज़माने की विद्रोही थी। बिन्दास !जिस शरीर को लेकर समाज की मानयताएँ इतनी विडम्बना ग्रस्त हैं उस समाज मे सिल्क ने अपने शरीर का इस्तेमाल बेहद निर्लिप्त भाव से टूल की तरह किया। वह जानती थी आदमी कितना भला दिखे पर उसे यही चाहिए।जो वह लुक छिप के देखता है उसने उसी को खुलेआम कर दिया। जो शर्मनाक रहस्य ,फंतासी केवल बेडरूम तक महदूद थी उसे बेहद निर्मम तरीके से सिल्क ने स्क्रीन पर उघाड़ कर रख दिया।
वह बिन्दास थी ,दुविधा-मुक्त ! अपनी शर्तों पर जीने वाली। भला पुरुष-प्रधान समाज को ,हीरो-वरशिप करने वाले उद्योग को कैसे सहन होती ?आखिर वह एक खलनायिका ही तो थी? उसका इतना घमण्ड !! पुरुष -अहम ने उसे तोड़ना शुरु किया ....उस हद तक तोड़ा कि उसने 35 की उम्र मे आत्महत्या कर ली। बेहद गरीब परिवार से आई सिल्क का धाकड़ अन्दाज़ और सफलता दक्षिण भारतीय सिनेमा के इतिहास मे दर्ज है। फिल्म समीक्षक जानते हैं कि सिल्क ने हायरार्की के नियमो को तोड़ने की गुस्ताखी की थी।सज़ा तो उसे मिलनी ही थी।उसकी कड़ी मेहनत और लगन,काम के प्रति प्रतिबद्धताके बावजूद बाज़ार ने हमेशा उसकी प्रोमोशन सेक्स सिम्बल के रूप मे ही की।और इसी ने उसे एक इमेज मे कैद कर दिया। आज शीला की जवानी और मुन्नी की बदनामी सिल्क के तथाकथित ‘घटियापन’ से कहीं आगे निकल चुके।80 के दशक में सिल्क अपने समय से बहुत आगे थी। बॉडी-पॉलिटिक्स का जो विमर्श आज किया जाता है सिल्क उसी की उदाहरण है। स्त्री का शरीर न केवल कमतर है बल्कि उस पर उसका खुद का हक नही है।वह भले ही माधवी के रूप मे गालव का उद्देश्य पूरा करने मे अपनी खूबसूरती और यौवन का बलिदान दे दे या सिल्क के रूप मे स्त्री शरीर से जुड़े सारे टैबू तोड़ दे ...उसे मिलता अकेलापन ,गुमनामी और पीड़ा है।
इस देह -विमर्श की कितनी लानत-मलामत की जाए पर सच है कि स्त्री का शरीर उपनिवेश है।सत्ता , ताकत ,राजनीति और अर्थतंत्र इसका इस्तेमाल करते हैं।इसी से मुक्ति देह-मुक्ति है!